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योग आसन का रहस्य

2 years ago By Yogi Anoop

योग आसन का रहस्य 

सामान्य भाषा में आसन का अर्थ है किसी एक स्थिति में शरीर को स्थिर कर देना । घर में किसी अतिथि के आने पर उसे बैठने के लिए ‘आसन ग्रहण करें’ ऐसा कहा जाता है, अर्थात् कुर्सी अथवा सोफ़े पर बैठें । विद्यालय में चंचल बच्चों के इंद्रियों की एकाग्रता के लिए शरीर के दोनों हाथों को आपस में बाँधने को कहा जाता था । 

यह इसलिए कि शरीर के कर्मेंद्रियों के स्थिर होने पर ज्ञानेंद्रियां और मन स्थिर होने लगता है । 

अवलोकन में उस्ताद उन ऋषियों ने यह जान लिया कि शरीर के किस हिस्सों को खिंचाव व तनाव दिया जाय तो मन मस्तिष्क पर किस प्रभाव पड़ेगा । यद्यपि हज़ारों वर्ष पहले मन को शांत करने के लिए शरीर को दुःख दिया जाता था जैसे एक पैर वर्षों तक खड़े रहना , पेड़ पर महीनों वर्षों तक उल्टे लटके रहना इत्यादि , किंतु बाद में कर्मेंद्रियों अर्थात् बैठकर हाथों और पैरों  को स्थिर करने की विधा आयी । 

ऋषियों ने योग में पाँचों कर्मेंद्रियों (हाँथ-पैर-मुँह-गुदा द्वार और जननेंद्रिय) को रोकने पर ज़ोर दिया, उन्होंने यह अनुभव प्राप्त कर लिया था कि इनके रोकने व स्थिर करने से ज्ञानेंद्रियाँ (आँख-कान-नाक-जिह्वा और त्वचा) शिथिल और शांत हो जाएँगी । 


    इसीलिए हठ योग ऋषियों ने शरीर की नाड़ियों को स्थिर करने के लिए अथवा  शरीर को किसी एक स्थान पर अधिक समय तक स्थिर पूर्वक बैठाने के लिए रीढ़ में मज़बूती देने के लिए रीढ़ के अभ्यास को भी आसन कहना प्रारम्भ कर दिया । उनका कहना था कि शरीर की रीढ़ मज़बूत न होगी तो उसे अधिक समय तक बैठाया नहीं जा सकता है । सत्य है कि शरीर के अंदर स्थित चलायमान वायु एक अवस्था में शरीर और इंद्रियों को अधिक समय तक बैठने नहीं देती है इसलिए ऋषियों ने रीढ़ के भिन्न भिन्न प्रकार के आसन व posture को जन्म दिया , उसी को आसन का नाम दिया गया ।

सामान्यतः मन व विचारों के ठहराव के लिए यह मस्तिष्क शरीर की मांसपेशियों से स्वतः कार्य करवाने लगता है , जैसे कोई भी जानवर दिन में कई बार दौड़ भाग करके स्वयं को शांत कर लेता है , जानवरों के शांत होने का अर्थ है उसे सुला देना । जानवर थोड़े समय के लिए जब बहुत अग्रेसिव होता है तब उसके तुरंत बाद उसे एक नैप लेना पड़ता है । 

उसी प्रकार मनुष्य स्वयं के मन को शांत करने के लिए मांसपेशियों में अग्रेसिव movement करता है । शरीर को हाइपर करने के बाद कुछ घंटों तक मन मस्तिष्क ढीला और ठहरा हुआ लगता है । 

किंतु यहाँ पर ध्यान दें कि यह शांति मांसपेशियों के कारण है न की नाड़ियों के कारण । नाड़ियों अर्थात् आसन के अभ्यास से जो भी खिंचाव होता है उससे मन व मस्तिष्क में  शांति बहुत दिनों महीनों तक बनी रहती है । 

इन आसनों के निरंतर अभ्यास से विशेषकर से कर्मेंद्रियाँ बहुत अधिक शांत होने लगती हैं, साथ साथ ज्ञानेंद्रियों में भी स्थिरता आनी शुरू हो जाती है । 

किंतु ज्ञानेंद्रियों हमेशा ज्ञान से ही पूर्ण संतुष्ट होती हैं इसीलिए आसन के बाद ज्ञानयोग का अभ्यास किया जाता है । 

मुझे हठयोगियों की उस ईमानदारी से बहुत प्रसन्नता होती जब वे कहते हैं कि हठ योग अंतिम सत्य का अनुभव नहीं करवा सकता है , हठयोग के अभ्यास के बाद ज्ञान से ही अंतिम मुक्ति सम्भव है , अंतिम मुक्ति का अर्थ है मन का पूर्णतः अमन में ठहर जाना । 


कुछ उपयोगी आसन वर्णन -

  • सिद्ध व पद्मासन 

  • ताड़ आसन 

  • भुजंग आसन 

  • शलभ आसन 

  • भूनमन आसन 

  • जानुनमन आसन 

  • धनुर आसन 


किसी आध्यात्मिक गुरु के निर्देशन में यदि इन आसनों का निरंतर अभ्यास किया जाय  तब शरीर के अंदर वात पित्त और कफ़ का संतुलन आसानी से करवाया जा सकता है । साथ साथ इन आसानी के अभ्यास की सिद्धि में भोजन और यम नियम का भी ध्यान रखा जाना चाहिए । 

इसके बाद प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास किया जाना चाहिए 


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