Tada asana ( I & II level)
Spinal Preparation (Spine +Brain)
Mahamudra + Ujjai
Mahabandha + Ujjai (Mool+Uddyan+Jalandhar)
Chakra Cleaning (Tantrika Tantra)
Sushumna Nadi Activation
Kriya Yoga Technique (11 Times)
Lay dhyan
क्रिया योग;
क्रिया-योग में ‘क्रिया’ शब्द का मूल अर्थ एक विशेष कर्म (टेक्नीक) से और ‘योग’ शब्द का मूल आध्यात्मिक अर्थ अलगाव से होता है । यहाँ पर अलगाव अर्थ क्रिया से अलगाव का होना है । अर्थात् जो क्रिया कर्ता के द्वारा किया जा रहा है उसी से कर्ता स्वयं को अलग कर लेता है । अर्थात् एक ऐसी क्रिया जो कर्ता को सभी कर्मों से मुक्त करवा कर अक्रियता की अवस्था में स्थित करवा देता है । इसे ही पूर्ण मोक्ष कहा जाता है ।
राज योग में क्रिया योग एक विधि के रूप में देखा जाता है जिसका श्रोत महावतार बाबा से देखा जाता है । यह विधि प्राणायाम और विज़ूलाइज़ेशन के आपसी संयोग के द्वारा निर्मित की गई जो अत्यंत ही तीव्र फल देने वाली होती है । विज़ुअलाइज़ेशन और प्राण के संयोग से रीढ़ और मस्तिष्क में न्यूरॉन्स को सक्रिय क्रिया जाता है । मेरे अनुभव में इस क्रिया योग के द्वारा रीढ़ और मस्तिष्क में उन न्यूरोट्रांसमिटर्स को जो कहीं ना कहीं शिथिल व कम सक्रिय अवस्था में होते हैं , उसे सक्रिय कर दिया जाता है ।
विज़ुअलाइज़ेशन और प्राणायाम के माध्यम से रीढ़ और मस्तिष्क जो स्थित न्यूरोट्रांसमिटर्स को सक्रिय करके सेरोटोनिन जैसे रसायन की मात्रा को बढ़ा देता है । यह रसायन मानसिक स्थिरता के लिए सबसे अधिक उत्तरदायी माना जाता है । जैसे भक्तियोग भावनाओं के माध्यम से डोपामाइन जैसे फील गुड व सुख आनंद वाले रसायन को बहुत तीव्रता के साथ सक्रिय करता है वैसे ही क्रिया योग की राजयोगीय पद्दति सेरोटोनिन को सक्रिय कर देता है । इससे मानसिक स्थिरता , विचारों के परे होने का अनुभव बहुत शीघ्रता से प्राप्त कर लिए जाता है ।
मेरे अपने अनुभव में क्रिया योग की इस पद्धति में न्यूरो ट्रांसमीटर पर सबसे अच्छा प्रभाव पड़ता है - बजाय के हार्मोन्स के । मेरे द्वारा की प्रयोगों में क्रिया योग विधि का प्रभाव ग्रंथियों में कम , न्यूरॉन्स में सर्वाधिक होता हुआ दिखता है । ध्यान दें ग्रंथियों द्वारा रस व हार्मोन्स रक्त में छोड़े जाते हैं जिसका प्रभाव बहुत देर में पड़ता है किंतु विज़ुअलाइज़ेशन और प्राणायाम (क्रिया योग) के सयुंक्त अभ्यास के द्वारा न्यूरोट्रांसमीटर जो मस्तिष्क और रीढ़ में होते हैं ,सक्रिय करके प्रभाव को बहुत तीव्रता से होता है ।
वैज्ञानिक दृष्टि; वैज्ञानिक दृष्टि से मस्तिष्क में सेरोटोनिन मुख्य रूप से एक न्यूरोट्रांसमिटर के रूप में कार्य करता है जो तंत्रिका कोशिकाओं के बीच संदेशों को भेजने में मदद करता है। यह मूड, भावनाओं, नींद, भूख और स्मृति को नियंत्रित करता है। इसकी मात्रा मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र में बहुत ही कम होती है ।
शरीर में सेरोटोनिन शरीर में, सेरोटोनिन का अधिकांश हिस्सा (लगभग 90%) आंत (gut) और रक्त प्लेटलेट्स में पाया जाता है। यहां यह एक हार्मोन के रूप में कार्य करता है ।
आध्यात्मिक दृष्टि; आध्यात्मिक दृष्टि से प्राणायाम और विज़ूलाइज़ेशन (क्रिया योग) के माध्यम से इसी सेरोटोनिन की मात्रा को जो मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र में बहुत कम मात्र में मौजूद होता है, वृद्धि कर देता है ।
रीढ़ और मस्तिष्क में इसे सक्रिय करके तंत्रिका कोशिकाओं को बेहतर कर दिया जाता है जिससे सेरोटोनिन रसायन में वृद्धि हो जाती है । इसकी वृद्धि से चित्त में स्थिरता को बहुत आसानी से प्राप्त कर लिया जाता है । चित्त की स्थिरता का अर्थ विचारों व वृत्तियों के व्यापार से मुक्ति । व्यक्ति जिस प्रकार से निद्रा में अल्प काल के लिए विचारों से मुक्त रहता है वैसे ही जागृत अवस्था में गहन निद्रा जैसी अवस्था को इस विधि के द्वारा प्राप्त कर लिया जाता है ।
इसी के आधार पर मैं हमेशा कहता हूँ कि यह अभ्यास मन इन्द्रिय के साथ साथ शरीर के किसी भी विकार को शीघ्रता के साथ दूर कर किया जा सकता है । देह में किसी भी प्रकार के हलचल (वात और पित्त) को स्थिर कर देने में कामयाब हो जाता है । वह इसलिए क्योंकि सेरोटोनिन की वृद्धि स्थिरता ही प्रदान करती है ।
इसलिए कि स्थिरता को मैं देह और मस्तिष्क की हीलिंग के लिए सबसे अधिक जिम्मेवार मानता हूँ । यहाँ तक के इंफ्लेमेशन, पेट व देह में होने वाले घावों को भी हील किया जा सकता है । वह इसलिए क्योंकि सेरोटोनिन का अधिकांश हिस्सा आँतों में भी होता है ।
यह सिद्ध है जिस क्रिया से मनः स्थिरता का अनुभव अधिक होता है वह आँतों ही नहीं बल्कि देह के सभी प्रमुख हिस्सों की स्वाभाविक हीलिंग करते हैं ।
किंतु ध्यान दें इस क्रिया योग का अभ्यास अनुभवी एवं तार्किक गुरु के सख़्त निरीक्षण में ही किया जाना चाहिए । वह इसलिए क्योंकि यह विज़ुअलाइज़ेशन और प्राणायाम के मिश्रण पर आधारित एक विशेष क्रिया है ।
कुछ भ्रम; ज्यादातर साधक पिट्यूटरी और पीनियल ग्लैंड को इसके द्वारा अधिक सक्रिय मानते हैं किंतु मेरे अपने अनुभव में सेरोटोनिन की सक्रियता अधिक होती है । एक उदाहरण से समझने का प्रयास किया जा सकता है । एक ग्लास पानी (रक्त) में एक बूंद लाल रंग (हार्मोन्स) डाल दिया जाय तो उसकी घुलनशीलता पूरे पानी (देह के रक्त) में धीरे धीरे जाता है । किंतु उसी पानी में विधुत तरंग को छुवा दिया जाये तो उसकी गति कहीं अधिक तीव्र होगी । इसी प्रकार से क्रिया योग रासायनिक तरंगों (सेरोटोनिन) की वृद्धि करके स्थिरता प्रदान करता है । स्थिरता का मूल अर्थ ही है भावातीत होना है ।
अंततः क्रिया योग की विधि से विधुत तरंगे व रासायनिक संकेत इस पूरे मस्तिष्क एवं देह में पहुँचाने का कार्य करता है जिससे इन्द्रियाँ और मन पूरी तरह से शांत और स्थिर हो जाता है । यही स्थिरता का बोध साधक को रोगों से आत्मस्थित देता है । यह समस्त ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों को ढीला कर देता है ।
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