वात प्रधान व्यक्तियों को क्या-क्या करना चाहिए ?
वात प्रकृति का मूल अर्थ है मन का अपनी एक सीमा से अधिक चंचल हो जाना । प्रारम्भ में वात प्रधान
व्यक्तियों को लगता है कि शरीर में अत्यधिक वायु बढ़ गयी और फिर मन उनका परेशान रहने लगा । जब कि सत्य यह है कि मन और मस्तिष्क में बदलाव पहले आता है फिर उसके बाद शरीर में बदलाव आता है । शरीर तो प्रतिक्रिया झेलती है । शरीर में समस्याएँ पैदा नहीं होती , समस्याएँ तो पैदा होती है मन और मस्तिष्क में, अर्थात् software या मन में बदलाव सबसे पहले होता है, जो सामान्य बौद्धि वाले व्यक्तियों को पता नहीं चल पाता है ।
हमें ध्यान देना पड़ेगा कि समस्या पैदा कहाँ से होती है तभी तो उसका इलाज निकाल सकते हैं अन्यथा किसी भी समस्या का मूल समाधान निकल ही नहीं सकता है ।
वायु रोग और वात प्रधानता में बहुत बड़ा अंतर होता है । वायु रोग शरीर की वायु है, पर वात प्रधान होने का अर्थ है वात, अर्थात चंचलता आपका स्वभाव है ।
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