मैं वृत्ति को विचार नहीं मानता हूँ , जो लोग यह कहते हैं कि वृत्ति को भून दो , अर्थात् विचार भून दो तो वह भाव नहीं पैदा करेगा , अर्थात् बीज को भून दो तो उस बीज में वृक्ष बनने की शक्ति समाप्त हो जाएगी ।
मेरी अनुभव में बीज से किसी भी प्रकार का तैयारी नहीं है, उस खेत को बंजर बना दो बीज उसमें जाने के बाद कुछ कर ही नहीं पाएगा ।
उस खेत में ऐसी आदत ही बन गई है कि कोई बीज ना भी डाला जाये तो भी उसमें ऐसी स्थित आ गई है कुछ ना कुछ होने लगेगा ।
जैसे बारिश हुई, ज़मीन पर पड़ी ज़मीन में आदत है पानी को अड़चन करने कि ज़मीन की मिट्टी ऐसी है ही कि की उसके अंदर जो आदत भी है उससे किसी ना किसी प्रकार जंगली वस्तुयें पैदा होने लगती है ।
मन का किसी भी वस्तु को एक समय सीमा से अधिक देर तक टिकने पर वृत्ति का बनना प्रारंभ हो जाता है । जैसे मैं बाज़ार में कितने लोगों को देखता हूँ किंतु वे सभी याद नहीं रहते हैं ।
हमें वही लोग याद रहते हैं जिनके साथ कोई घटना घटे अथवा हमारी इंद्रियाँ या आँखें अधिक समय तक उसे देखें । तभी तो उसका चित्र हमारे अंदर पक्का बनेगा । और यह भी ध्यान देना है , जब आँखें किसी भी वस्तु को अधिक देर तक देखती हैं तब उसको सिर देखती ही नहीं हैं उसको देखकर पौधे और फल तुरंत बना लेती हैं । अर्थात् उसके प्रति एक धारणा का निर्माण कर लेती हैं ।
खेत में किसी वस्तु को डेट ही निकाल लो तो वह पेड़ बनेगा कैसे , खेर में उस बीज को उगने के लिए एक समय सीमा तक का समय तो चाहिए होता है ।
जैसे गर्भ में बीज को एक निश्चित सीमा समय चाहिए होता है तभी बच्चे के होने की प्रक्रिया शुरू होती है । गर्भ का स्वभाव है कि उसमें कोई भी बीज आएगा तो वह बच्चा बनाने कि प्रक्रिया शुरू कर देगा ।
यदि कोई भी व्यक्ति बच्चा नहीं चाहता है तो वह एक ऐसी निरोध करने की दावा लेता है जिससे गर्भ के अंदर ऐसी करिए होती है जिससे उस बीज को वही नष्ट कर दिया जाता है ।
यहाँ पर आप आप गर्भाशय में किसी प्रकार दावा डालते हो तभी तो गर्भाशय में बीज को बच्चा बनाने की प्रक्रिया बंद हो जाती है ।
एक उम्र के बाद स्त्रियों के गर्भ में बच्चे के ठाणे की प्रक्रिया स्वतः बंद हो जाती है । ये हम तो सभी जानते हैं ।
कुछ वैसे ही चित्त विषयों का एक गर्भाशय है । जहां पर कोई भी बाहरी विषय आता है तो और एक निश्चित सीमा से अधिक समय तक ठहरेगा तो वह कोई ना कोई भाव व विचार पैदा करेगा । क्योंकि चित्त का स्वभाव है । हर आने वाले विषय को वृक्ष का आकार देना ।
जैसे गर्भ में एक बीज को पौधा बनने के लिए एक निश्चित समय सीमा की आवश्यकता होती है । चित्त में बाहर से आने वाले विषयों की एक निश्चित समय सीमा में ठाणे के बाद उसमें वृत्ति बन जाती है ।