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ध्यान वर्कशॉप: अंतर्चिकित्सा 

“यथार्थ से हटकर स्वनिर्मित कल्पनाओं में विचरना ही तो रोग है”

     मानव मन की अब तक की सबसे गहरी खोज यही रही है — मन को शून्यतम स्थिति तक ले जाना। यह खोज जीवन की आपाधापी, भटकाव और क्लेश के मूल रहस्य को समझते हुए प्रारंभ हुई, और अंततः वहीं पहुँची जहाँ मन को स्वयं अपने रचे हुए जाल से मुक्त करना आवश्यक हो गया।

मनुष्य ने युगों तक प्रकृति के विविध तत्वों की आराधना की — कभी अग्नि, कभी वायु, कभी आकाश। परन्तु धीरे-धीरे यह अनुभूति गहरी हुई कि इन्द्रियों के बाहर जितना अधिक मन का विस्तार होगा, उतनी ही उसकी उलझनें भी बढ़ेंगी। और अंततः, मन अपने ही फैलाव के कारण बंधनों में जकड़ता चला जाएगा, मुक्त नहीं होगा।

यह स्थिति कुछ उसी प्रकार की है जैसे मकड़ी अपने ही बुने जाले में जितना छटपटाती है, उतना ही और फँसती जाती है। मन का व्यवहार भी ऐसा ही है — वह जितनी कल्पनाएँ रचता है, उतना ही वे कल्पनाएँ उसे बाँधती चली जाती हैं।

ऋषियों-मुनियों ने इसी गुत्थी को सुलझाने के लिए हजारों वर्षों की तपश्चर्या में ध्यान की खोज की। यह कोई साधारण क्रिया नहीं थी — यह एक आत्मिक प्रयोग था, जो मन को शून्य की ओर ले जाता है, जहाँ “मैं” की पूर्ण अनुभूति होती है।

व्यक्तिगत साधना की झलक:

मेरी अपनी लगभग 40 वर्षों की ध्यान यात्रा में अनेक अनुभवों से गुज़रना पड़ा — कभी तीव्र प्रकाश, कभी गहरा अंधकार, कभी रोमांचकारी ऊँचाइयाँ और कभी भीतर की कटुता। परंतु यही यात्रा अंततः उस बिंदु तक पहुँचती है जहाँ साधक का “मैं” निर्विकल्प रूप में प्रकट होता है।

इस यात्रा में देह, मन और मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभाव तथा उनके समाधान की खोज स्वयं करनी पड़ी — जो ध्यान की विधियों को सही परिप्रेक्ष्य में समझे बिना संभव नहीं था।

ध्यान में बाधाएँ:

  1. ध्यान की समझ का अभाव — ध्यान प्रारंभ करने से पहले ध्यान क्या है, इसकी सही समझ न होना।

  2. ध्यान को एकाग्रता मान लेना — जबकि ध्यान और एकाग्रता में मौलिक अंतर है।

  3. साधक, साधन और साध्य में भ्रम — साधक यदि साधन को ही साध्य समझने लगे, तो मार्ग भ्रमित हो जाता है, इस पर गहन चिंतन। 

  4. बिना आत्म-अवलोकन के ध्यान करना — जिससे मन की गहराई में जाने की बजाय वह ऊपरी सतह पर ही भटकता है।

ध्यान के माध्यम से किन किन रोगों पर कार्य किया जाएगा:

1. विचारों का दमन:

मन की क्रिया व गतिक्रिया को न समझ पाने से उत्पन्न — जैसे विचारों का दमन, उनके विरुद्ध विद्रोह, अथवा अशुद्ध मानसिक आकांक्षाओं की ओर बढ़ती प्रवृत्ति।

2. चिंता और अवसाद: बेचैनी, हाथ-पैर काँपना, हृदय की गति बढ़ना, नींद का अभाव, आत्मग्लानि, आत्महत्या के विचार, जीवन की निरर्थकता का बोध.

3. तनावजनित शारीरिक समस्याएँ: अपच, कब्ज़, एसिडिटी, डाइफ़्राम में तनाव, हाई बीपी, डायबिटीज, हार्मोनल असंतुलन. 

4. भ्रम व वहम: छोटे रोगों को बड़ा समझना, कल्पना में आपदाओं से घिरा महसूस करना। स्वयं को कण कण में समझना, स्वयं को नगण्य अर्थात् कुछ न समझना । स्वयं को शून्य समझना इत्यादि. 

5. अनिद्रा: नींद न आना, रातभर सपनों में रहना, पेट के बल लेटने पर ही नींद आना, नींद में बड़बड़ाना या शरीर का अस्थिर रहना. 

6. साइकोसोमैटिक रोग: माइग्रेन , अल्सर , त्वचा और पेट संबंधी समस्याएँ . 

ध्यान में सिखाई जाने वाली विधियाँ:

1- डिटॉक्सीफिकेशन विधिशरीर और मस्तिष्क को शुद्ध करने की प्राथमिक क्रिया।

2- रिचार्जिंग विधि इन्द्रियों और मांसपेशियों की थकान को दूर करने की ध्यान प्रणाली।

3-बिंदु ध्यान साधना:  विशेष रूप से भ्रूमध्य पर केंद्रित साधना, जहाँ ध्यान का एक अत्यंत सूक्ष्म बिंदु विकसित होता है।

4- शून्य ध्यान:  ध्यान की वह अवस्था जहाँ मन स्वयं अपने से परे हो जाता है — विचारहीन परंतु जागरूक।

5- “मैं” की अनुभूति: “एतत् अस्ति, एतत् अस्ति” — “यह है, यह है” — ध्यान के इस स्तर पर साधक अपने अस्तित्व की जड़ तक पहुँचता है और केवल इतना अनुभव करता है — “मैं हूँ, मैं हूँ।”

समापन: यह वर्कशॉप न केवल ध्यान को एक तकनीक के रूप में सिखाती है, बल्कि उसे जीवन की दृष्टि और अस्तित्व की गहराई से जोड़ती है। यहां ध्यान केवल मन को शांत करने की प्रक्रिया नहीं है — यह अपने होने की संपूर्णता में उतरने की साधना है।

ध्यान वर्कशॉप: अंतर्चिकित्सा

Content Hours: 6 hour(s)
Fee: 5100/-
Duration : 2 Days
From 2025-07-12 To 2025-07-13

Copyright - by Yogi Anoop Academy