शवासन एवं योग निद्रा ध्यान की पूर्ण व्यावहारिक, आनुभविक और दार्शनिक व्याख्या योगी अनूप के द्वारा इस टीचर ट्रेनिंग में किया जा रहा है । यह कोर्स उन सभी लोगों के लिए है जो योग की गहनता में जाने के इक्षुक हैं व योग के अध्यापक हैं । चूँकि यह साधना ध्यान में जाने के पूर्व स्वयं का इस इन कर्मेन्द्रियों और ज्ञानेंद्रियों से कैसे समन्वय किया जाये , बताता है । सामान्यतः इस साधना कर्मेन्द्रियों और ज्ञानदेन्द्रियों से जुड़ना सिखाया जाता है किंतु मेरी साधना में इन सभी इंद्रियों के माध्यम से हम जुड़ना नहीं बल्कि जो आवश्यकता से अधिक जुड़े हैं उसे ढीला करना सिखाया जाता है । एक मांसपेशी (मस्तिष्क) देह के अन्य सभी माँसपेशियों को पकड़े हुए हैं और देह के सभी मांसपेशियाँ मस्तिष्क की मांसपेशियों को पकड़े हुए है । यह एक दूसरे को पकड़े हुए हैं । यहाँ तक तो ठीक है किंतु यही माँशपेशियाँ जब एक दूसरे को आदतवश या मजबूरीवश बहुत अधिक खींचने लगती हैं तब समस्या व रोग पैदा होने लगता है ।
ध्यान दें मस्तिष्क की माँशपेशियाँ देह की माँसपेशियों को अनैक्षिक रूप से पकड़े हुए हैं और साथ साथ देह की माँसपेशियाँ मस्तिष्क की माँसपेशियों को अनैक्षिक रूप से पकड़े हुए हैं । एक दूसरे से जुड़ने की यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है । किंतु मानसिक और दैहिक समस्या और रोग तब पैदा होने प्रारंभ होते हैं जब ये आपस में एक दूसरे से बहुत ऐक्षिक रूप में जुड़ कर दख़लंज़ाजी करने लगते हैं ।
इसी को समझने और इसके निराकरण के लिए शवासन, योग निद्रा और चक्र ध्यान की खोज हुई । योगियों और ऋषियों ने इस साधना के द्वारा रोगों (मानसिक और दैहिक) का निराकरण तो किया ही है साथ साथ इसके माध्यम से स्वयं का ज्ञान भी करवाया है ।
इसे कुछ ऐसे समझने का प्रयास करें - स्वयं का माँसपेशियों को अनुभव करना , उस अनुभव के माध्यम से उसे शिथिल करके उसमें स्वतः हीलिंग करवाना और साथ साथ माँसपेशियों के अनुभव के आधार पर स्वयं का भी अनुभव करना ।
इस टीचर ट्रेनिंग में इसी गूढ़ता को समझने का प्रयास अभ्यास और दर्शन के द्वारा किया जायेगा ।
1- शवासन | कर्मेन्द्रियों की निद्रा
कर्मेन्द्रियाँ
पैर जिसमें पिंडली, जाँघ और हिप की माँसपेशी प्रमुख रूप से समलित् है । हाथों में भी सभी मांसपेशियों को , मुँह में जबड़ों और जीभ की माँसपेशियों को , मूत्र मार्ग और गुदा द्वार इत्यादि सभी सूक्ष्म कर्मेन्द्रियों में स्वयं की उपस्थिति दर्ज करवाना हमारा ध्येय होता है । इन सभी मांसपेशियों में बिना तनाव दिये स्वयं को अनुभव के द्वारा उन सभी हिस्सों में पहुँचाना रोगों को दूर करना है ।
इस शवासन के अभ्यास के द्वारा इन्हीं ऐक्षिक मांसपेशियों को बिना तनाव दिये ढीला किया जाता है । इसके माध्यम से उन सभी अनैक्षिक अंगों में स्थित समस्याओं को ठीक करने का प्रयत्न किया जाता है । यह एक ऐसी विधि है जिसमें किसी भी माँसपेशियों में जिसमें तनाव मौजूद है किंतु उसका ज्ञान सामान्य मनुष्यों को नहीं होता है, मांसपेशियों को बिना और तनाव दिये तनाव रहित कर दिया जाता है ।
हम अपनी ही माँसपेशियों को पकड़ने में इतने अधिक अभ्यस्त हो जाते हैं कि हमें लगता ही नहीं कि हमने उन सभी माँसपेशियों को खींच रखा है । यहाँ तक कि वैचारिक क्रिया इतनी अधिक हो जाती है कि हम अपनी माँसपेशियों को स्वतः ही खींच लेते हैं । यही खींचने और तनाव देने की आदत कुछ वर्षों में सामान्य सी लगने लगती है । उन्हें लगता ही नहीं कि उन्होंने तनाव और खिंचाव दिया है ।
यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात यह है कि न केवल मन ने देह को पकड़ रखा है बल्कि देह ने भी मन को पकड़ और खींच रखा रखा है । देह की अपनी गुरुत्वाकर्षण और मन की अपनी गुरुत्वाकर्षण , ये डॉन एक दूसरे को आपस में खींचे हुए हैं । तनाव दिये हुए हैं । यही कारण है कि इन्ही खिंचाव की अति से देह में और मस्तिष्क में अस्वास्थ्य बढ़ना प्रारंभ हो जाता है । देह में वायु का दबाव और इंद्रियों तथा मन में चंचलता (एकाग्रता का स्पैन कम होना) का बढ़ना शुरू हो जाता है ।
यहाँ पर इस साधना में कर्मेन्द्रियों के माध्यम मस्तिष्क की माँसपेशियों को शिथिल करवाया जाएगा और मस्तिष्क की मांसपेशियों के माध्यम से कर्मेन्द्रियों को शिथिल करवाया जाएगा । इसी एक दूसरे के शिथिलता से देह के अंदर के सभी अस्वस्थ अंगों को और मस्तिष्क के अंदर अस्वस्थ अंगों को शिथिल करके हील करवाया जाएगा ।
पैर -पिंडली, जाँघ और हिप की माँशपेसिया । (पैर की सभी माँसपेशियाँ)
हाथ - निचली बाँह, ऊपरी बाँह , भुजाएँ इत्यादि । (हाँथों की सभी माँसपेशियाँ)
गुदा और जननेंद्रिय - इन इंद्रियों के द्वारा आँतों लिवर , किडनी तथा मूत्राशय से संबंधित ।
जबड़ा- जबड़े के माध्यम से मस्तिष्क , आमाशय, आँतें , नाभि , गला , थाइरोइड, इत्यादि ।
Yoga Nidra | Sleep of The Five Sense Organs
आँखें - मूल गुण दृश्य
मेरे अंतरतम अनुभवों के आधार पर यह प्राप्त होता है कि मन मस्तिष्क स्मृति, पेट लिवर इत्यादि सभी प्रमुख अंगों में आँखों की दख़लंदाज़ी होती है । चूँकि आँखें अन्य सभी इंद्रियों से ताकतवर होती हैं और ये व्यक्ति की एकाग्रता के लिए सबसे अधिक उत्तरदायी होती हैं । इन आँखों के माध्यम से मन और स्मृति में सबसे अधिक भार वाली वस्तुओं का का भंडारण होता है । चूँकि आँखें वस्तु के रूप, रंग और आकार इत्यादि सभी को ग्रहण करने की क्षमता रखता है । एक सामान्य व्यक्ति को यह इंद्रिय सबसे अधिक रोग देती है । भक्ति योग का सबसे अधिक आधार यही इंद्रिय है ।
इसीलिए मैंने आँखों का मस्तिष्क से संबंध, आँखों का नींद से संबंध, आँखों का विचार रहित अवस्था से संबंध , आँखों लिवर से संबंध , आँखों का पेट से संबंध इत्यादि अनेक अंगों पर चर्चा करने का मन बनाया है । और साथ साथ यह सिद्ध भी करूँगा कि योग निद्रा के माध्यम से इन आँखों के द्वारा प्राप्त रोगों को कैसे कैसे हील किया जाये । आँखों से जो भी ग्रहण किया जाता है वह मस्तिष्क ही नहीं बल्कि सभी अंतरात्म स्थानों पर सबसे अधिक स्थान घेरती हैं ।
जिह्वा - का मूल गुण स्वाद
जिह्वा के माध्यम से उन सभी अंगों तक पहुँचने की क्रिया में मैं सफल रहा । स्वाद इंद्रियों के माध्यम से पेट और मस्तिष्क की तंत्रिका तंत्र तक पहुँचने में सफलता मैंने प्राप्त किया । वह इसलिए कि जिह्वा पर भिन्न भिन्न प्रकार के स्वादों को रख करके पेट, लिवर , आँतें और मस्तिष्क के अंदर ग्रंथियाँ किस प्रकार से रसों का निर्माण करती हैं , इन सबों का अनुभव का गंभीर विषय था । इसीलिए योग निद्रा के माध्यम से जिह्वा में स्थित तनाव को दूर करने पर मैंने बल दिया और इस पर अनेकों प्रयोग किए जो इस पूरे कार्य क्रम में शिष्यों को देने का प्रयत्न करूँगा ।
नासिका -मूल गुण गंध
नासिका एक ऐसा स्थान है जिसका मूल कार्य गंध को ग्रहण करना है , साथ साथ स्पर्श का भी अनुभव करना इसके माध्यम से होता है । योग निद्रा व प्राणायाम में गंध पर ध्यान न देकर स्पर्श के अनुभव पर अधिक ज़ोर दिया जाता है । इसी के माध्यम से मस्तिष्क एवं साइनस के पूरे क्षेत्र को में स्वयं के पहुँचने के मार्ग निष्कंटक कर दिया जाता है । यहाँ तक कि इसके माध्यम से विचारों पर विराम भी लगाने का प्रयत्न किया जाता है । मन को चित्र रहित कर दिया जाता है ।
Nose- Sensation to Brain , Hormones, Thoughtlessness, image lessness, Spiritual Growth,
त्वचा - मूल गुण स्पर्श
त्वचा इंद्रिय जिसका मूल गुण स्पर्श है , यह अन्य सभी इंद्रियों में भी छिपा होता है इसीलिए मैं इस इंद्रिय को सबसे अधिक ताकतवर मानता हूँ । योग निद्रा में इसी इंद्रिय के माध्यम से स्वयं को सभी इंद्रियों में ही नहीं बल्कि देह के सभी हिस्सों में अनुभव करने का प्रयास किया जाता है । यहाँ तक कि सभी इंद्रियों का अंतिम पड़ाव इसी इंद्रिय पर आकर गिरता है । जैसे जीभ पर बिना स्पर्श कराये स्वाद की अनुभूति संभव नहीं है । किसी भी गंध का नाक में बिना स्पर्श किये गंध का अनुभव करना संभव नहीं । आँखों में किसी भी चित्र का बाहर से आना बिना स्पर्श के संभव नहीं हो सकता है , ऐसे ही कानों में आवाज़ के आने की सत्यता है । मधुर व बहुत तेज आवाज़ के कानों में टकराने से से मस्तिष्क ही नहीं बल्कि हृदय पर भी उसका अनुभव होता है । इससे यह सिद्ध होता है इस देह के स्वामी का देह से संबंध स्पर्श से सर्वाधिक होता है । सीलिए मेरी साधना में स्पर्श का सबसे अधिक महत्व है । इसी योग निद्रा के माध्यम से मैं भिन्न भिन्न समस्याओं का निराकरण करने का प्रयत्न करता हूँ ।
कान - मूल गुण ध्वनि
योग निद्रा में ध्वनि के माध्यम से मस्तिष्क को शांत करने पर मैंने बहुत बल दिया है , इसमें आहत नाद और अनहद जैसे दोनों नादों पर ज़ोर देकर अभ्यास किया । एक ऐसी ध्वनि जिसके माध्यम से भावनाएँ पैदा होती है जो मन मस्तिष्क में तनाव के साथ साथ शांति भी देती हैं । इस प्रकार की ध्वनियाँ मन मस्तिष्क को किस तरह से तनाव में रखती हैं यह एक सामान्य व्यक्ति को ज्ञात होता ही नहीं है । मैं यहाँ पर ध्वनि के आयतन (volume) पर बात नहीं कर रहा हूँ । मैं यहाँ उस भावनात्मक ध्वनि से प्राप्त तनाव पर बात कर रहा हूँ , यह तनाव देह और मस्तिष्क के किन किन हिस्सों में अज्ञात रूप से रहता है , मालूम ही नहीं ।
योग निद्रा के माध्यम से इन तनावों को उस अनहद नाद (अनहद ध्वनि) के द्वारा समाप्त करने पर ज़ोर दिया जाता है । कहने का मूल अर्थ है कि एक ध्वनि के तनाव को दूर करने के लिए दूसरे ध्वनि का उपयोग किया जाता है ।
इस पद्धति से रोगों के निवारण पर चर्चा और अभ्यास किया जाएगा -
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