हम सभी के जीवन में ऐसे पल आते हैं जब हम गहरी सोच में डूबे होते हैं, और कोई हमसे पूछता है, “क्या सोच रहे हो?” इस सवाल का सामान्य जवाब अक्सर होता है, “कुछ नहीं।” यह एक सहज उत्तर होता है, किंतु सत्यता है कि इसके पीछे अक्सर एक गहरी मानसिक स्थिति छिपी होती है, जिसे समझाना और व्यक्त करना सरल नहीं होता।
अर्थहीन विचारों की प्रकृति
जब मैं कहता था “कुछ नहीं,” तो असल में मैं उन विचारों को छिपा रहा होता था जो न तो किसी ठोस उद्देश्य से जुड़े होते थे और न ही किसी विशेष व्यक्ति या घटना से। ये विचार अक्सर कल्पनाओं में डूबे होते थे, और इतना बेतुके होते हैं कि उन्हें किसी के साथ साझा करना हास्यास्पद लगता है । इन विचारों में न किसी को नुकसान पहुँचाने का उद्देश्य होता था, और न ही कोई ठोस दिशा। वे सिर्फ मस्तिष्क की उड़ान होते थे, बिना किसी मंज़िल के।
बहुत से लोग इस प्रकार के विचारों से परिचित होते हैं, लेकिन उन्हें व्यक्त करना या साझा करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। हम यह सोचते हैं कि यदि हमने इन्हें साझा किया, तो शायद लोग हमें समझ नहीं पाएंगे या हम मज़ाक का पात्र बन जाएंगे। और शायद, इसी कारण से, लोग जब यह सवाल पूछते हैं, तो अक्सर हमारा जवाब यही होता है, “कुछ नहीं।”
यहां तक कि बच्चों से भी जब यह सवाल किया जाता है, तो उनका जवाब भी यही होता है, “कुछ नहीं।” बच्चे भले ही अपने विचारों को सरलता से व्यक्त करते हैं, लेकिन उनके भी मन में अनगिनत कल्पनाएं और विचार होते हैं, जिन्हें वे व्यक्त नहीं करना चाहते। यह बात शायद हमें यह सिखाती है कि उम्र चाहे जो भी हो, हमारे भीतर कुछ विचार ऐसे होते हैं जिन्हें व्यक्त करने में हम झिझकते हैं, क्योंकि वे स्पष्ट रूप से किसी के लिए अर्थहीन लग सकते हैं।
न सोचने की ओर बढ़ना
जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हमें समझ में आता है कि वास्तव में कुछ न सोचना भी एक महत्वपूर्ण अवस्था है। जब हम अकेले होते हैं, तब हमारा मन बिना किसी उद्देश्य के लिए बस यूं ही भटकता रहता है। मैं इस भटकाव को ही सबसे बड़े रोग का प्रारंभ मानता हूँ । इससे बड़ा दुखदायी तो दैहिक रोग भी नहीं हो सकता है । यह दुख हार पल खिंचाव देता रहता है , मन को अशांत किए रहता है । धीरे-धीरे, जीवन में ऐसे पल आने लगते हैं जब हम सच में “कुछ नहीं” सोचने के लिए तरस रहे होते हैं । इसलिए जीवन में सबसे बड़ी मानसिक शांति ही होती है जो एक मनुष्य की सबसे बड़ी चाहत होती है । हमारी अंतरात्मा यही चाहती है कि हम कुछ पल बिना किसी विचार के बिताएं। वह सोचरहित अवस्था जो किसी भी उद्देश्य से रहित हो, हमें जीवन में शांति और संतुलन प्रदान करती है।
“कुछ न सोचना” शायद हमारे भीतर एक नई शुरुआत की ओर इशारा करता है, जहाँ हम स्वयं के साथ समय बिताते हैं और अपने मस्तिष्क को आराम देते हैं। वही स्थिरता उसका अंतिम ठहराव होता है , अंतिम पड़ाव होता है । यही कारण है कि सभी योगियों ने आत्म शांति , आत्म ज्ञान को सबसे महत्वपूर्ण माना ।
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