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टर्टल योग और प्राणायाम

5 months ago By Yogi Anoop

टर्टल योग और प्राणायाम - (Turtle Yoga & Pranayama)

सामान्यतः कछुए की लंबी उम्र के रहस्य को धीमी गति से चलने वाली साँसों को बताया जाता है ।  उसकी श्वास-प्रश्वास की गति अत्यंत धीमी होती है, ऐसा माना जाता है कि ३-४ मिनट प्रति श्वास के दर से चलती है । इसी आधार पर यह भी माना जाता है कि वह शांत और धैर्यवान भी होता है । यद्यपि उसकी मानसिक स्थिति को जाना जा सकना संभव नहीं किंतु अवश्य ही शांत होता हुआ दिखता है । 

यदि गहराई से उसके वाह्य चाल-चलन का अवलोकन किया जाये तो उसकी ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ (चाहे वह आँख, नाक, जीभ, या हाथ-पैर हों) —में होने वाली गति अत्यंत धीमी होती है । ध्यान से देखने पर उसके स्वभाव में ही धीरापन है संभवतः इसीलिए उसकी इन्द्रियों में मंद गति का होना स्वाभाविक होता है । इसी का परिणाम उसकी साँसों की धीमी गति में देखा जा सकता है । 

प्राणायाम के विज्ञान में सबसे भ्रम इस बात का होता है कि साँसों की गति मंद करने से स्वभाव शांत और स्थिर हो जाता है , ऐसा नहीं । मेरे अनुभव में साँसों की गति परिणाम के रूप में दिखती है । स्वभाव जिस प्रकार से होता है उसी प्रकार से श्वास-प्रश्वास में गति होती है । एक उदाहरण से इसे समझा जा सकता है - हृदय के कमजोर व्यक्ति की साँसें स्वतः ही धीमे चलने लगती हैं । किंतु उसके स्वभाव में परिवर्तन नहीं आता है । साँसों में बहुत बदलाव करने से स्वभाव में परिवर्तन संभव नहीं है । किंतु किसी के स्वभाव में परिवर्तन कर दो उसकी साँसों में बदलाव तुरंत देखा जा सकता है । जैसे ध्यान में साँसों में बदलाव करने का प्रयत्न नहीं किया जाता है , उसमें अपने मूल स्वभाव को समझने का ही अनुभव किया जाता है , और परिणाम के रूप में साँसों में स्वतः ही परिवर्तन देखने को मिलता है । 

यहाँ पर उस कछुए के स्वभाव पर अधिक चर्चा किया जाना चाइए न कि उसकी चलने वाली गहरी साँस । क्योंकि साँसों से मानसिक परिवर्तन अल्पकालिक हो सकता सकता है किंतु स्थायी नहीं हो सकता है ।   

बचपन में कछुए और खरगोश की दौड़ने की कहानी में अंततः मंद चाल चलने वाले कछुए को विजयी दिखाया जाता है । इसलिए कि वह धैर्यवान होता है । थोड़ा बदलाव करते हुए इस कहानी में कुछ पल के लिए यदि खरगोश को विजयी घोषित कर दिया जाये तो परिणाम क्या होगा । परिणाम में खरगोश को शांति कभी भी प्राप्त नहो हो सकेगी । वह इसलिए क्योंकि खरगोश की अपनी दौड़ में ही जल्दीबाजी थी , अस्थिरता थी , आगे पहुँचने , जल्दी जल्दी करने की जल्दीबाज़ी थी । उस स्थान पहुँच कछुए से पहले तो पहुँच गया किंतु उस स्थान पहुँच कर भी अपने चंचल स्वभाव के कारण उसकी शांति और स्थिरता का अनुभव नहीं पाएगा । वह इसलिए क्योंकि उसने अपने अपनी यात्रा में केवल जल्दीबाज़ी ही तो सीखी थी । यदि यात्रा दोषपूर्ण है तो भला परिणाम में पहुँचकर कैसे शांति का अनुभव कर पाएगा । वह उस स्थान पर पहुँच कर भी गोल गोल घूमता रहेगा , वह इसलिए क्योंकि उसने स्वयं के स्वभाव को बस जल्दीबाजी वाला बना कर रख दिया है । 

इसी के विपरीत वह जिस कछुए को पराजय मिली थी , उसने तो अपनी यात्रा में घटने वाले प्रत्येक पल में शांति और स्थिरता का अनुभव किया था , और जब वह गंतव्य स्थल पर पहुँचेगा तो अपने यात्रा के दौरान किए गए अभ्यास के अनुरूप अधिक शांत और स्थिरता का अनुभव करेगा । अपनी इक्षानुसार कितना भी समय तक स्थिरता का बोध करता रहेगा । वह अपनी गति को रोक सकता है किंतु खरगोश अपनी गति नहीं रोक सकता क्योंकि उसने अपनी यात्रा में गति पर नियंत्रण करने का अभ्यास ही नहीं किया था । उसे तो सिर्फ दौड़ना था , उसके दिमाग़ में तो सिर्फ़ भागना था , समझना न था , सीखना न था । यदि बहुत सूक्ष्म विश्लेषण किया जाये तो उसके देह के किसी भी अंग को न तो यात्रा के दौरान ख़ुशी या आराम मिला था और न ही गंतव्य स्थल पर कर ही होगा । क्योंकि जैसी जीवन यात्रा होगी वैसे ही उसका परिणाम । परिणाम सुखदायी नहीं सकता । जल्दी पहुँचन सुखदायी होना नहीं है बल्कि उस यात्रा के दौरान और उस गंतव्य पर पहुँच कर स्थायित्व व स्थिरता का बोध करना विजय है । ऐसा मेरा मानना है । 

यहाँ पर इसी सिद्धांत व दर्शन को ध्यान में रखते हुए मैं टर्टल व कछुआ प्राणायाम की खोज किया जिसमें गति को कैसे नियंत्रित किया , श्वास-प्रश्वास की यात्रा में स्थिरता का बोध कैसे करें । श्वास प्रश्वास के माध्यम से अपने स्वभाव की की गति को कैसे स्थिर करें , इस अभ्यास करने को बल दिया है मैंने ।

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