महर्षि पतंजलि योग दर्शन -II
यह आत्म दर्शन का सबसे अच्छा व्यावहारिक दर्शन है जिसमें मन , इंद्रिय और देह से संबंधित सभी समस्याओं का सूक्ष्म अध्ययन और समाधान किया गया है । योगी अनूप ने अपने अनुभवों से इसकी एक नई व्याख्या किया जिसमें देह और मन पर क्या क्या दुष्प्रभाव होते है , यह बताने का प्रयत्न किया जाएगा ।
योगी अनूप द्वारा महर्षि पतंजलि के सूत्रों पर आध्यात्मिक व्याख्या किया जा रहा जिसके माध्यम से न केवल आत्म दर्शन बल्कि उसके माध्यम से मन, इंद्रियों और देह पर उसका प्रभाव कैसे पड़ता है , यह बतलाया गया है ।
"उनकी साधना के अनुसार “अपने स्वरूप में स्थित हो जाना ही पूर्ण स्वस्थ होना है।” यदि आत्म स्वरूप का अनुभव बहुत वैज्ञानिक और ज्ञानात्मक ढंग से किया गया तो देह और इंद्रियों पर रोगों के लक्षण समाप्त हो जाते हैं किंतु वहीं पर यदि इंद्रियों को तनाव देकर आत्मानुभूति प्राप्त करने की कोशिश की गई तो भविष्य में आध्यात्मिक गुरुओं को भी भयंकर रोगों का सामना करना पड़ता है । “
“ स्वस्थ होने का मूल अर्थ है कि स्वयं के स्वरूप में स्थित हो जाना । मन का नहीं बल्कि स्वयं के भागने का बंद हो जाना । हम दोषी मन को देते हैं , जब कि दोषी हम स्वयं हैं । जब तक मन को दोष देंगे ज्ञान नहीं प्राप्त होगा । अनुभव की गहराई नहीं बढ़ेगी । यही योग दर्शन के माध्यम से जानने का प्रयत्न करना है ।”
“ध्यान दें, स्वयं के स्वरूप में स्थिर हो जाने पर आत्मा का इंद्रियों और देह पर अनावश्यक दख़लंदाज़ी बंद हो जाती है, उसे यह अनुभूति होने लगती है कि मैं स्थिर और शांत हूँ । इसी कारण सभी दैहिक अंग भी स्वयं में स्वस्थ अनुभव करते हैं ।”
“वृत्ति, विचार नहीं बल्कि विषय को पकड़ने की एक आदत है । इसी आदत को स्वभाव समझ लिया जाता है । इसी आदत में दो भेद कर दिये गये , एक अच्छी आदत और दूसरी बुरी आदत । “
“वृत्तियों का रोगों से क्या संबंध है , चित्त को किस प्रकार से दूषित करके देह और इंद्रियों में रोगों को पैदा करता है , इस पर पतंजलि योग दर्शन के माध्यम से योगी अनूप द्वारा गंभीर चर्चा की जा रही है ।”
“चित्त और वृत्ति को समझना ही योग और अध्यात्म को समझना है यदि किसी साधक में यह समझने की कला जागृत हो गई तो वह देह और इंद्रिय को ही नहीं बल्कि स्वयं को शांत और स्थिर करने में पूर्ण रूप से सफल होगा ।”
चित्त की आदत है वृत्तियों के निर्माण की , उसी आदत को समझना है इस दर्शन के माध्यम से ।
इस कोर्स में सम्मिलित विषय -
महर्षि द्वारा दिये गये सूत्रों के माध्यम से वृत्तियों द्वारा चित्त को किस प्रकार से रोगी होना पड़ता है , और साथ साथ चित्त के रोगी होने से देह और इंद्रियों पर इसका दुष्प्रभाव कैसे पड़ता है , इस व्याख्या किया जाएगा । साथ साथ ध्यान और प्राणायाम के माध्यम से उन समस्याओं का समाधान भी करने का प्रयत्न किया जाएगा ।
इस कोर्स में योग दर्शन के ग्यारहवें सूत्र (11th to 34th Sutras) से लेकर चौतीसवें सूत्र तक की व्याख्या की जाएगी । किंतु सूक्ष्म रूप से इसके पहले के सूत्रों पर भी थोड़ा समझने का प्रयत्न किया जाएगा । जिससे समझने में आसानी होगी ।
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