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टॉंसिलाइटिस - यौगिक समाधान

3 years ago By Yogi Anoop

टॉंसिलाइटिस की समस्या- यौगिक समाधान                                  

       यह एक ऐसा रोग है जो अपने आप में पीड़ादायी तो है ही किन्तु इसके साथ ही यह अनेक घातक रोगों जैसे ह्रदय के वॉल्व की खराबी , किडनी के रोग तथा जोड़ों की सूजन  को और बढ़ाने में सहायक भी साबित होता है । इस समस्या के मूल में आहार- विहार की गड़बड़ी, गर्मी के मौसम में फ्रिज आदि का पानी पी लेना या ठंढे पानी से नहा लेना, ठंढी में आइसक्रीम खा लेना, ठन्डे मौसम में भीग जाना आदि हो सकता है। इसका लक्षण है ठंढ देकर तेज बुखार आना, कमर एवं हाथ- पैरों में दर्द होना, गले में खराश एवं निगलने में तकलीफ होना; श्वास में बदबू, श्वास लेने में भारीपन होना, खांसी, कफ, आवाज का भारीपन आदि । 

                                  

    आधुनिक चिकित्सा विज्ञान इस समस्या के निदान में एंटी बायोटिक्स का प्रयोग करती है। बहुत गंभीर स्थिति में सर्जरी की सलाह देती है।  किन्तु, यौगिक क्रियाएं तथा यौगिक जीवन शैली इस समस्या के निदान में बहुत प्रभावकारी सिद्ध होती हैं। इस हेतु निम्न यौगिक क्रियाएं रामबाण सिद्ध होती हैं- 

                                                                      

1- आसन एवं सूर्य नमस्कार -  इस समस्या की गम्भीर अवस्था में किसी भी आसन व प्राणायाम का किया जाना वर्जित होता है किंतु जब लक्षण में आराम मिल जाये तो अपने अभ्यास में सिंहासन, ताड़ासन, वृक्षासन, त्रिकोणासन, जानुशिरासन, उष्ट्रासन, सुप्तवज्रासन, पवनमुक्तासन, नौकासन, धनुरासन, भुजंगासन आदि जोड़ देना चाहिए।  साथ में, सूर्य नमस्कार के अपनी क्षमतानुसार चक्रों का अभ्यास प्रारम्भ कर देना चाहिए। यहाँ पर सिंहासन के अभ्यास की विधि का वर्णन किया गया है- 

                                    

सिंहासन की विधि-    किसी मैट या चटाई पर दोनों पैरों को सामने की ओर सीधा फैलाकर बैठ जाइये। शरीर के सभी अंगों को ढीला और हल्का छोङकर सजगतापूर्वक पांच लम्बी और गहरी श्वास- प्रश्वास लीजिये। अब घुटनों के बल बैठ जाइये। दोनों पैरों की एड़ियों के बीच में नितम्ब को स्थापित करिये। किन्तु घुटनों के मध्य लगभग डेढ़ फिट का अंतर कीजिये।  फिर हथेलियों को घुटनों के मध्य जांघों के समीप इस प्रकार रखिये कि कलाइयां बाहर की ओर हों तथा अंगुलियां अंदर की ओर हों।  इसके बाद, धड़ को थोड़ा आगे की ओर झुकाते हुए मुख को खलकर जिह्वा को अधिकतम बाहर की ओर निकालिये।  जिह्वा को बाहर रखते हुए ही गले से शेर जैसा गुर्राने की आवाज निकालिये। चार- पांच बार ऐसी आवाज निकालिये। 

                                  

 2- प्राणायाम-  प्राणायाम एक ऐसा साधन है जिसके निरंतर अभ्यास से इस रोग से धीरे धीरे मुक्ति सम्भव है । ऐब्डॉमिनल ब्रीधिंग और छाती से प्राणायाम करना बहुत ही लाभदायक होगा । उज्जायी और नाड़ी शोधन का अभ्यास करें। रोग से मुक्त होने के एक- दो सप्ताह बाद कपालभाति का अभ्यास भी प्रारम्भ कर दें । 

यहाँ पर उज्जायी प्राणायाम के अभ्यास की विधि का वर्णन प्रस्तुत है- 

                                     

उज्जायी प्राणायाम की अभ्यास विधि-    योग मैट पर ध्यान के किसी सामान्य आसन में बैठकर जैसे सुखासन या कुर्सी पर रीढ़, गला व सिर को सीधा कर बैठ जाइये । अब अपनी जिह्वा के अगले भाग को मोड़कर ऊपर वाले तालु से सटा लीजिये। यह खेचरी मुद्रा है। अब गले को संकुचित करते हुए नासिका द्वारा एक धीमी, लम्बी और गहरी श्वास इस प्रकार अंदर लीजिये नासिका द्वारा ही एक धीमी, लम्बी तथा गहरी श्वास इस प्रकार बाहर निकालिये की हा हा हा की आवाज बाहर निकले । इसको कम से कम 11 मिनट किया जाय तो बहुत लाभकारी होगा । 

इस रोग में प्राणायाम के बाद ध्यान करना वर्जित है । 

                                    

 3-नेति-   किसी योग्य गुरु के निर्देशन में नेति का अभ्यास यदि किया जाय तो इस रोग से मुक्ति में सहायता मिलेगी । विशेशकरके प्राणायाम के बाद किया जाना चाहिए ।                                      

                                      

4- आहार-   रोग की गंभीर अवस्था में सूप, सब्जी का रस, काढ़ा, फलों का रस, चने को भिगोकर उसका पानी, दाल को पकाकर उसका पानी आदि जैसे पेय ही लेना चाहिए। किन्तु, रोग के ठीक होते ही पतली खिचड़ी और दलिया आदि लेना चाहिए। जब रोग बिलकुल ही ठीक हो जाये तब सामान्य भोजन लेना प्रारम्भ करना चाहिए।    

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