Loading...
...

योग और आयुर्वेद में मोटापा से मुक्ति

1 month ago By Yogi Anoop

योग और आयुर्वेद: वसा को स्वाभाविक रूप से बर्न करने के रहस्य पर संवाद 

शिष्य: गुरुदेव योगी अनूप, शरीर अपने फैट को बर्न करने की स्वाभाविक प्रक्रिया कैसे करता है? क्या इसे नियंत्रित किया जा सकता है?

योगी अनूप:

बेटा, यह प्रश्न बहुत गहराई से जुड़ा हुआ है और इसका उत्तर आयुर्वेद के सिद्धांतों और आधुनिक विज्ञान दोनों में छिपा है। आयुर्वेद के अनुसार, शरीर के तीन दोष – वात, पित्त और कफ – शरीर की हर क्रिया को संचालित करते हैं। वसा (फैट) मुख्यतः कफ दोष का हिस्सा है। जब कफ संतुलन में होता है, तो शरीर स्वाभाविक रूप से वसा को जलाने और संचय करने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।

आधुनिक विज्ञान की भाषा में, यह प्रक्रिया शरीर की मेटाबॉलिज्म प्रणाली के माध्यम से होती है। हमारी कोशिकाओं में माइटोकॉन्ड्रिया नामक अंग होते हैं, जो वसा को ऊर्जा में बदलते हैं। जब तुम शरीर और मस्तिष्क को आराम और सही पोषण देते हो, तो यह प्रक्रिया बहुत प्रभावी तरीके से कार्य करती है। लेकिन अगर इसे बाहरी दबाव या इच्छाशक्ति के माध्यम से बाधित किया जाए, जैसे भूखा रखना या अत्यधिक व्यायाम करना, तो यह प्रक्रिया असंतुलित हो जाती है । परिणामस्वरूप मोटापा कम होने के बजाय, बढ़ने के खतरे सामने आ जाते हैं । इसीलिए मेरे प्रयोगों में सबसे अधिक मशपेशियों की शिथिलता पर जोर दिया जाता है । 

शिष्य: इसका मतलब है कि क्या हमें मोटापा कम करने के लिए अपनी इच्छाशक्ति का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए ?

योगी अनूप:

बेटा, इच्छाशक्ति का इस्तेमाल एक सीमा तक किया जा सकता है, यदि इक्षाशक्ति में मांसपेशियों को तनाव में रहने की आदत सीखा दी जाती है तो यह खतरनाक हो जाता है । अत्यधिक मेहनत व श्रम तनाव कम करने के में वृद्धि अधिक करता है ।  अति श्रम में निरंतरता बनाये रखना संभव नहीं होता है , परिणामस्वरूप देह में वसा के बढ़ने की संभावना अधिक हो जाती है । क्योंकि देह को अधिक प्रोटीन और वसा के खाने की आदत पड़ चुकी हुई होती है । इसीलिए यह शरीर के प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं होती है।

आयुर्वेद कहता है कि “सर्वं प्रकृत्या सह जीवति”, जिसका अर्थ है कि जीवन तभी फलता-फूलता है, जब हम प्रकृति के साथ तालमेल रखते हैं। यदि तुम अपनी इच्छाशक्ति से कफ दोष को दबाने का प्रयास करते हो, तो यह अस्थायी परिणाम देगा। उदाहरण के लिए, जब तुम अचानक उपवास या अत्यधिक व्यायाम करते हो, तो यह पित्त दोष को उत्तेजित कर सकता है और शरीर में गर्मी बढ़ा सकता है।

आधुनिक विज्ञान में भी यह सिद्ध हुआ है कि जब शरीर तनाव में होता है, तो कोर्टिसोल हार्मोन बढ़ जाता है, जो वसा को जलाने की बजाय शरीर में जमा करता है।

शिष्य: लेकिन गुरुदेव, शुरुआत में यह तरीका काम करता हुआ तो दिखता है?

योगी अनूप:

जी अवश्य दिखता है । आयुर्वेद में इसे “सहज क्रिया विरोध” कहा गया है। इसका अर्थ है कि जब तुम प्राकृतिक क्रिया के विपरीत कार्य करते हो, तो शुरुआत में शरीर अस्थायी रूप से परिणाम देता है, लेकिन यह दीर्घकालिक रूप से हानिकारक होता है।

उदाहरण के लिए, जब तुम लंबे समय तक भूखे रहते हो, तो जठराग्नि (पाचन अग्नि) कमजोर हो जाती है। कमजोर अग्नि का परिणाम यह होता है कि शरीर अधिक वसा संग्रह करने लगता है, क्योंकि यह समझता है कि भविष्य में ऊर्जा की कमी हो सकती है।

इस प्रक्रिया में, शरीर का धातु संचय असंतुलित हो जाता है और इससे वात और कफ दोनों में विकार उत्पन्न होता है। यही कारण है कि अत्यधिक प्रयासों के बाद भी शरीर अपने पुराने तरीके पर लौट आता है।

शिष्य: और दूसरा दृष्टिकोण क्या है, गुरुदेव योगी अनूप?

योगी अनूप:

दूसरा दृष्टिकोण है आयुर्वेद का संतुलित दृष्टिकोण अपनाना। आयुर्वेद में “दोषों में सम्यकता” को ही स्वास्थ्य का आधार माना गया है। योग में सत रज तम में सम्यकता ही स्वास्थ्य का आधार है । और ध्यान में स्वास्थ्य शब्द का मूल अर्थ “स्व (स्वयं) में स्थित होना” कहलाता है ।  

जब तुम स्व व स्वयं के अनुरूप कार्य करते हो तब यह देह इन्द्रिय स्वाभाविक रूप में स्वतः ही कार्य करने लगता है । और जब सत रज तम सम अवस्था में आते हैं तव स्वस्थ हो जाते हैं । 

अर्थात यह देह वसा प्रोटीन को सही तरीके से उपयोग करने में सक्षम हो जाता है।  

उदाहरण के लिए, जब तुम नियमित और संतुलित दिनचर्या का पालन करते हो – जैसे समय पर खाना, आराम, और मेडिटेशन, गहरी नींद  – तो शरीर का जठराग्नि संतुलित रहता है।

आयुर्वेद के अनुसार, यह प्रक्रिया केटु अग्नि को सक्रिय करती है, जो शरीर में जमा वसा को जलाने में मदद करती है। योग के माध्यम से प्राण वायु और अपान वायु का संतुलन इस प्रक्रिया को और भी प्रभावी बनाता है।

शिष्य: क्या रिलैक्सेशन से शरीर का फैट बर्न करना संभव है, गुरुदेव योगी अनूप?

योगी अनूप:

बिल्कुल संभव है। आयुर्वेद और योग दोनों में ध्यान (मेडिटेशन) को विशेष महत्व दिया गया है। जब तुम ध्यान करते हो, तो शरीर का स्नायु तंत्र (नर्वस सिस्टम) शांत होता है और पैरासिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम सक्रिय हो जाता है।

आयुर्वेद में इसे मनसिक शांति कहा गया है। इस स्थिति में, शरीर के धातु अग्नि और मेद धातु (वसा) का संतुलन होता है। यह प्रक्रिया न केवल वसा जलाने में मदद करती है, बल्कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाती है।

शिष्य: क्या यह प्रक्रिया आयुर्वेद और विज्ञान दोनों में सिद्ध है, गुरुदेव योगी अनूप?

योगी अनूप:

हां, बेटा। आयुर्वेद में “सप्त धातु सिद्धांत” है, जो कहता है कि हर धातु का संतुलन शरीर को स्वस्थ रखता है। आधुनिक विज्ञान ने भी यह स्वीकार किया है कि ध्यान और नियमित दिनचर्या शरीर के मेटाबॉलिज्म को संतुलित करती है।

जब तुम खाने के बीच लंबा अंतराल रखते हो और केवल जरूरत के अनुसार खाते हो, तो शरीर केटोसिस में प्रवेश करता है, जो वसा को ऊर्जा में बदलता है। आयुर्वेद इसे मेद धातु का क्षय कहता है।

शिष्य: क्या यह प्रक्रिया टिकाऊ है, गुरुदेव योगी अनूप?

योगी अनूप:

बिल्कुल, बेटा। आयुर्वेद और योग का यह दृष्टिकोण पूरी तरह टिकाऊ और प्राकृतिक है। यह शरीर और मन को संतुलन में रखता है। जब तुम शरीर की आवश्यकताओं को समझते हो और उसे स्वाभाविक रूप से कार्य करने देते हो, तो न केवल वसा नियंत्रित होती है, बल्कि शरीर में ओजस और तेजस का भी विकास होता है।

शिष्य: तो गुरुदेव योगी अनूप, क्या हमें अपनी दिनचर्या और भोजन में भी बदलाव करना चाहिए?

योगी अनूप:

हां, बेटा। आयुर्वेद कहता है कि “आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य” शरीर की तीन मुख्य आधारशिलाएं हैं। मेरे अनुभव में योग ध्यान के अनुसार विचारों से पड़ें हो कर मन मस्तिष्क को गहन शांत करना प्रमुख आधारशिला है जो लिवर को सर्वाधिक शक्तिशाली बनाता है । 

• नियमित और संतुलित आहार लो, जिसमें कफ को नियंत्रित करने वाले खाद्य पदार्थ जैसे हल्दी, त्रिफला और गर्म पानी का उपयोग करो।

• पाचन और निष्कासन , अर्थात् लिवर , व प्राणवायु तथा अपान वायु के संतुलन से गहन निद्रा को बहुत आसानी से प्राप्त किया जा सकता है । गहन निद्रा में यह देह मस्तिष्क सर्वाधिक समस्याओं का निदान करते हुए दिखते हैं । अर्थात् इसी समय जब स्व का भान नहीं होता है , स्व से देह पूर्ण मुक्त होता है तब देह स्वयं में स्वयं के विषाक्त पदार्थों को त्यागने में पूर्ण सक्षम हो जाता है । 

इसीलिए मेरी प्रत्येक क्रियाओं में निद्रा के पूर्व कुछ प्राणायाम के अभ्यास सम्लित होते हैं जिसके द्वारा गहन निद्रा में जाने के लिए और सहायता मिल जाती है । 

यह दृष्टिकोण न केवल फैट बर्न करेगा, बल्कि दीर्घकालिक स्वास्थ्य और प्रसन्नता भी लाएगा।

याद रखो, योग, प्राणायाम, ध्यान  केवल शरीर को स्वस्थ रखने के लिए नहीं हैं, बल्कि मन और आत्मा को भी संतुलित करने के लिए हैं। यही सच्चा स्वास्थ्य है।

Recent Blog

Copyright - by Yogi Anoop Academy