टर्टल योगा और प्राणायाम टीचर ट्रेनिंग कोर्स।
Date-30th Nov-1st Dec, 7th-8th Dec 2024
टीचर ट्रेनिंग कोर्स का विवरण :
मेरे अनुभव में जीवन में वृहद और व्यापक रोग धैर्य का अभाव है । यहाँ धैर्य का अर्थ सिर्फ़ वाह्य जगत में होने वाले धैर्य से नहीं है बल्कि ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों व देह पर मन के धैर्य की बात है । मन का देह और इन्द्रियों पर प्रतिक्रिया जितनी अधिक तीव्र और जल्दीबाज़ी में होती है उतना ही देह के अंग कमजोर होने की दिशा में बढ़ते हैं । यहाँ तक कि सोचने व विचार करने की प्रक्रिया में भी जल्दीबाज़ी हुई नहीं कि देह पर दुष्प्रभाव होने लगते हैं । इसी आधार पर टर्टल योगा टीचर ट्रेनिंग करने जा रहा है जो अनेकों आध्यात्मिक प्रगति करके दैहिक और मानसिक रोगों को समाप्त करने में मदद करेगा ।
यदि किसी भी टर्टल के चाल-चलन का गहराई से अवलोकन किया जाये तो उसकी ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेंद्रियों (चाहे वह आँख, नाक, जीभ, या हाँथ-पैर हों) —में होने वाली गति अत्यंत धीमी होती है । ध्यान से देखने पर उसके स्वभाव में ही धीरापन है संभवतः इसीलिए उसकी इन्द्रियों में मंद गति का होना स्वाभाविक होता है । इसी का परिणाम उसकी साँसों की गति में अत्यंत धीमापन देखा जा सकता है । यही कारण है कि वह अपने स्वभाव की गहराई व स्थिरता के कारण जीवन में अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करता है , साथ लंबी आयु भी लेता है ।
मैंने न इसके स्वभाव की गहनता को देखते हुए न केवल प्राणायाम में के तरीके में नवीनीकरण किया बल्कि योगा के कई पक्षों में जैसे आसन और ध्यान में भी नवीनीकरण करने का प्रयत्न किया ।
और साथ साथ इसके माध्यम से वायु और पित्त से संबंधित सभी रोगों पर इसका प्रयोग भी किया । प्रयोग के दौरान परिणाम बहुत चौंकाने वाले थे । स्वभाव के शांत और स्थिरता के बढ़ने पर वात और पित्त से संबंधित असंतुलन में अचानक नीचे आने की प्रवृत्ति देखा ।
इसीलिए टर्टल योगा और प्राणायाम टीचर ट्रेनिंग कोर्स का उद्देश्य प्रतिभागियों को स्थिरता के उस स्तर का बोध करवाकर जो कछुए की धीमी गति (आसन) और स्थिर श्वसन और इंद्रियों के संकुचन (ध्यान अर्थात् संसार से स्वयं को हटा लेना ) की शैली से प्रेरित करना है । इस कोर्स में न केवल आसन और सांस पर गहन समझ विकसित करना है बल्कि ध्यान के माध्यम से स्वाभाविक नियंत्रण और स्वभाव में स्थिरता की गहरी समझ प्राप्त करना है । इस अभूतपूर्व सत्र में, हम कछुए की प्राकृतिक लय और लंबी उम्र से प्रेरित होकर योग, प्राणायाम और ध्यान के माध्यम से शांति, संतुलन और स्थिरता लाने की कला का अभ्यास करेंगे ।
यदि ध्यान पूर्वक देखे तो भारतीय शास्त्रों में कछुए को विष्णु भगवान को अवतार के रूप में देखा गया । वह इसलिए की जिसकी इन्द्रियों में विजय हो, जो धन का स्वामी हो, जो पूर्णतः मंद चलायमान होते हुए भी पूर्ण स्थिर हो, जो निर्लिप्त है वही पूज्यनीय है । वही परमात्मा है ।
कर्मेन्द्रियों के प्रति जागरूकता:
कर्मेन्द्रियों में पैर, हाँथ, गुदा, मूत्रैंद्रिय के सूक्ष्म तंत्रों को नियंत्रित करने का अभ्यास । जिससे मस्तिष्क में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों श्वास-प्रश्वास की गति गहरी को गहन बनाने की क्रिया । इन अभ्यासों से देह में असंतुलित वायु और हाइपर एसिडिटी से संबंधित अनेक रोगों के नाश पर योगिक क्रियाएं ।
१- पिंडली की मांसपेशियों के अभ्यास के साथ श्वसन की क्रिया अभ्यास ।
२- जांघ की मांसपेशियों का अभ्यास । सूक्ष्म अभ्यास के मध्यम से स्वशन प्रणाली का अभ्यास तथा जो आँतों को तनाव रहित कर दे ।
३- हाँथों की सूक्ष्म मांसपेशियों के अभ्यास के समय श्वसन की क्रिया को समझना । इन मांसपेशियों के सूक्ष्म अनुभव से श्वसन प्रणाली तथा हृदय की गति को समझना ।
४- जनेन्द्रिय और गुदा अंग के माध्यम से मस्तिष्क के सूक्ष्म तंत्र को समझ कर विचारों को स्थिर करना । इस अंग के माध्यम से स्वशन प्रणाली की अनुभूति । यहाँ पर यह ध्यान देने योग्य बाते हैं कि इस सिद्धांत का उद्देश्य कर्मेन्द्रियों के माध्यम से स्वशन प्रणाली में नियंत्रण स्थापित करना । इस सत्य की अनुभूति करनी है कि जब कर्मेन्द्रियों में जागरूकता बढ़ायी जाती है तब उसका स्वशन पर कैसा प्रभाव पड़ता है । प्राणायाम किए बिना कैसे स्वशन और हृदय की क्रिया हो रही होती है , इसी को अनुभव करवाना इस टीचर ट्राइंग का उद्देश्य है ।
ज्ञानेन्द्रियों के प्रति जागरूकता:
इस सिद्धांत में ज्ञानेन्द्रिय के अभ्यास को प्रमुखता दी जाती है , जैसे आँखों के अभ्यास के समय (रियल टाइम) स्वशन की क्रिया पर कैसा प्रभाव पड़ता है । में ज्ञानेन्द्रियों और उनकी मांसपेशियों के व्यवहार के प्रति जागरूकता लाना चाहता हूँ जिससे श्वसन ही नहीं बल्कि हृदय, फेफड़ों, लिवर और वायु की गति को समझा जा सके । वायु की गति को नियंत्रित तभी किया जा सकता है स्वयं में स्थिरता हो । यदि स्वयं में ही अस्थिरता है तो वायु को स्थिर करना संभव नहीं । इसके उलट यह भी कहा जा सकता है कि वायु के तूफ़ान रूप धारण करने पर स्थिर चित्त भी अस्थिर हो जाता है । तो मैं बता दूँ यह अस्थिरता कुछ क्षणों की होती है । इसमें स्थायित्व नहीं होता है । यहाँ तक कि मेरे इस अभ्यास के माध्यम से तूफ़ान का आना ही रुक जाता है ।
वह स्वतः नियंत्रित ही नियंत्रित हो जाता है । इनके व्यवहार के द्वारा वात और पित्त से संबंधित रोगों पर नियंत्रण पूर्ण रूप से संभव है ।
टर्टल प्राणायाम का विषय :
मेरे द्वारा इस विधि में अनेकों प्राणायाम हैं किंतु सिर्फ़ तीन प्राणायाम पर ध्यान दिया जाएगा ।
१- पूरक स्टेप ब्रीथिंग I : जिसमें प्रयत्नपूर्ण रेचन के बाद यह क्रिया की जाती है ।
२- रेचन स्टेप ब्रीथिंग (पूरक एक बार में किया जाता है)
३- पूरक स्टेप ब्रीथिंग II (Full breathing) -रेचन प्रयत्न विहीन किया जाता है ।
ये ऐसे प्राणायाम हैं जो वायु और पित्त से संबंधित होने वाले सभी रोगों के उपचार के लिए उत्तम माने जाते हैं ।
मेरे अनुभव में इस प्रकार असंतुलन का मूल कारण स्वभाव में कहीं ना कहीं बहुत आपाधापी का होना ही पाया जाता है , अर्थात् चंचलता का होना पाया जाता है । इन सभी प्राणायाम के माध्यम से मन को सूक्ष्म अंगों के अनुभव पर केंद्रित कर दिया जाता है जिससे स्वभाव स्थिर और शांत हो जाता है । और परिणामस्वरूप वायु और पित्त का शमन स्वतः और स्वाभाविक हो जाता है ।
श्वास-प्रश्वास के प्रति जागरूकता:
प्राणायाम में कुछ ऐसी सूक्ष्म विधियां, और साथ साथ ऐसी व्यावहारिक धारणा से उसका अभ्यास किया जाता है जिससे स्वभाव में स्थिरता लाया जा सके । प्राणायाम में दो विधि पर अभ्यास होगा -
१- श्वास प्रश्वास की गति पर ऐक्षिक नियंत्रण कैसे किया जाये ।
२- स्वस्थ प्रश्वास पर अनैक्षिक नियंत्रण कैसे किया जाए ।
विशेष:
ध्यान दें कछुए के गहरी और धीमे गति से चलने वाली साँसों के पीछे का रहस्य उसके स्वभाव में छिपा हुआ रहता है । सामान्य मनुष्यों में यह भ्रम है कि साँसों की गति को धीमा कर देने से स्वभाव में बदलाव आ जाता है । स्वभाव में स्थिरता आती है किंतु वह क्षणिक समय के लिए ही होती है । इसीलिए रहस्य को समझकर अभ्यास करने वालों में स्थिरता स्थायी हो जाती है ।
शांत और स्थिर स्वभाव से धीरे और स्थिर गति में आंदोलन: कछुए की स्थिर गति से प्रेरित योग में ऐसे आसनों और प्राणायामों का अभ्यास करवाया जाएगा जो स्थायी स्थितत्व देता है । और यही रोगों को समाप्त तो करता ही है किंतु उसे पुनः नहीं आने देता ।
टर्टल ध्यान का विषय :
इस ध्यान पद्दति में क्रिया के माध्यम से विचारों से मुक्त करने का प्रयत्न किया जाता है । इस ध्यान पद्दति में मन को वाह्य जगत में स्थित किसी एक उद्देश्य पर केंद्रित किया जाता है , और उस उद्देश्य पर ध्यान करते हुए स्वयं में होने वाले परिवर्तन को अनुभव किया जाता है । उद्देश्य है किंतु वह शिथिल है, उस उद्देश्य को प्राप्त करना उद्देश्य नहीं है । बल्कि उसके माध्यम से “मैं” का अनुभव किया जाता है ।
ध्यान की इस पद्दति में सुषुम्ना नाड़ी ही सबसे अधिक क्रियाशील होती है । साथ साथ “रेस्ट एंड डाइजेस्ट” बेहतर धन से कार्य करता है । इसमें पैरासिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम को सक्रिय करने की तकनीकों पर चर्चा किया जाएगा ।
इसी को ध्यान में रखते हुए लंबी उम्र के सिद्धांत: पर भी चर्चा किया जाएगा किंतु जीवन की लंबाई के बजाय उसकी गुणवत्ता बढ़ाने पर मेरा अनुभव अधिक है । और मेरा ध्यान उसी पर केंद्रित होगा । किंतु साथ साथ सभी इन्द्रियों में और स्वशन तंत्र में धीमी गति को अपनाकर स्वास्थ्य और लंबी उम्र में सुधार करने के सिद्धांतों को समझने पर चर्चा किया जाएगा ।
कौन भाग ले सकते हैं :
कार्यक्रम में इन सभी विषयों व रोगों पर भी चर्चा किया जाएगा:
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