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मंत्र ध्यान वर्कशॉप 


मंत्र का मूल अर्थ

 “मंत्र” का मूल अर्थ है मन से मुक्ति होता है । यह दो शब्द मन और त्र से मिलकर निर्मित हुआ है जिसमें 

मन = विचार, कल्पना व संवेदनाओं का प्रवाह है ।
त्र = मुक्ति या रक्षा है । 

जब मन शब्दों के कुछ समूह को बारम्बार दोहराता है तब मन ही नहीं बल्कि मस्तिष्क और इंद्रियों के लगभग सभी हिस्से किसी एक दिशा में अभ्यस्त होने लगते हैं । इस अभ्यास से मन के अन्यत्र भटकाव की संभावनाएं कम हो जाती हैं और और मन स्वयं को अमन में स्थित करने में बहुत हद्द तक कामयाब होने लगता है । 

मंत्र ध्यान करने के कारण

मनुष्य मन विचारों में उलझा है, वह भी एक समय में भिन्न भिन्न विषयों के विचारों में उलझना उसके मानसिक ,शारीरिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाता है । उसी से बचने के लिए वह कहीं न कहीं अपने मन को समेटता है ।  इस ध्यान का एक अन्य कारण है कि मन के अंदर जो भी विचार चल रहें हैं उनकी गति इतनी अधिक तेज होती है कि उससे मन मस्तिष्क और इन्द्रियों में अत्यंत थकान उत्पन्न होने लगती है । उस थकान से शरीर के अंदर वात पित्त और कफ़ में असंतुलन होने लगता है जिसके कारण कई मानसिक और शारीरिक रोगों के होने की संभावनाएं बढ़ जाती है । ध्यान दें विचारों की संख्या से समस्या जितनी उत्पन्न नहीं होती उससे कहीं अधिक विचारों के गति से होती है । 

तो यहाँ पर मंत्र ध्यान का सूक्ष्म कारण स्वयं के द्वारा विचारों की गति को नियंत्रित करना ही है । 

मंत्र ध्यान का उद्देश्य

मंत्र ध्यान का मूल उद्देश्य मन की दासता से मुक्ति, मन का एक समय में अनेक विषयों में भागने को रोक करके किसी एक विचार में स्थिर कर देना । मन का किसी एक विषय में बारम्बार दोहराते रहना उसका प्रथम स्तर हो सकता है किंतु उद्देश्य नहीं है । यद्यपि सामान्य साधक मन में किसी एक विषय व विचार को दोहराते रहने को मानते ध्यान के रूप में स्वीकार करते हैं किंतु यह सिर्फ़ पहला स्तर है ।

किसी भी विचार व विषय को बारम्बार दोहराते रहने से स्मृति बनती है और उस स्मृति से मन सीमा निर्धारित हो जाती है । अर्थात् मन को किसी एक सीमा में बंध दिया जाता है जिससे मन अन्य विषयों में बहुत अधिक मारता में नहीं जा पाता है । 

अंततः मंत्र का मूल उद्देश्य मन को अनंत विचारों से रोक करके किसी एक विचारों में स्थिर कर करके उस एक विचार से भी मुक्त कर देना है  । 


लाभ और हानि

मेरे अनुभव में इस ध्यान से लाभ मन की एकाग्रता के रूप में प्राप्त होता है ,जैसे तनाव में कमी , एकाग्रता में वृद्धि , मन और साँसों में लय का स्थिर होना ,समुचित हार्मोन्स का स्राव इत्यादि । किंतु यदि मैं अपने व्यावहारिक अनुभवों को आपके सामने साझा करूँ तो सामान्य जन इस ध्यान की विधि से लाभ के बजाय हानि अधिक होते हुए देखा है । मेरे पास हजारों की संख्या में ऐसे लोग आते हैं जो इस ध्यान के प्रतिक्रिया से परेशान होते हैं । 

अति सामान्य साधकों का कहना होता है कि मंत्र का सही उच्चारण न करने पर ही मंत्र का नुकसान होता है किंतु उच्चारण के बजाय मंत्र को ध्यान के रूप में करने की कई अवैज्ञानिक तरीकों से हानियाँ हो जाती है 

जैसे , स्मृति भ्रम , जिह्वा एवं जबड़ों में कंपन , गले में निरंतर खरास का रहना , थाइरोइड, पिट्यूटरी जैसी अनेक ग्रंथियों के श्राव में असंतुलन का होना , सिर में निरंतर भारीपन, चलने के समय पैरों में कंपन, आंखों में जलन तथा मुंह का सूखते रहना इत्यादि । बहुओं में मैंने इस ध्यान के अभ्यासियों में कब्ज जैसी समस्याओं को सर्वाधिक पाया है । 

मंत्र ध्यान करने की विधियों को सिखाया जाएगा 

जहाँ तक लाभ और हानि की बात है उसमें सबसे अधिक ध्यान की विधि से तात्पर्य है । सबसे पहले इस ध्यान की विधि का पूरा सिद्धांत समझना आवश्यक है अन्यथा ध्यान के नुकसान अधिक होंगे बजाय कि लाभ के । सिद्धांत को समझने के बाद विधि अर्थात् ध्यान की विधि व तरीका क्या है । इस ध्यान को किया कैसे जाय । यदि करने के तरीके को अच्छी तरह से समझ लिया जाये तो उससे होने वाले हानि को अच्छी तरह से बचा जा सकता है । 


1- इस ध्यान विधि में सर्वप्रथम रूप ध्यान के सिद्धांत पर चर्चा और व्यवहार का अभ्यास करवाया जाएगा ।


2- रूप ध्यान के साथ वाचिक (ऊँची आवाज़) मंत्र ध्यान का संयोग ।


3- मंत्र विधि को ध्यान के रूप में परिवर्तित कर देना जिसमें उपांशु (धीरे-धीरे होंठ हिलाकर) विधि को अपना कर मन को उच्चतम स्तर पर ले जाया जाता है । यहाँ तक माला का भी सहयोग लिया जाता है । 


4- इस ध्यान की विधि में मंत्र ध्यान के चयन की सुविधा दी जाती है साथ साथ बिना माला के सहयोग के साधक मंत्र का मौन रूप में उपयोग करता है । जैसे साधक के लिए सरल मंत्र ॐ या सोऽहम्। यही पर शब्द और निःशब्दता में कितनी दूरी होनी चाहिए , उसका ज्ञान करवाया जाता है । 


5- अंततः मंत्र (शब्द के दोहराव) के माध्यम से निःशब्द की अवस्था को प्राप्त कैसे किया जाये । इसका अभ्यास भी करवाया जाएगा । अर्थात् मंत्र का निःशब्द में विलय व समापन कर दिया जाता है ।वस्तु से शून्य की यात्रा । 


और अंतिम अवस्था में शब्दों को शून्यता में विलय करने के बाद मंत्रा (अकर्ता) की अनुभूति करवायी जाती है 


रोगों का निराकरण (मंत्र ध्यान के द्वारा)

अति सोच (ओवरथिंकिंग), तनाव, अवसाद मानसिक भ्रम , चिंता, अनिद्रा, माइग्रेन , सिर दर्द , कब्ज इत्यादि अनेकों समस्याओं का समाधान मैंने अपने प्रयोगों में किया है । 

by Yogi Anoop


Mantra Dhyan Workshop

Content Hours: 3 hour(s)
Fee: 5100/-
Duration : 2 Days
From 2025-12-13 To 2025-12-14

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