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Meditation For Vata Dominant (Online Workshop)


तारीख़ (Date) - 16th & 17th July 2022

दिन (Day) - शनिवार और इतवार , 2 घंटे प्रतिदिन (Online) 

स्थान (Place) - Online video at Zoom  

क़ीमत (Price) - 2100 INR 

Payment Mode - Booking online via website  

भाग लेने वालों की संख्या - केवल 11 Participants only


वर्क्शाप में सम्लित विषय  
  • ध्यान के इस वर्क्शाप में शरीर के कुछ प्रमुख अंगों को ढीला करने की पद्धति सिखायी जाएगी जिससे इंद्रियों को तुरंत ढीला और शांत किया जा सकता है । 


  • इंद्रियों को और गहराई में ढीला करके मन को शून्यता में ले जाना जिससे वह शरीर के आँतों में जो वायु का क्षेत्र है,  नियंत्रित कर देता है । 


  • मन ही पाँचों प्रकार की वायु को जन्म देता है, इसीलिए इस ध्यान की वर्क्शाप में मन और इंद्रियों को शिर करने की कला सिखायी जाएगी जिससे शरीर के अंदर वायु के सभी क्षेत्रों में वायु का असंतुलन न हो । 


  • सामान्यतः मनो वात रोगी; इन्हें जीवन भर ज्ञान ही नहीं हो पाता कि कि मन के कारण वात में असंतुलन होता है । उन्हें हमेशा इस बात शिकायत होती है कि वात रोग से मन दुखी व परेशान होता है । 


  • मनुष्यों में जन्म से ही स्वभाव भिन्न भी होता है,  उनमें से अधिकतर वात स्वभाव के लोग होते हैं जो किसी न किसी कारण अज्ञानतावश स्वयं के मन को एक दिशा नहीं दे पाते जिससे भविष्य में शरीर को रोगों को आमंत्रित कर देते हैं । इस वर्क्शाप में इनहि सभी रहस्यों पर विचार विमर्श किया जाएगा जिससे वात रोगी स्वयं की समस्याओं को स्वयं के द्वारा ठीक कर सके । 


  • इंद्रिय और मस्तिष्क का सूक्ष्म भोजन मन के ख़त्म हो जाने पर ही मिलता है । मन की सबसे बड़ी खोज ध्यान है जिसके द्वारा मन ने स्वयं के मन के अस्तित्व को ही समाप्त कर दिया । इस वात ध्यान में मन को कैसे शून्य कर दिया जाए यह सिखाने का प्रयत्न किया जाएगा । 


  • ध्यान के इस वर्क्शाप में इंद्रियों को कैसे स्थिर किया जाए, इस महत्व दिया जाएगा । माध्यम से उदान, समान और अपान वायु पर कैसे नियंत्रण किया जाए । 


  • वात मन की भूख शब्द और आकाश । इसी के माध्यम से उसकी अस्थिरता को शांत किया जा सकता । मन का सबसे अधिक लगाव शून्यता और शब्द से होता है । इसलिए स ध्यान पद्धति के द्वारा हम उसको भी समझने का प्रयास करेंगे । 


वात ध्यान के विषय में मेरा अनुभव 
यह मनुष्य शारीरिक रोगों से कम मानसिक रोगों से अधिक पीड़ित हैं । यद्यपि उसके 90 फ़ीसदी शारीरिक रोगों का मूल कारण उसका स्वयं का अनियंत्रित मन ही होता है । मन और अतींद्रिय इतना सूक्ष्म है कि उसमें रोग पहले नहीं दिखते हैं । यह मन सबसे पहले इंद्रियों में चंचलता के रूप में रोग को दिखाना शुरू करता है , कुछ वर्षों के बाद देह में रोग दिखना शुरू होता है । 

यही कारण है कि मन और इंद्रियों के थकने तथा अनियंत्रित होने से शरीर की नसों और नाड़ियों पर दुष्प्रभाव अधिक देखने को मिलना शुरू हो जाता है । 

मेरा आध्यात्मिक सूक्ष्म अनुभव मन को ही वायु का मूल कारण मानता है । वायु स्थूल है और मन सूक्ष्म , मन जितना भागता है उतना ही इंद्रिय और देह में वायु का चलन बढ़ता है । उतना ही वायु का देह में दबाव बढ़ता है । किसी भी बच्चे के स्वभाव को देखकर ही यह बताया जा सकता है कि उसकी वायु कितनी तीव्र है । यहाँ तक कि भविष्य में उसमें क्या क्या समस्याएँ होंगी यह बहुत हद तक बताया जा सकता है । 


ध्यान दें वायु के बारे में इंद्रियों और शरीर के लक्षणों को देखकर आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है किंतु मन को सीधा देखा नहीं जा सकता । उसे देखने का केवल एक ही उपाय है इंद्रियों का चाल चलन । ज्ञानेंद्रिय इंद्रियों में आँख, साँस और स्वाद से एवं शरीर में आमाशय और आँतों के माध्यम से वायु के दबाव का अंदाज़ा लगाया जाता है । 

देह में यह उस प्रत्येक जगह जहां पर ख़ाली स्थान अधिक मात्रा में है उस स्थान पर वायु का एक घेरा बना हुआ होता है किंतु मन और इंद्रियों की गति देह के उन सभी ख़ाली स्थानों में असंतुलन पैदा करके रख देती हैं । 

ध्यान दें मन के असंतुलन होने से देह में उदान वायु सर्वाधिक रूप से असंतुलित होती दिखती है । उदान वायु का अर्थ है नाभि के 6 इंच ऊपर डाइअफ़्रैम (diaphragm) है । यह स्थान सबसे अधिक तनाव में आता है जिससे इंद्रियाँ और मन सम्भाले नहीं सम्भलता है । 

Meditation For Vata People (Online Workshop)

Content Hours: 3 hour(s)
Fee: 2100/-
Duration : 2 Days
From 2023-05-27 To 2023-05-27

Copyright - by Yogi Anoop Academy