क्रिया योग में दो शब्द एक क्रिया और दूसरा योग है ,
१- क्रिया
२- योग
प्रथम ‘क्रिया’ शब्द को लीजिए - इसके पहले कि क्रिया शब्द को समझें हमें ‘अक्रिया’ और ‘निष्क्रिया’ को समझना चाहिए । अक्रिया और निष्क्रिया दोनों ही क्रिया का विपरीत है । सबसे पहले अक्रिया के मूल अर्थ को समझें । इसका मूल अर्थ है जहां क्रिया ही ना हो अर्थात् क्रिया के परे की अवस्था । ध्यान दें जहां पर इक्षा है वहाँ क्रियाशीलता है , इक्षाओं के उत्पन्न होने पर ही सभी ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ क्रियाशील हो जाती हैं । यदि इक्षाओं को समाप्त कर दिया जाये तो क्रियाशीलता समाप्त हो जाती है । इसी को अक्रियाशीलता कहते हैं ।
अब निष्क्रियता को समझें , यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें ज्ञानेन्द्रियाँ तो क्रियाशील रहती हैं किंतु कर्मेन्द्रियाँ निष्क्रिय रहती हैं । इसी को आलस्य कहते हैं, इसी को तमसिकता कहते हैं । जैसे इंद्रिय को प्यास की अनुभूति हुई , किंतु उसकी कर्मेन्द्रियाँ -हाँथ और पैर , क्रियाशील नहीं हो रही हैं , वह आलस्यवश स्वयं के हाँथ और पैर का सहयोग ना लेकर किसी अन्य व्यक्ति से पानी मँगवाता है । ज़्यादातर हम सभी मन ही मन कल्पित अवस्था में अपनी इक्षाओं की पूर्ति करने का असफल प्रयास करते हैं । मैं इसी को निष्क्रियता कहता हूँ । यह निष्क्रियता ही मन को शून्य में जाने से रोक देती है , उसे पूर्णता में नहीं ले जाने पाती है । इसी स्थिति में मन असंतुष्ट रहने लगता है और स्वयं के साथ साथ देह को भी रोगी बनाने लगता है ।
इस देह में रीढ़ और मस्तिष्कके अंदर बहुत स्थान ऐसे हैं जो लगभग निष्क्रिय रहते हैं । या तो तो उनका उपयोग नहीं किया गया या उपयोग करने वाले को उन निष्क्रिय स्थानों का ज्ञान ही नहीं । इसी हेतु क्रिया योग ध्यान का जन्म योगियों के द्वारा हुआ ।
अब ‘योग’ शब्द के अर्थ को समझने का प्रयास करते हैं । इसके दो अर्थ है जिसमें प्रथम जुड़ना और दूसरा तोड़ना । हमारा मन और इंद्रियाँ वस्तु से जुड़ना ही जानती हैं । जुड़ने के बाद ही तोड़ने की अवस्था आती है जिसे व्यक्ति जीवनभर नहीं सीख पाता है ।
अब यहाँ पर “क्रिया योग” को समझने में आसानी होगी - “क्रिया योग” एक ऐसी प्राण की क्रिया विधि है जो रीढ़ और मस्तिष्क में निष्क्रिय स्थानों में मन को जोड़ देती है जिससे उन निष्क्रिय स्थानों को क्रियाशील बना दिया जाता है । इन सभी निष्क्रिय स्थानों को सक्रिय करने के बाद ही व्यक्ति को मन मस्तिष्क और इंद्रियों का सूक्ष्मतम् ज्ञान होने लगता है । उन सभी निष्क्रिय स्थलों को सक्रिय करने पर मन का सूक्ष्म इंद्रियों पर नियंत्रण बढ़ जाता , साथ साथ ज्ञान की अवस्था में मन स्थानांतरित हो जाता है । ध्यान दें ज्ञान के बाद ही क्रिया शीतला के परे “अक्रिया अवस्था” में जाने का मार्ग प्रशस्त होता है। अर्थात् क्रिया के परे अक्रिया अवस्था में व्यक्ति जाने के लिए उपयुक्त हो जाता है । यही समाधि अवस्था कहलाती है । इसी अक्रिया अवस्था में ही पूर्ण आत्म ज्ञान होता है
तो अंततः “क्रिया योग” एक ऐसी प्राण विधि है जो प्राण वायु के माध्यम से चेतन आत्म तक की यात्रा करा देती है । इससे दैहिक और मानसिक समस्याओं का निदान ही नहीं बल्कि पूर्ण आत्म ज्ञान हो जाता है ।
क्रिया योग ध्यान में विषय
Tada asana ( I & II level)
Thigh Muscles (I level)
Lumber activation (Manipur)
Upper back Activation (Anhat)
Senses Muscles Recharging
Ida & Sushumna Nadi Activation
Focus on Chakra
Bandh
Talu dhyan
Kriya yoga Technique (11 Times)
Lay dhyan
लाभ -
समस्त वायु का सम हो जाना -
उदान, समान और अपन वायु का पूर्ण रूप से समता में आ जाना ।
मन का शून्य होना , स्थिर होना ।
मन से संबंधित सभी रोगों का नाश ।
मन के द्वारा देह में उत्पन्न रोगों का नाश ।
सभी चक्रों के माध्यम से मन को और मन के माध्यम से चक्रों की ऊर्जा को सम करना ।
आत्म संतोष व आत्म ज्ञान का होना ।
कर्ता व अकर्ता का प्रत्यक्ष अनुभव इत्यादि अनेकों लाभ
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