टर्टल ध्यान: कछुए और खरगोश की कहानी में जीवन के गहरे रहस्य
कछुए और खरगोश की दौड़ की प्रसिद्ध कहानी में हम देखते हैं कि अंततः धैर्यवान कछुआ जीत जाता है, जबकि जल्दीबाज़ खरगोश हार जाता है। इस कहानी में यह दिखाने का प्रयास है कि धैर्य और स्थिरता के साथ की गई यात्रा अधिक महत्वपूर्ण होती है। कछुए की जीत का कारण उसका धैर्य और स्थिरता है, जबकि खरगोश अपनी जल्दबाज़ी और अधीरता के कारण हार जाता है।
अब, कल्पना कीजिए कि इस कहानी में यदि खरगोश को विजयी घोषित कर दिया जाए तो क्या परिणाम होगा? क्या खरगोश इस जीत को संभाल पाएगा? उसका अस्थिर और जल्दबाज स्वभाव क्या उसे शांति का अनुभव कराएगा? मेरे अनुभव में, नहीं। असल में, चाहे खरगोश जीत भी जाए, उसकी अस्थिरता और जल्दबाज़ी उसे शांति का अनुभव नहीं करने देगी। उसने अपनी यात्रा में केवल जल्दीबाजी और अस्थिरता का अभ्यास किया है, जिससे उसके मन और चित्त में स्थिरता आ ही नहीं सकती।
खरगोश ने गंतव्य तक पहले पहुँचने का प्रयास तो किया, पर वहाँ पहुँचकर भी अपने चंचल स्वभाव के कारण वह शांति का अनुभव नहीं कर पाएगा। उसके लिए यात्रा का मतलब केवल जल्दी पहुँचने का अभ्यास था, न कि स्थिरता का। मेरे अनुभव के अनुसार, यदि यात्रा में स्थिरता नहीं है तो गंतव्य पर पहुँचकर भी शांति का अनुभव नहीं होगा। इस कहानी से यह स्पष्ट होता है कि यह केवल दौड़ नहीं है; यह जीवन की यात्रा है। जल्दीबाज़ी से यह यात्रा सफल नहीं हो सकती।
इसके विपरीत, कछुए ने अपनी यात्रा में हर पल स्थिरता और शांति का अनुभव किया। उसने धीमी गति से, अनुभव करते हुए अपनी यात्रा तय की। उसकी यात्रा एक अभ्यास थी, ध्यान का एक प्रतीक थी। जब वह गंतव्य पर पहुँचेगा, तो शांति और स्थिरता का गहरा अनुभव करेगा। उसे अपनी गति को रोकने में कोई कठिनाई नहीं होगी, जबकि खरगोश अपनी गति नहीं रोक सकेगा क्योंकि उसने अपनी यात्रा में नियंत्रण का अभ्यास ही नहीं किया था। खरगोश के लिए गंतव्य पर पहुँचने का अर्थ केवल शारीरिक और मानसिक थकान का निवारण होगा, जबकि कछुआ तो थका ही नहीं। उसकी यात्रा में उसे स्थिरता का अनुभव मिला, जो गंतव्य पर पहुँचने पर और गहरा होगा।
भारतीय पुराणों में कछुए को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है, जो दर्शाता है कि जीवन एक यात्रा है। जितना आप इसे धैर्य और अनुभव से जिएंगे, उतना ही शांति और स्थिरता का अनुभव कर सकेंगे।
इसी आधार पर मैंने ध्यान की कई पद्धतियों को विकसित किया है, जिसमें विचारों और भावनाओं से खुद को मुक्त करना संभव हो जाता है। इसमें जीवन का अंतिम उद्देश्य नहीं होता; बल्कि जीवन की यात्रा ही उद्देश्य होती है। हर पल जीवन को जीने का अनुभव प्राप्त होता है। इस ध्यान पद्धति में सुषुम्ना नाड़ी सबसे अधिक क्रियाशील होती है, और “रेस्ट एंड डाइजेस्ट” तंत्र बेहतर तरीके से कार्य करता है।
सैद्धांतिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इस पद्धति से लंबी उम्र प्राप्त की जा सकती है, यद्यपि मेरे लिए जीवन की गुणवत्ता का अनुभव अधिक महत्वपूर्ण है न कि उसकी लंबाई।
टर्टल ध्यान: कछुए और खरगोश की कहानी में जीवन के गहरे रहस्य
कछुए और खरगोश की दौड़ की प्रसिद्ध कहानी में हम देखते हैं कि अंततः धैर्यवान कछुआ जीत जाता है, जबकि जल्दीबाज़ खरगोश हार जाता है। इस कहानी में यह दिखाने का प्रयास है कि धैर्य और स्थिरता के साथ की गई यात्रा अधिक महत्वपूर्ण होती है। कछुए की जीत का कारण उसका धैर्य और स्थिरता है, जबकि खरगोश अपनी जल्दबाज़ी और अधीरता के कारण हार जाता है।
अब, कल्पना कीजिए कि इस कहानी में यदि खरगोश को विजयी घोषित कर दिया जाए तो क्या परिणाम होगा? क्या खरगोश इस जीत को संभाल पाएगा? उसका अस्थिर और जल्दबाज स्वभाव क्या उसे शांति का अनुभव कराएगा? मेरे अनुभव में, नहीं। असल में, चाहे खरगोश जीत भी जाए, उसकी अस्थिरता और जल्दबाज़ी उसे शांति का अनुभव नहीं करने देगी। उसने अपनी यात्रा में केवल जल्दीबाजी और अस्थिरता का अभ्यास किया है, जिससे उसके मन और चित्त में स्थिरता आ ही नहीं सकती।
खरगोश ने गंतव्य तक पहले पहुँचने का प्रयास तो किया, पर वहाँ पहुँचकर भी अपने चंचल स्वभाव के कारण वह शांति का अनुभव नहीं कर पाएगा। उसके लिए यात्रा का मतलब केवल जल्दी पहुँचने का अभ्यास था, न कि स्थिरता का। मेरे अनुभव के अनुसार, यदि यात्रा में स्थिरता नहीं है तो गंतव्य पर पहुँचकर भी शांति का अनुभव नहीं होगा। इस कहानी से यह स्पष्ट होता है कि यह केवल दौड़ नहीं है; यह जीवन की यात्रा है। जल्दीबाज़ी से यह यात्रा सफल नहीं हो सकती।
इसके विपरीत, कछुए ने अपनी यात्रा में हर पल स्थिरता और शांति का अनुभव किया। उसने धीमी गति से, अनुभव करते हुए अपनी यात्रा तय की। उसकी यात्रा एक अभ्यास थी, ध्यान का एक प्रतीक थी। जब वह गंतव्य पर पहुँचेगा, तो शांति और स्थिरता का गहरा अनुभव करेगा। उसे अपनी गति को रोकने में कोई कठिनाई नहीं होगी, जबकि खरगोश अपनी गति नहीं रोक सकेगा क्योंकि उसने अपनी यात्रा में नियंत्रण का अभ्यास ही नहीं किया था। खरगोश के लिए गंतव्य पर पहुँचने का अर्थ केवल शारीरिक और मानसिक थकान का निवारण होगा, जबकि कछुआ तो थका ही नहीं। उसकी यात्रा में उसे स्थिरता का अनुभव मिला, जो गंतव्य पर पहुँचने पर और गहरा होगा।
भारतीय पुराणों में कछुए को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है, जो दर्शाता है कि जीवन एक यात्रा है। जितना आप इसे धैर्य और अनुभव से जिएंगे, उतना ही शांति और स्थिरता का अनुभव कर सकेंगे।
इसी आधार पर मैंने ध्यान की कई पद्धतियों को विकसित किया है, जिसमें विचारों और भावनाओं से खुद को मुक्त करना संभव हो जाता है। इसमें जीवन का अंतिम उद्देश्य नहीं होता; बल्कि जीवन की यात्रा ही उद्देश्य होती है। हर पल जीवन को जीने का अनुभव प्राप्त होता है। इस ध्यान पद्धति में सुषुम्ना नाड़ी सबसे अधिक क्रियाशील होती है, और “रेस्ट एंड डाइजेस्ट” तंत्र बेहतर तरीके से कार्य करता है।
सैद्धांतिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इस पद्धति से लंबी उम्र प्राप्त की जा सकती है, यद्यपि मेरे लिए जीवन की गुणवत्ता का अनुभव अधिक महत्वपूर्ण है न कि उसकी लंबाई।
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