Loading...
...

Meditation Master (Offline Teacher Training Course)

अंतर्यात्रा (स्वयं के गुरु कैसे बनें) 


उद्देश्य: आत्म ज्ञान , स्वयं से सम्बंधित समस्त मानसिक शारीरिक और आध्यात्मिक समस्याओं का निराकरण तथा साथ साथ समाज को अपने द्वारा किए गए अनुभवों का प्रचार करना  जिससे उन्हें लाभ मिल सके । 


Eligibility Criteria: 

  • उम्र 40 वर्ष के ऊपर 

  • आध्यात्मिक रुचि 


समय सीमा - 2 वर्ष 

फ़ीस - 5100 प्रति महीने 2 वर्षों तक 

क्लास - महीने में  1 दिन , समय सीमा 3 घंटे की । 

सर्टिफ़िकेट - 2 वर्ष के निरंतर अभ्यास के बाद टीचर ट्रेनिंग सर्टिफ़िकेट स्वतः ही दे दिया जाएगा ।  


कोर्स का विषय -

  1. महर्षि पतंजलि - (अष्टांग योग)

  2. विवेक चूड़ामणि - (ज्ञान योग)

  3. अष्टावक्र गीता -  (ज्ञान योग)

  4. हठ योग -(शठकर्म, आसन, प्राणायाम, तंत्र, हीलिंग इत्यादि)


कोर्स क्यों करें -

लगभग 50 वर्ष की उम्र के बाद व्यक्ति को सबसे अधिक आत्म संतोष की आवश्यकता होती है, उसकी इंद्रियाँ और मन विचारों को ग्रहण करते करते थक चुकी हुई होती हैं । चित्त में वृत्तियों को इकट्ठा करते करते मन इंद्रियाँ और देह थक चुकी हुई होतीं हैं और वे आराम और शांति चाहती हैं । थकान का अनुभव कर उसकी अंतरात्मा अब उसे यह कहती है कि छोड़ना भी सीखो । हम सभी शरीर की मांसपेशियों, नाड़ियों, अंदर के सभी अंगों को जबरन खींचे हुए हैं, पकड़े हुए हैं , अपनी इंद्रियों को खींचे हुए हैं , अपने चित्त में वृत्तियों का अनंत भंडारण करते जा रहे हैं । 

इस भंडारण (storing) से संतुष्ट होने के बजाय और असंतुष्ट हो गए हैं । तनाव इतना अधिक हो गया है कि उसको आराम देने के लिए आधुनिक दवाइयों का सहारा लेना पड़ रहा है । 


किंतु अंतरात्मा चाहता है इन तनाओं से छुटकारा पाने के लिए ज्ञान का प्रयोग करना चाहता है , वह किसी बाहरी तत्व का सहारा नहीं चाहता । क्योंकि आधुनिक और अंधविश्वास की सहायता से उसके जीवन में आनंद नहीं आ पाता है ।


इसीलिए भारतीय ऋषियों ने हमेशा आध्यात्मिक साधना पर ज़ोर दिया, उन्होंने चित्त की गहराईं में जाकर यह समझ लिया था कि विचारों के उथल पुथल का प्रभाव मस्तिष्क और शरीर पर किस प्रकार से पड़ता है । उन्होंने यह अनुभूति कर लिया था कि देह में

रोगों का मूल कारण स्वयं की असंतुष्टि ही है । और उस असंतुष्टि का मूल कारण उसके चित्त में होने वाले वृत्तियों का अनावश्यक इकट्ठा करते रहना है । 


जहाँ तक मेरा स्वयं का अनुभव है, कि देह में रोग का प्रारम्भ आवश्यकता से अधिक विचारों और भावनाओं का चित्त में ग्रहण करना ही है । वह विचारों को अंदर प्रवेश की खुली अनुमति देकर भविष्य में स्वयं के मस्तिष्क और देह में रोगों का जंजाल खड़ा कर देता है । 


मैंने 4 पुस्तकें 


1-महर्षि पतंजलि - (अष्टांग योग)

2-हठ योग -(शठकर्म, आसन, प्राणायाम, तंत्र, हीलिंग इत्यादि)

3-विवेक चूड़ामणि - (ज्ञान योग)

4-अष्टावक्र गीता -  (ज्ञान योग)


चुनी है जिसका उद्देश्य गहन व्याख्या व्याख्या के द्वारा अपने शिष्यों को वह ज्ञान देना जिससे उनको अपने स्वयं के अंतरतम की समस्याओं को सुलझाने में सहायता मिल सके और साथ साथ वह स्वयं का गुरु बन सके ताकि उसके द्वारा प्राप्त ज्ञान एवं अनुभव का उपयोग भविष्य में समाज के लिए भी हो सके । एक उम्र के बाद स्वयं और परिवार के साथ साथ समाज को भी किसी भी फ़ॉर्म में कुछ देने की प्रवृत्ति हमें रखनी चाहिए होती है । इससे हमारे अंतरतम में निर्मलता और शुद्धीकरण होता है और आत्म ज्ञान तो होता ही है । यदि हमारे पास ज्ञानात्मक अनुभव है तो उसको समाज को देना ही चाहिए ताकि उनको शांति मिल सके ।


प्रक्रिया कैसी होगी - 

  • कठिन से कठिन आध्यात्मिक प्रक्रियाओं से गुज़ारना ।

  • अनुत्तरित प्रश्नों का भिन्न भिन्न तरीक़े से समाधान ।

  • ज्ञान और शक्ति में भेद करना तथा संतुलन स्थापित करना ।

  • ज्ञान से ज्ञानेंद्रियों पर नियंत्रण कैसे किया जाए , इस पर गम्भीर चर्चा और व्यावहारिक समाधान । 

  • कर्मेंद्रियों का ज्ञानेंद्रियों पर कैसा और कब तक प्रभाव पड़ता है ।

  • ज्ञान से कर्मेंद्रियों को कैसे नियंत्रित किया जाए । 

  • शरीर के प्रमुख अंगों को ज्ञान से संतुष्ट कैसे किया । क्या शरीर के सभी अंगों  को ज्ञान से संतुष्ट किया जा सकता ! इस पर विश्लेषण । 

  • यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धरना ध्यान और समाधि का व्यावहारिक चिंतन और अभ्यास । 

  • हठ योग के उन रहस्यों से परिचित करवाना जिससे शरीर के सूक्ष्मतम विंदुओ तक पहुँचा जा सके और जिससे शारीरिक मानसिक रोगों का इलाज हो सके । 



Meditation Master (Offline Teacher Training Course)

Content Hours: 3 hour(s)
Fee: 5100/-
Duration : 2 Years Days
From 2022-07-10 To 2024-06-30

Copyright - by Yogi Anoop Academy