वात प्रधान व्यक्तियों की पहचान
शिष्य: गुरुजी, वात प्रधान व्यक्तियों को कैसे पहचाना जा सकता है? मैंने सुना है कि ये दो प्रकार के होते हैं।
योगी अनूप: बिल्कुल सही कहा। वात प्रधान व्यक्तियों को उनकी प्रवृत्ति और स्वभाव के आधार पर दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है:
1. उद्देश्यविहीन वात प्रधान व्यक्ति।
2. उद्देश्यपूर्ण वात प्रधान व्यक्ति।
वात प्रधान व्यक्तियों की मुख्य विशेषता उनकी मनोचंचलता, मन का किसी एक स्थान पर अधिक समय तक एकाग्र न रह पाना व एकाग्रता के दौरान इंद्रियों का तनाव में हो जाना इत्यादि वात प्रधान के प्रमुख मानसिक लक्षण माने जाते हैं। यही मानसिक लक्षण शारीरिक दोषों में वायु अथवा गैस्ट्रिक के रूप में असंतुलन उत्पन्न करता है। सत्य यह है कि वात प्रधान व्यक्तियों में अधिकतर वात रोग की समस्याएँ उनकी मानसिक गति और सक्रियता से जुड़ी होती हैं।
शिष्य: तो पहले उद्देश्यविहीन व्यक्तियों के बारे में बताएं।
योगी अनूप: उद्देश्यविहीन वात प्रधान व्यक्ति वे होते हैं, जो बिना किसी ठोस मकसद के जीते हैं। वे स्वकल्पित कल्पनाओं से ही प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी एकाग्रता किसी भी एक विषय पर अधिक समय तक नहीं टिक पाती। उनका मन निरंतर विचारों, कल्पनाओं और छोटी-छोटी घटनाओं से भरा हुआ होता है। उनके वार्तालाप व बातचीत का विषय हमेशा कोई न कोई अन्य ही होता है। नकारात्मक दृष्टि से तो बातें करते ही हैं, किंतु सकारात्मक दृष्टि से भी वे दूसरों के बारे में ही बातें किया करते हैं। मेरे अनुभव में स्वयं के अतिरिक्त किसी भी अन्य के बारे में अधिक वार्तालाप करने का अर्थ है कि स्वयं का स्वयं के प्रति ध्यान न होना। इसे मैं उद्देश्यविहीनता में देखता हूँ।
मन का किसी भी विषय से आकर्षण बहुत तीव्रता से हो जाता है, उसकी प्राप्ति हेतु कार्य भी बहुत शीघ्रता से करते हुए दिखते हैं, किंतु उस कार्य को पूर्ण करने में असमर्थ दिखते हैं। इसका कारण यह है कि व्यवहार में समस्याओं के आने पर एकाग्रता में कमी होने से वे उसे बीच में ही छोड़ देते हैं।
इस प्रकार देखा जाए तो इस तरह के व्यक्तित्व अपने जीवन में भिन्न-भिन्न प्रकार के कार्यों की शुरुआत करते हैं किंतु उन्हें पूर्ण नहीं कर पाते। यदि इसके पीछे के रहस्यों का विश्लेषण किया जाए, तो अवश्य ही ज्ञात होगा कि इस प्रकार के लोगों में मूल रूप से व्यवहार की सबसे बड़ी कमी होती है और यही उन्हें अनुशासित नहीं होने देती।
अतः यह सिद्ध होता है कि इस प्रकार के लोगों में अनुशासन का सदा अभाव दिखता है।
शिष्य: और उद्देश्यपूर्ण व्यक्तियों की स्थिति कैसी होती है?
योगी अनूप: उद्देश्यपूर्ण वात प्रधान व्यक्ति अपनी सक्रियता को सही दिशा में केंद्रित करते हैं। वे अपने उद्देश्य को पहचानते हैं और उसी के प्रति समर्पित रहते हैं। चाहे वे किसी भी गतिविधि में व्यस्त हों, उनका मन हमेशा उनके लक्ष्य के इर्द-गिर्द घूमता रहता है।
ऐसे लोग अपनी गति और ऊर्जा को सही दिशा में लगाकर जीवन में बड़ी सफलताएँ प्राप्त करते हैं। किंतु सबसे बड़ी समस्या इन लोगों में यह होती है कि इनकी अत्यधिक मानसिक सक्रियता से इनकी इंद्रियाँ बहुत अधिक उत्तेजित हो जाती हैं। यहाँ तक कि इंद्रियों में हमेशा चंचलता और भागने की प्रवृत्ति बनी रहती है, जिससे ये सदा असंतुष्ट से दिखते हैं। यही असंतोष इन्हें उनके भीतर खोखलेपन का अनुभव कराता रहता है।
अंततः वे आत्मसंतुष्टि के लिए और भी अधिक बहिर्मुख हो उठते हैं, जिससे रोगों की मात्रा और बढ़ जाती है। यही उन्हें मानसिक रोगी बना देती है। उनकी अत्यधिक सक्रियता उनके लिए स्वास्थ्य समस्याएँ, जैसे हाई ब्लड प्रेशर या ब्रेन हैमरेज, उत्पन्न कर सकती है।
शिष्य: जब दोनों स्थितियाँ खराब हैं, तो फिर करना क्या चाहिए?
योगी अनूप: उद्देश्यपूर्ण व्यक्ति को सर्वप्रथम भागने की प्रवृत्ति को चलने में रूपांतरित करना चाहिए। क्योंकि भागने से, जल्दी-जल्दी करने से वस्तु की प्राप्ति भले ही हो जाए, किंतु मन, मस्तिष्क और इंद्रियों में जल्दबाजी की प्रवृत्ति बन जाने से आत्मसंतोष समाप्त हो जाता है।
इसलिए सर्वप्रथम वात प्रधान व्यक्तियों को अपने उद्देश्य को प्राप्त करते हुए अपनी इंद्रियों को शांत और शिथिल करना सीखना चाहिए। यही उनकी मुक्ति का साधन है, अन्यथा उनकी इंद्रियों में इतनी अधिक कठोरता और खिंचाव आ जाता है कि उनका जीवन नर्क के समान बन जाता है।
इस संतुलन को बनाए रखने के लिए योग और ध्यान सबसे प्रभावी साधन हैं। उद्देश्यपूर्ण व्यक्ति को चाहिए कि वे अपनी गति को संयमित करें और यहाँ तक कि कार्य करते हुए गति को नियंत्रित करके उससे आनंद लेने का प्रयास करें तथा समय-समय पर अपने शरीर और मस्तिष्क को आराम दें।
ध्यान और योग की विधियों से वे सीख सकते हैं कि अत्यधिक गति के बजाय स्थिरता और शांति का चयन करें। सद्ग्रंथों का अध्ययन और ध्यान का अभ्यास उनके जीवन में गहराई और संतुलन लाते हैं।
अंततः यह सिद्ध है कि वात प्रधान व्यक्तियों की मूल समस्या गति में नियंत्रण के अभाव की होती है और यदि गति को किसी भी साधन के द्वारा नियंत्रित कर लिया जाए, तो उनके देह और मन के रोगों का समापन ही नहीं, बल्कि उनके मोक्ष का द्वार भी खुल जाता है।
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