“नाभि के डिगने को कैसे ठीक किया जाए”
तारीख़ (Date) - 21st & 22nd May 2022
दिन (Day) - शनिवार और इतवार , 2 घंटे प्रतिदिन (ऑफ़्लाइन)
स्थान (Place) - दिल्ली
क़ीमत (Price) - 5100 INR
Payment Mode - Booking online via website
भाग लेने वालों की संख्या - केवल 7 Participants only
नाभि केंद्र एवं वायु का संतुलन
नाभि का समान वायु, अपान वायु और उदान वायु से सम्बंध ।
नाभि के किस दिशा में हटने से क्या करना चाहिए ।
नाभि से मन मस्तिष्क का सम्बंध
IBS का नाभि केंद्र से सम्बंध
नाभि पर अधिक मास्टरनेशन से दुष्प्रभाव
नाभि पर वायु दोष का प्रभाव इत्यादि अनेको विषय
तथा इससे सम्बंधित सभी रोगों के सभी कारणों पर चर्चा की जाएगी साथ साथ उनके उन उपायों पर जिसका कई वर्षों से मैंने शोध किया है, पर गम्भीर अभ्यास भी करवाया जाएगा ।
नाभि शरीर के मध्य में स्थित ऐक ऐसा केंद्र है जिसका प्रमुख कार्य पूरे शरीर में ऊर्जा का संचार करना होता है । यह ऊर्जा का एक ऐसा केंद्र जिसे सेंटर ओफ़ ग्रैविटी के नाम से जाना जाता है । यही केंद्र शरीर के समस्त अंगों को अपने गुरुत्वाकर्षण से बांधे रहता है । यदि यह अपनी जगह पर रहकर समस्त अंगों को ऊर्जा देता रहता है तब तक शरीर में किसी भी प्रकार का भौतिक रोग नहीं होने पाता है किंतु जिस भी दिन गुरुत्वाकर्षण का यह केंद्र अपनी मूल स्थिति से हट जाता है उस दिन से किसी न किसी अंगों पर बुरा प्रभाव पड़ना शुरू होने लगता है ।
यह मध्य हिस्से का गुरुत्वाकर्षण जितना अधिक मज़बूत होता है उतना ही वह पूरे देह के अंगों को बांधे रहता है और साथ साथ उन सभी अंगो को उचित मात्रा में ऊर्जा प्रदान करता रहता है । किंतु ध्यान दे यह नाभि केंद्र की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कमतर होने पर व्यक्ति का शरीर धीरे धीरे सूखने लगता है । इंद्रियाँ बुझने लगती हैं, कुछ ऐसे ही जैसे दीपक से तेल ख़त्म होने लगा है । मन की एकाग्रता बहुत हद्द तक कम हो जाती है । एकाग्रता कहीं लगाने पर शरीर और मस्तिष्क गर्म होने लगता है , बुख़ार जैसा अनुभव होना शुरू हो जाता है ।
यह भी पूर्ण रूप से सत्य है कि इस गुरुत्वाकर्षण के असंतुलन से मस्तिष्क और शरीर का समस्त नाड़ी तंत्र कमजोर होना शुरू हो जाता है जिसे शरीर में वीर्य निर्माण की क्षमता लगभग समापन की ओर होने लगती है ।
नाभि तंत्र के हटने पर शरीर और मस्तिष्क में बहुत लक्षण देखने को मिलते है जो निम्न हैं -
नाभि के ऊपरी हिस्से पर सदा तनाव बने रहना ।
नाभि के दाहिने बातें हिस्से में दर्द का निरंतर बने रहना ।
नाभि के नीचे के हिस्से में खिंचाव का रहना ।
छाती में दर्द जैसा अनुभव ।
जलन
हृदय की गति हमेशा सुनाई देते रहना और साथ साथ कमर में डर का बने रहना।
आँखे और जबड़ों का भारी रहना भी एक प्रमुख लक्षण है ।
पानी पीने में भी कठिनाई का अनुभव होना ।
क़ब्जियत का रहना , या लूस मोशन ।
ऐंज़ाइयटी अवसाद तनाव अनिद्रा साँसों में भारीपन डकार इत्यादि अनेकों मानसिक समस्याएँ भी देखने को मिलती हैं ।
ध्यान दें मनुष्य का शरीर दो ही तत्व से चलता है पहला जिसे हम ऊर्जा कहते हैं और दूसरा ज्ञान जो मन को स्थिर कर बुद्धि को विकसित करता है । शरीर और मस्तिष्क का हिस्सा भौति ऊर्जा से चलता है जिसका मूल श्रोत नाभि है जो देह का केंद्र बिंदु है । नाभि ही शरीर का मध्य क्षेत्र है जो गुरुत्वाकर्षण का केंद्र है । देह और मस्तिष्क को सुचारु रूप से चलाने के लिए नाभि ऊर्जा की आवश्यकता बहुत पड़ती है ।
यह केंद्र बिंदु पूरे देह के अंगों को बांधे रहता है । समस्त अंगों को उनके सामर्थ्य के अनुसार ऊर्जा का वितरण भी करता है । इसीलिए पूरे देह के मध्य में स्थित इस केंद्र को सूर्य कहा गया । माँ के गर्भ में सर्वप्रथम इसी से जुड़ाव होता , बच्चा इसी नाड़ी के माध्यम से माँ से ऊर्जा प्राप्त करके समस्त अंगो का निर्माण करता है । पैदा होने के बाद इस स्थान को बंद करके भोजन के अन्य ज्ञानेंद्रिय मार्गों को खोल दिया जाता है ।
कहीं न कहीं इस नाभि के प्रभावित होने पर शरीर में ऊर्जा के संचार में बहुत बढ़ाएँ आती हैं जिससे शरीर में गम्भीर समझाए उत्पन्न होने लगती हैं . मैंने 99 फ़ीसदी लोगों में देखा है कि नाभि के अपनी मूल स्थान से हट जाने पर मस्तिष्क कमजोर ह जाता है , जिससे उनकी जीने की इक्षा शक्ति भी धीरे धीरे ख़त्म होने लगती है । इसे ठीक किया जाना बहुत आवश्यक है ।
यह भी सत्य है कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इस नाभि प्रदेश का कोई महत्व नहीं , वह इसलिए कि उनकी प्रणाली में यहाँ कुछ दिखता ही नहीं है ।
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