“वर्तमान में जीने वाला आदतों का शिकार नहीं होता है क्योंकि वर्तमान में पल पल परिवर्तन होता रहता है” । व्यक्ति के सामने जो भी परिस्थितियाँ होती है उसे कभी कभी इक्षानुसार पूरी तरह से नियंत्रित कर लेता और साथ साथ कभी कभी इक्षानुसार नियंत्रित नहीं कर पाता है । हमेशा ऐसा संभव नहीं है कि वह इक्षानुसार सभी परिस्थितियों को नियंत्रित कर ही ले । क्योंकि वर्तमान हमेशा विचित्र होता है । जीवन में वह बिना बताये ही आता है । मनुष्य को अपने पुराने नियमों से हमेशा उसे नियंत्रित कर पाना संभव नहीं होता है । संभवतः इसीलिए भारतीय ऋषियों ने वर्तमान को नियंत्रित करने के लिए पाँच सूत्रों के सहारा लेने की बात की । वे पाँच नियम हैं - साम, दाम, दंड, भेद और नीति । इन्हीं पंचों नियमों का सहयोग कहीं ना कहीं , किसी ना किसी समय, वर्तमान में अच्छी तरह से जीने के लिए किया जाता है ।
सामान्यतः वर्तमान में जीने की परिभाषा सभी लोगों के अनुसार बड़ी सामान्य ही है । उनके अनुसार वर्तमान में जीने के लिए भूत और भविष्य पर ध्यान नहीं करना चाहिए ।
किंतु मेरे अनुसार यह बड़ी ही अति सामान्य सी परिभाषा है जिसको कभी भी , कोई भी नहीं आचरण में नहीं ला पाता है ।
एक उदाहरण से इसे समझा जा सकता है -
एक ड्राइवर जब ड्राइविंग सीख रहा होता है तब उसकी पूर्ण एकाग्रता वर्तमान अर्थात् ड्राइविंग सीखने पर होती है । किंतु जब वह पूर्ण रूप से उसे सीख चुका हुआ होता है तब तब ड्राइविंग करते समय उसका मन भाग रहा होता है । उसका मन वर्तमान में नहीं लग पाता है । ऐसा नहीं है कि उसका मन भूत और भविष्य में जा रहा है । उसका मन अनावश्यक विचारों को पैदा करता रहता है । जब मन किसी भी कला को एक सीमा तक सीख चुका हुआ होता है तब उसके बाद उसका मन उस कला के उपयोग के दौरान ही अन्य विचारों का निर्माण करने लगता है ।
एक ट्रक ड्राइवर का मन ड्राइव करते समय अनावश्यक विचारों का निर्माण करता है । वह इसलिए कि वह अपनी ड्राइविंग की कला सीख चुका है । उसे उस ड्राइविंग से कोई भी आनंद नहीं मिलता है इसीलिए मन ऊलजलूल विचारों का निर्माण करता है । यदि
उसके मन को उसकी ड्राइविंग से गहराई में शांति और आनंद मिलता तो उसके अंदर फ़ालतू विचारों की पैदाइश ही नहीं होती ।
यहाँ पर ध्यान देने की बात है कि जब उस ड्राइवर को उसकी अपनी ड्राइविंग से समुचित आनंद नहीं प्राप्त होता तो उसे शराब का सेवन करना पड़ता है । उस शराब से उसके मन मस्तिष्क की थकान शांत होती है ।
कहने का मूल अर्थ है कि वह ड्राइविंग करते समय इतने अधिक विचार आते हैं हैं कि उसका मन, इंद्रियाँ और शरीर बहुत थक जाता और उसे उस थकान को मिटाने के लिये किसी ऐसे नशीले द्रव्य का सहारा लेना पड़ता है जिससे उसे शांति मिल सके ।
मेरे अनुभव में यदि उस ड्राइवर का मन उसकी ड्राइविंग में इतना अधिक लगा हो जिससे उसके मन में अनावश्यक विचारों कि पैदाइश नहीं हो रही है तब उसे नशीले द्रव्य की आवश्यकता नहीं पड़ेगी । मेरे अनुसार उस ड्राइवर की ड्राइविंग में केवल इतना ही है वह सड़क पर गाड़ी दौड़ा लेता है । इसके अतिरिक्त उसमें किसी भी प्रकार की गहराई नहीं है । उसमें स्टीयरिंग को , उसकी क्लच को , उसके सभी बिंदुओं को कैसे सूक्ष्मता से उद्योग में लाया जाये , उसे इसका पता ही नहीं होता है । यदि ड्राइविंग की गहराई में जाये तो किसी भी प्रकार के विचारों के पैदा होने की गुंजाइश नहीं हो सकती है । वर्तमान को छिछला मत समझो । इसके अंदर हर पाल गहराई में जाने की संभावनायें छिपी होतीं है । उन्हीं संभावनाओं को मन के माध्यम से प्राप्त करना होता है । सत्य यह है कि वर्तमान में ही मन गहराई में जा सकता है ।
भूत में गहराई संभव नहीं है , वह इसलिए कि भूत में सारे चीजें अनुभव में हो चुकी हैं । तो उस भूत में अनुभव की हुई घटनाओं को दोबारा अनुभव करने से भला क्या होगा । और जहां तक भविष्य की बात है , उसमें मन को ले जाने का अर्थ है कपोल कल्पनाओं में मन को व्यस्त रखना । सामान्य लोगों के मन में ये दोनों अवस्थाएँ बहुत कम ही आतीं हैं ।
सामान्य लोगों की मूल समस्या है कि वह जब वर्तमान में जीवन को जीने का प्रयास करता है तब उसके मन में अनावश्यक विचारों का निर्माण चल रहा होता है । वह इसलिए कि उसका मन उस वर्तमान कि गहराई में नहीं जाता है ।
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