दिमाग़ी रूप से वात प्रकृति का व्यक्ति सम्बन्धों को बहुत तेज गति से बनाता है किंतु साथ साथ उतनी ही तीव्र गति से सम्बंध टूट भी जाते हैं ।
वात प्रकृति में क्षमता इतनी तीव्र होती है कि वो अपनी वाकपटुता से लोगों के अंदर जगह बनाने में समर्थ होते हैं , इसमें तीन तरह के लोग होते है , एक सात्विक दूसरे राजसिक और तीसरे तामसिक
सात्विक वात प्रकोपी घुमंतू संत हुआ करते हैं , घुमंतू राइटर होते हैं इत्यादि , ये ऐसे व्यक्तित्व होते हैं जो अस्थिरता को चुनते हैं , एक स्थान पर रुकने से पानी गंदा हो जाता है ये इस परम सत्य को जान चुके होते हैं । इसीलिए स्वयं तथा समाज के विकास हेतु ये सदा घुमंतू जीवन व्यतीत करते हैं । इन्हें एक स्थान पर शांति नहीं मिलती इसीलिए ये देश कल बदलते रहते हैं । यदि देखे तो महात्मा बुद्ध , महावीर , कबीर नानक देव जैसे महान संत हुए जिन्होंने एक स्थान पर कभी नहीं टिके । ध्यान दें स्थान अस्थिर था पर वे सदा स्थिर थे ।
जहां तक सम्बंध की बात है तो वात प्रकृति सात्विक ऋषि स्वयं ही किसी से सम्बंध नहीं बनाता । उसके शब्दों में इतनी धार होती है कि उससे सभी सम्बंध बनाने के लिए उत्सुक होते हैं । ये समाज में खुसबू छोड़ते हैं ।
राजसिक वात प्रकोपी लोग अक्सर राज नेता , प्रीचर, व्यापारी हुआ करते हैं । ये चाहते हैं स्थिर होना किंतु जनता इनको स्थिर होने नहीं देती । जनमानस के अंतरतम में कोई भी स्वार्थी व्यक्ति चाहे जितना भी निहसवार्थ का स्वाँग रचाए वो हमेशा के लिए स्थिर नहीं कर सकता ।
जनमानस अपने अंतरतम में उसी को रखती है जो उसकी अंतरतम को छूने की ताक़त रखता है । राजनीति में भी कुछ संत होते हैं जैसे चाणक्य , राजा जनक, श्री कृष्ण तथा श्री राम और आधुनिक समय में गांधी । ये लोग राजसिक मार्ग में चलकर त्याग और सात्विकता जैसा कठिन मार्ग चुनते हैं । इन्हें एक राजनीतिक संत कहा जाता है ।
यही हालात व्यापारी की है वे चाहते हैं कि इनका धन हमेशा बना रहे किंतु धन का स्वभाव है कि वो किसी को स्थिर होने नहीं देता । इसी चक्कर में वे सदा असंतुष्ट रहते हैं ।
तामसिक वात प्रकोप के लोग बदमाश, चोर, डकैत हुआ करते है , इनके जीवन में कभी भी स्थिरता नहीं आती , ये लाने की कोशिश भी करें तो भी इनके ऐसे कर्म होते हैं जिससे समाज, सरकार इन्हें स्थिर नहीं होने देता । इसीलिए इनकी उम्र दस व ग्यारह वर्ष से अधिक नहीं होती ।
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