कई ऋषियों ने स्मृति को ज्ञान का साधन स्वीकार किया है, यद्यपि वह ज्ञान का प्रमुख साधन है भी । इसे स्वीकार करने में कोई भी संशय नहीं होना चाहिए । यहाँ तक कि मनुष्य ही नहीं बल्कि समस्त जीवों में स्मृति का अपना महत्व होता है । यहाँ तक कि बिना स्मृति के स्वयं का भान होना भी संभव नहीं है ।
किंतु यहाँ पर इस सत्य को भी प्रकट करना उचित होगा कि मनुष्यों के द्वारा इस ‘स्मृति’ जैसे प्रमुख साधन का सबसे अधिक दुरूपयोग किया गया है ।
इसी दुरुपयोग के कारण स्वयं की इंद्रियाँ,मन, मस्तिष्क और शरीर के कई प्रमुख अंग अपने स्वभाव में नहीं रह पाते हैं । यहाँ तक कि देह , मस्तिष्क व सभी प्रमुख अंतरंग आयातित स्मृति के प्रभाव में आकर स्वयं की स्मृति को भुलाने लगते हैं ।
बाहरी संसार से जो भी विचार अंदर स्मृतियों में भरे जाते हैं, यदि उसका प्रभाव बहुत अधिक है तो शारीरिक अंगों की अपनी स्मृति अस्वाभाविक होने लगती है । इसी के कारण रोग उड़ान होना प्रारंभ होने लगता है । इसी पर एक वर्कशॉप आयोजित किया जा रहा है ।
मैंने अपने जीवन के ध्यानुभव में पाया कि स्मृति के प्रभाव में सबसे अधिक डिप्रेशन रोग पाया गया । ऐसे अनेक आरजी और भी हैं जिन पर हम इस वर्कशॉप में बात करने का प्रयत्न करेंगे ।
इस वर्कशॉप में सममित विषय -
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