ज्ञान योग में त्याग क्या है ! कि मन सभी पदार्थों को छोड़ दे । जब मन अपने अंदर चलने वाली सभी वस्तुओं को छोड़ देता है तब मन शिथिल और शांत हो जाता है । उसकी सारी अकड़न समाप्त हो जाती है । जब मन में छोड़ने की आदत बनती है तब उससे सम्बंधित इस शरीर के सारे अंग जिसमें छोड़ने का स्वभाव है वो भी छोड़ना व त्यागना शुरू करते है, जैसे आँतें मल को बाहर फेंकती हैं, त्वचा से गंदगी बाहर निकलती है , लिवर और लंग्स इत्यादि अनेको सूक्ष्म अंग अपने टॉक्सिन को बाहर निकालते हैं । बात यह है कि मन वस्तुओं को त्यागने में समर्थ है कि नहीं, यहाँ पर वाहय त्याग से तात्पर्य नहीं नहीं है , यह पर विचारों के त्याग से है ।
निद्रा विज्ञान में -
त्याग का क्या अर्थ है ! छोड़ देना । नींद में मन सभी वस्तुओं का पूर्ण त्याग स्वतः ही कर देता है । यदि किसी को बहुत गहरी नींद आती हो क़ब्ज़ का होना असम्भव होगा । क्योंकि गहरी नींद में कुछ घंटों तक वैचारिक त्याग से आँतों के साथ साथ सभी सूक्ष्म अंगों को भी त्यागने का संस्कार मिलता है ।
दिन भर में ग्रहण किए गए विचारों व भावों को रात में कुछ पलों के लिए त्यागना आवश्यक है अन्यथा रोग निश्चित है ।
धर्म में त्याग -
धर्म में अधिकतर लोग क़ब्जियत के शिकार होते हैं । उसका प्रमुख कारण है कि मन में किसी एक विचार का बारम्बार चलना अर्थात् विचारों का रेपटिशन ।
निहसंदेह धर्म में बहुत बहुत सारे अभ्यासी त्यागी होते हैं किंतु अज्ञानतावश किसी एक विचार की रेपटिशन में इतनी अधिकता हो जाने से आँतों में संकुचन अधिक होने लगता है । मन का पूर्ण त्याग तो वह है जहां विचारों पर पूर्ण विराम लग जाय । किंतु जब किसी एक विशेष विचार का घंटों घंटों तक रेपटिशन चलता रहेगा तब त्याग कहाँ हुआ । तब मन का विचारों को छोड़ना कहाँ हुआ । जब तक मन विचारों को पूर्णतः छोड़ेगा नहीं उसे पूर्ण विश्राम नहीं मिल सकता ।
कर्मेंद्रियों में त्याग -
पाँच कर्मेंद्रियाँ हैं हाँथ पाँव गुदा द्वार अर्थात् रेक्टम लिंग अर्थात् पेशाब करने का रास्ता और मुँह । इनके मूल स्वभाव में भी त्यागना ही है किंतु मन को विचारों के संग्रह की आदत है इसलिए आँतों को भी संग्रह करने की आदत हो जाती है । गुदा द्वार आवश्यकता से अधिक संकुचित रहता है ।
त्याग बहुत सुखदायी होता है , आनंददायी होता है , जब पेट साफ़ होता है तब इसका अनुभव किया जा सकता है । यहाँ छोड़ने का अनुभव है ।
जब गुदा द्वार को संकुचित और शिथिल करने का अभ्यास करवाया जाता है तब उसमें छोड़ने व त्यागने की आदत का निर्माण होता है । जब मन वस्तुओं को अल्प काल के लिए त्याग देता है तब रेक्टम को भी त्यागने की आदत बन जाती है , वो इसलिए कि मन वस्तुओं को जब पकड़कर कर अपने अंदर अधिक समय तक रखता है तब उतनी ही समय तक रेक्टम में संकुचन बना रहता है ।
चिकित्सीय विज्ञान में त्याग किसे कहते हैं -
चिकित्सीय विज्ञान में त्याग का अर्थ है कि दैहिक तनाव को त्यागना । देह में जो भी अनावश्यक तनाव है उसे त्याग देना अर्थात् शिथिल कर देना । योगासन व किसी भी शारीरिक अभ्यास का प्रयोजन क्या है ? शरीर व नाड़ियों के अंदर आए हुए तनाव को शिथिल कर देना । शरीर में पहले से ही स्थित तनाव को ख़त्म करने के लिए कुछ अधिक तनाव दिया जाता है जिससे मांसपेशियाँ और नाड़ियाँ अपने मूल स्वरूप में आ जाएँ । कितना और कब तनाव देना है किसी अनुभवी गुरु से सीखा जा सकता है ।
तनाव और तनवरहित अवस्था को सीखना पड़ता है , यद्यपि तनाव लेने के सीखने की कोई आवश्यकता नहीं होती है । वह स्वतः ही अज्ञानतावश व्यक्ति अंदर ग्राहम कर लेता है । इसीलिए त्याग अर्थात् शिथिलता के लिए प्रयास व कोशिश करना पड़ता है । खिंचाव देने के गुरु हैं हम किंतु शिथिलता के गुरु नहीं हैं । इसे ही सीखना पड़ता है ।
चिकित्सा विज्ञान चाहे वह आयुर्वेद हो या आधुनिक चिकित्सा विज्ञान हो जब शरीर के अंग तनाव को त्यागते हैं तब ही रोग ठीक होते हैं । तनाव और खिंचाव ही रोग है ।
पर इसका अर्थ यहाँ पर ये कदापि नहीं कि तनाव और खिंचाव देना ही नहीं चाहिए , यदि तनाव और खिंचाव दे तो उसे रिलैक्स करने का भी डैम होना चाहिए । तनाव को त्यागने का भी अभ्यास करना होगा । चिकित्सा विज्ञान में तनाव को मोह कह सकते हैं और तनाव रहित अवस्था को त्याग । जब आप देह के अंगों को रिलैक्स कर देते हैं तो इसका अर्थ है कि उन अंगों के तनाव को आपने त्याग दिया ।
कहने का अर्थ है कि मन को त्याग सिखाओ , इंद्रियों को त्याग सिखाओ , कर्मेंद्रियों को त्याग सिखाओ , अपने अंगों को त्याग सिखाओ । जब तक ये सब न कर पाओगे क़ाबू ही नहीं बल्कि डीटॉक्सिफ़िकेशन प्रॉसेस ऐक्टिव नहीं हो पाएगा ।
अब कुछ उपाय यहाँ दे रहे हैं -
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