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टर्टल प्राणायाम का सूक्ष्म रहस्य

2 years ago By Yogi Anoop

टर्टल प्राणायाम का वैज्ञानिक और पौराणिक रहस्य 

 

 मेरी स्वाभाविक कोशिश यही रही कि भौतिक जगत में हो रहे सूक्ष्म परिवर्तनों को देखकर स्वयं के जीवन को सरल कैसे बनाया जाए । यदि इंद्रियों में हो रहे परिवर्तन पर सूक्ष्म दृष्टि गड़ाई जाए तो अन्य अंगों को आसानी से स्वस्थ किया जा सकता है । यहाँ तक कि ऋषियों ने भी मानव के शरीर ही नहीं बल्कि अन्य जीवों के शारीरिक लक्षणों के देखकर स्वयं में परिवर्तन किया । इसीलिए कही न कहीं उन सभी जीवों को आदर दिया गया जिनमें कोई न कोई विशेषताएँ थीं । 


जैसे पौराणिक कथाओं में कछुए को विष्णु का अवतार माना गया । वह इसलिए कि विष्णु में सबसे अधिक धैर्य देखने को मिलता है ।  कछुआ धैर्य का प्रतीक है । कहने का मूल अर्थ यह है कि बुद्धिमान व्यक्तियों के सामने परिस्थितियाँ चाहे जितना विपरीत हों वह अपना धैर्य नहीं खोता है । उसी तरह उसकी साँसो की गति में भी धैर्य बना हुआ होता है । उसमें किसी भी प्रकार की तेज़ी नहीं आती है । इसीलिए जय और पराजय से उसकी इंद्रियों तथा उसकी साँसों में परिवर्तन देखने को नहीं मिलता है ।


वास्तु शास्त्र की दृष्टि से भी घर के उत्तर दिशा में कछुए को प्रतीकात्मक रूप से रखने की सलाह दी गयी , इसका का अर्थ है कि लक्ष्मी (धन का बढ़ना) का बढ़ना । किंतु व्यावहारिक दृष्टि से इसमें सत्यता नहीं दिखती , व इसलिए कि कछुए का धन से कोई सम्बंध नहीं है । 


किंतु यदि में अपनी दृष्टि से इसकी व्याख्या करूँ तो यह ऐसे होगा । मानव शरीर की उत्तर दिशा उसका मस्तिष्क होता है, यह स्थान कछुए की तरह स्थिर और शांत इसलिए रहना चाहिए क्योंकि शांति से ही एकाग्रता और धैर्य का विकास होता है । और इसी से  लक्ष्मी व धन की वृद्धि होती है । 

इसीलिए ऐसा कहा गया कि उत्तर दिशा बहुत शांत और जल से प्रभावित होना चाहिए । जैसे कछुए का घर जल है वैसे ही मन का घर भी जल से प्रभावित मस्तिष्क है । मन का घर अग्नि नहीं हो सकता है उसका मूल घर जल है वही पर वह शांत और स्थिर रह पाता है । इसीलिए दुर्योधन अपने जीवन के अंतिम समय में शांत और स्थिर रहने के लिए जल के अंदर जा बैठा था । 


धार्मिक मान्यताओं के आधार पर भी देखा जाए तो कछुए के प्रतीकात्मक रूप से घर में रखने पर परिवार के सदस्यों की आयु लम्बी होती है । घर में शांति और स्थिरता बनी रहती है । किंतु व्यावहारिक दृष्टि से कछुए का प्रतीकात्मक ढंग से घर में रखने का आयु से कोई कार्य कारण का सम्बंध नहीं दिखता है । कछुआ मनुष्य की आयु नहीं बढ़ाता है  किंतु कछुए को देखकर मनुष्य उसके स्थिर स्वभाव को मन में remind करवाता है जिससे उसकी इंद्रियाँ शांत हो जाती हैं । इंद्रियों के सामने यदि शांत स्वभाव की वस्तुएँ रहेंगी तो उसके अंतरतम में कहीं न कहीं स्थिरता जन्म लेती रहेगी । वह स्वयं को स्वयं के संतुष्ट करवाता रहेगा । 


यदि बहुत गम्भीरता से विचार किया जाए तो ये पौराणिक मान्यताएँ यह कहना चाह रही हैं कि उन्ही लोगों के आस पास रहो या उन्ही लोगों को आस पास रखो जिसके द्वारा मन मस्तिष्क में शांति और स्थिरता बनी रहे,  साथ साथ घर के अंदर vibration भी अच्छा रहे । जिससे स्वयं के अंदर और परिवार के अंदर कलह न पैदा हो ।  


हठ योग के ऋषियों ने कछुए के उस हिस्से पर ध्यान केंद्रित किया जिसमें उसकी इंद्रियां और साँसों की गति सम्मिलित थी । गहराई से देखने पर उसकी साँसो की सूक्ष्म और लम्बी गति उसकी आयु को अधिक करने में कहीं न कहीं सहायक दिखती है । 

उन्हें यह अनुभव हो चुका था कि यदि साँसों में बहुत कलात्मक गति दे दी जाए तो उसकी गति को बहुत धीरे और लम्बा किया जा सकता है । जिससे मन मस्तिष्क पर शांति का प्रभाव बहुत लम्बे समय बना रहेगा । 

सम्भवतः इसीलिए योगियों ने साँसों को कछुए की तरह धीमी और शांत गति से लेने और छोड़ने को कहा । 

जहां तक इस प्राणायाम में मेरा अपना प्रयोग हैं वह अत्यंत ही रोमांचक रहा है, इससे मैंने स्वयं अपने हृदय की गति को 40 के नीचे लाकर अनुभव किया है । हृदय की इस अवस्था में विचारों का दूर दूर तक नामोनिशान नहीं दिखा यहाँ तक कि विचारों को चाहने के बावजूद भी चला न सका । 


कहने का मूल अर्थ है कि साधक व सामान्य से सामान्य व्यक्ति को जीवन में शांति और स्थिरता चाहिए , और यदि वह स्वयं से स्वयं के द्वारा इस टर्टल प्राणायाम के अभ्यास से मिल जाए तो कहना ही क्या । 

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