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उदर श्वसन से नींद में बाधाएँ

1 year ago By Yogi Anoop

उदर श्वसन से नींद में बाधा 

कभी कभी सोने से पहले पेट से श्वसन की क्रिया करने पर समस्या हो सकती है । विशेषकरके यह समस्या उन लोगो में अधिक आती है जो बहुत उग्रता पूर्ण श्वसन की क्रिया करते हैं । उग्रता पूर्ण का अर्थ है हाइपर होने से है । अर्थात् हाइपर होकरके प्राणायाम करने से नींद में बाधा आ सकती है । उग्र मन के कारण जो भी प्राणायाम की क्रियाएँ की जाती हैं उससे पिंगल नाड़ी उग्र हो जाती है , ऐक्टिव हो जाती है जिसके कारण समय दाहिनी नासिका अधिक उत्तेजित हो जाती है साथ साथ ज्ञानेंद्रियाँ भी सक्रिय हो जाती हैं । इस अवस्था में मन मस्तिष्क पूना सक्रिय होकर वैचारिक क्रिया करने लगता है । ध्यान दें अधिक वैचारिक क्रिया करने पर अम्ल की मात्रा भी बढ़ने लगती है । इसी कारण उसके सिर में भारीपन और reflux जैसी समस्या बढ़ जाती है । 

इसीलिए कुछ लोगों में मैंने देखा है कि सोने के पहले पेट से किए गये प्राणायाम  के अभ्यास से नींद उड़ जाती है । 


यह पर निम्नलिखित कारणों पर ध्यान दिया जा रहा : 


शारीरिक असहजता: प्राणायाम करते समय शारीरिक असहजता नहीं होनी चाहिए ।कोशिश यही होनी चाहिए कि उस समय शरीर की मांसपेशियों को ढीला किया जाये । यदि अभ्यासी मांसपेशियों को ढीला करने में असमर्थ है तो उसे एक ऐसे आसन का अभ्यास करना चाहिए जिससे मांसपेशियाँ ढीली हो जायें । उसके बाद ही प्राणायाम का अभ्यास सार्थक होगा । 


इंद्रियों का ढीलापन: यहाँ पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि प्राणायाम के दौरान अभ्यासी की इंद्रियाँ विशेषकर आँखें ढीली होती जानी चाहिए । यदि आँखों की मांशपेसियाँ ढीली नहीं हो रही है तो इसका अर्थ है कि प्राणायाम का प्रभाव पड़ रहा है । इस अवस्था में प्राणायाम करने पर ही नींद आ सकती है । 


गैसीय उत्तेजना: पेट से किए गये श्वसन क्रिया आमतौर पर मन को शांत करने और मन को खाली करने के लिए उपयोग किया जाता है । वह इसलिए कि सामान्य लोगों में नींद की  समस्या का कारण पेट में अधिक गैस का बनना होता है । लगभग सत्तर फ़ीसदी लोगों में पेट के अंदर असहजता होने के कारण नींद में बाधाएँ आती हैं । 

इसीलिए मेरी कोसी होती है कि नींद के पूर्व ऐसे प्राणायाम किए जायें जिससे पेट में हो रही असहजताएँ दूर हो जायें और वह गहरी नींद में चला जाये । 

ज़्यादातर बच्चों में ऐसी ही असहजताएँ देखी जाती हैं । इसीलिए बच्चों में पेट के बाल सोने के आदत देखी जाती है । वे पेट के बल सोकर पेट में हो रही गैसीय तनाव को दूर कर देता है । 


मानसिक उत्तेजना: एक उम्र के बाद व्यक्ति में मानसिक तनाव अधिक देखा जाता है । जिसके कारण शरीर की समस्त नाड़ियाँ प्रभावित होती हैं । वैचारिक तनाव से पिंगल नाड़ी में अधिक उग्रता देखने को मिलती है इसीलिए मैं हमेशा सोने के पूर्व प्राणायाम के अभ्यास की सलाह देता हूँ । 

प्रत्येक व्यक्ति को चाहे उसे नींद आती हो अथवा नहीं , सभी को नींद के पूर्व अपने अपने स्वभाव के पूर्व प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए । अन्यथा गहन निद्रा के न होने पर भविष्य में वे समस्त मानसिक बीमारियों होतीं जिसका समाधान आधुनिक विज्ञान के पास नहीं होगा । 


प्राणायाम की समय सीमा: कुछ लोगों के पास सोने से पहले सीमित समय होता है और वे एक लंबी श्वसन अभ्यास में लगने में कठिनाई महसूस करते हैं । सामान्यतः मैं ग्यारह मिनट के लिये उदर श्वसन के  अभ्यास को कहता हूँ । किंतु आमतौर पर कुछ मिनटों के अभ्यास और प्रयास की अधिकता से मस्तिष्क पर तनाव आता है जिसके कारण नींद उड़ सकती है । ध्यान दें प्राणायाम में मानसिक विश्राम तकनीकों का उपयोग करना अत्यंत उपयुक्त होता है ।


व्यक्तिगत स्वतंत्रता: मनुष्य के स्वभाव को दूसरों के द्वारा पूर्णतः जानना संभव नहीं है । इसीलिए भारतीय ऋषियों ने एक अवस्था के बाद शिष्य व रोगी को अंतः यह स्वतंत्रता देता है कि वह वही करे जो उसकी अंतरात्मा कहती है । यदि उसको अंतरतम में उदार सावधान ठीक से अनुभव नहीं देता तो उसे बंद करके किसी अन्य सावधान प्रणाली , व परायण की प्रणाली को चुन लेना चाहिए । या अपने गुरु से विचार विमर्श करके चुन लेना चाहिए । 


संक्षेप में, यद्यपि उदर व पेटीय श्वसन सोने से पहले सबसे उत्तम मानी जाती है जिसके कारण गैस व वायु से संबंधित समस्या नियंत्रित हो जाती है । ऐसा मेरा अनुभव है । 

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