सामान्यतः प्राण- वायु का नाम आते ही हमारा मन गैस की कल्पना करने लगता है । कुछ वैसे ही जैसे योग का नाम सुनते ही आसन की कल्पना मन में चलने लगती है ।
मन को लगता है कि शरीर में कोई एक गैस है जो ऊपर की तरफ़ चलती है और एक ऐसी भी गैस है जो नीचे की तरफ़ भागती है ।
यद्यपि आधुनिक समय में आयुर्वेद चिकित्सा में भी इसी प्रकार के काल्पनिक सोच पर बल दिया जाता है । किंतु वास्तविकता में इसे बहुत सूक्ष्मता से समझने की ज़रूरत है ।
योगियों और ऋषियों के द्वारा यह एक प्रकार की चेतना है जो जीवन देती भी है और जीवन लेती भी है ।
मन की अवस्थाएँ जैसे जैसे बदलती है वैसे वैसे शरीर के कुछ मूल स्थान पर आवश्यकता से अधिक तनाव आता है जिसके कारण उदान और अपान वायु में असंतुलन आ जाता है ।
इस वर्कशॉप में इसी अपान और उदान वायु पर गंभीर चर्चा की जाएगी साथ साथ योग और प्राणायाम के माध्यम से कैसे निवारण किया जाय, बात की जायेगी ।
वर्कशॉप में सममित विषय:
अपान और उदान वायु क्या है ?
अपान और उदान वायु का मूल कारण क्या है ?
अपान और उदान वायु उपाय क्या है ?
योग और प्राणायाम के माध्यम से कैसे उपाय निकाला जाय ।
भोजन कैसा होना चाहिए ?
उदान वायु:
ये ऊपर की ओर जाने वाली प्राण वायु है जो अधिकांशतः ऊर्ध्वगामी गतिविधियों को नियंत्रित करती है । उदान वायु के सम्बंध में उत्साह, आत्मविश्वास, उद्दीपन, नेत्रों की चमक, भूतल के उच्च स्तर पर ताकत, पेट व गले में की मजबूती शामिल होती है।
यह न केवल नाभि के ऊपरी हिस्से को नियंत्रित करती है बल्कि विचारों को भी कहीं ना उत्तेजित और अवरुद्ध करने में से मदद करती है ।
सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर इस वायु की उत्पत्ति मन के उस अवस्था से होती है जिसमें हर पल काल्पनिक निर्माण की प्रक्रिया चल रही होती है ।
मेरे स्वयं के अनुभव में मन अपनी आँखों के माध्यम से रूप रंग और आकार के निर्माण की क्षमता जब बहुत तीव्रता से बढ़ाता है तब इस उदान वायु की उत्पत्ति होती है ।
इसीलिए मैं इस वायु पर बहुत ही गंभीरता से बात करने की सलाह देता हूँ ।
आज के आधुनिक युग में महत्वपूर्ण इंद्रिय आँखों पर जितना भार बढ़ता जा रहा है उतना ही समस्या उदान वायु की बढ़ती जा रही है ।
इस वर्कशॉप में इस वायु पर योग एवं प्राणायाम के माध्यम से नियंत्रण कैसे किया जाये । इस पर चर्चा होगी
अपान वायु:
ये नीचे की ओर जाने वाली प्राण वायु है जो शरीर की बाहरी और आंतरिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करती है। अपान वायु से जुड़े हुए गुणों में सांस लेने, गर्भाशय, मूत्राशय, विसर्जन, गुदा की का क्रियात्मकता, आंतों की क्रियाशीलता इत्यादि ।
सत्य यह है कि यह नाभि के निचले हिस्से पर कार्य करती है । इसका संबंध मन के उस संकुचित स्वभाव से है जिसमें मस्तिष्क में संकुचन होता है जिससे आँतों में भी संकुचन का भाव पैदा होने लगता । इसी के कारण आतें अपने मूल स्वभाव में नहीं रह पाती हैं ।
इसी कारण
IBS , गैस्ट्रिक , कब्ज़, गुद द्वार में लकवा मार जाना इत्यादि अनेकों असहजताएँ पैदा होने लगती हैं ।
Online Workshop on - Apaan and Udaan Vayu
Generally, when we hear the name of Prana-Vayu (the vital breath), our mind starts imagining gas. Similarly, when we hear the name of yoga, the image of asanas (postures) starts to form in our minds.
The mind believes that there is a gas in the body that moves upwards, and there is also a gas that moves downwards.
Although in modern times, Ayurvedic medicine also emphasizes on such imaginative concepts, in reality, it is necessary to understand it with great subtlety.
This is a kind of consciousness that is given and taken by yogis and sages.
As the states of the mind change, tension arises at certain fundamental points in the body, causing imbalance in the Udaan and Apaan Vayu (upward and downward breath).
In this workshop, there will be a serious discussion on Apaan and Udaan Vayu, along with exploring how to address them through yoga and pranayama.
Topics covered in the workshop:
What is Apaan and Udaan Vayu?
What is the root cause of Apaan and Udaan Vayu?
What are the remedies for Apaan and Udaan Vayu?
How can solutions be derived through yoga and pranayama?
What should be the ideal diet?
Udaan Vayu: It is the upward-moving vital breath that primarily controls vertical movements. Udaan Vayu is associated with enthusiasm, self-confidence, stimulation, brightness in the eyes, strength at a higher level of the earth element, and strength in the abdomen and throat.
It not only controls the upper portion of the navel but also helps to keep thoughts from becoming agitated and suppressed. When viewed with subtle perception, the origin of this breath arises from the state of mind where the process of constant imaginative creation is taking place.
Based on my personal experience, when the mind intensifies its ability to create forms, colours, and shapes through the medium of the eyes, the emergence of Udaan Vayu occurs. Therefore, I strongly recommend discussing this breath with seriousness.
In today's modern age, as the importance of sensory organs, especially the eyes, continues to increase, the issue of increasing Udaan Vayu becomes more prominent. In this workshop, we will discuss how to control this breath through yoga and pranayama.
Apaan Vayu: It is the downward-moving vital breath that controls the body's external and internal processes. The qualities associated with Apaan Vayu include respiration, uterus, urinary bladder, elimination, the functionality of the anus, and the dynamism of the intestines.
Indeed, it primarily operates in the lower portion of the navel. Its connection is with the contracted nature of the mind, which leads to contraction in the brain, thereby inducing contraction in the intestines. Due to this, the vital breaths cannot remain in their original nature.
As a result, various discomforts such as IBS, gastritis, constipation, Rectum paralysis and stroke in the anus arise.
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