मेरे अपने अनुभव में एक समय में एक से अधिक कार्य (multitasking) मस्तिष्क और ग्रंथियों के लिए सबसे अधिक ख़तरनाक होता है , ये सत्य है कि प्रारम्भ में इसका अभ्यास अत्यंत सुखदायी और त्वरित नतीजा देने वाला होता है । किंतु कुछ वर्षों के बाद यह multitasking मन के भटकाव के रूप में देखा जाता है और अंततः किसी न किसी मानसिक बीमारी के रूप में ये दिखता है ।
वैसे ही कुछ लोग टहलते समय प्राणायाम की सलाह देते हैं, यदि वैज्ञानिक तरीक़े से देखा जाय तो किसी भी शारीरिक क्रिया को करते समय शरीर के अंदर स्थित अंगों का अपना एक rhythm होता है, दौड़ने वाला व्यक्ति की शरीर में जिस प्रकार खिंचाव की मात्रा बढ़ती है उसी आधार पर फेफड़ों, हृदय इत्यादि में एक गति पैदा होती है , वही गति , वही तारतम्यतामन और मस्तिष्क को शांत करता है । मस्तिष्क की प्रतिरोधक शक्ति को तभी बढ़ाया जा सकता जब उसके इंद्रियों और शरीर में तारतम्यता हो ।
टहलने और दौड़ने में आपका ध्यान सबसे पहले मांसपेशियों पर होता , उन मांसपेशियों के खिंचाव करने पर शरीर के आन्तरिक अंगों की मालिश की जाती है ,
कहने का अर्थ है किसी भी शारीरिक अभ्यास में मांसपेशियों का खिंचाव प्रथम होता है और परिणामस्वरूप में शरीर के अंगों में खिंचाव पैदा करके मन मस्तिष्क को शांत किया जाता है । और जब मस्तिष्क को आराम मिलता है तब शरीर को हीलिंग मोड पर दल देता है ।
ध्यान दें; प्राणायाम के दौरान बाह्य मांसपेशियों पर ध्यान नहीं दिया जाता है , केवल और केवल लंग्स के rhythm पर एकाग्रता और उसके अनुभव पर ध्यान दिया जाता है जिससे कि मांसपेशियाँ शांत हो जायँ और लंग्स का अभ्यास होता है । प्राणायाम के समय फेफड़े पर ध्यान देते हुए अन्य हिस्सों में ज़ाया जाता है ।
किंतु किसी भी दैहिक अभ्यास के समय प्राणायाम का अभ्यास करने का अर्थ है कि प्राण के संचालन में बाधा उत्पन्न करना । क्योंकि अधिक अभ्यास से फेफड़े के अंदर जो भी परिवर्तन हो रहा वह स्वाभाविक है और उसी समय प्राणायाम करके उस गति में बाधा किया जाना बहुत ही ख़तरनाक होता है । इसलिए साधकों से अनुरोध है कि टहलते या किसी भी शारीरिक आभास के समय स्वाँस पर ध्यान देना रोग पैदा करना है । लंग्स जबजस्त रेटैलीएट करता है, और वह इतना विद्रोह करता है कि आपके पर मस्तिष्क तंत्र को को रोगी बना देता है । उसको सम्भाल पाना मेडिकल साइयन्स , आयुर्वेद , प्राकृतिक चिकित्सा , यूँ कहिए कि किसी भी चिकित्सीय पद्धति के ठीक करने के बस की बात नहीं है ।
किस बात पर ध्यान देना चाहिए ।
1-शारीरिक अभ्यास के समय गति की निरंतरता पर ध्यान देना चाहिए
2-शारीर के किन किन हिस्सों में तनाव खिंचाव हो रहा है , उसका अनुभव करना चाहिए ।
3-टहलते हुए आँखों को बहुत ढीला करने की कोशिश करना चाहिए , यदि आँखें और माथा ढीला और तनाव रहित हैं तो विचारहीनता बहुत शीघ्र आ जाती है ।
4-बहुत जोश में , हाइपर होकर टहलना या कोई भी शारीरिक अभ्यास वर्जित है । इस प्रकार के वर्जिस से भले ही थोड़ी देर के लिए मन शांत हो जाय किंतु बाद में ऐंज़ाइयटी का कारण बँटी है ।
5-गति की सीमा बहुत अधिक न बढ़ाएँ , बहुत हाइपर न हों , ऐसे लोगों के जीवन की लम्बाई बहुत कम देखी जाती है ।
6- टहलने के पहले और बाद में अवश्य ही पानी पीना चाहिए , पीना धीरे ही होना चाहिए ।
7- किसी भी शारीरिक अभ्यास के बाद प्राणायाम करने से बहुत अधिक लाभ लिया जा सकता । इससे उच्च रक्त चाप नियंत्रण में आ जाता है ।
8- यदि विचारों की मार से बचना है तो तो अनुभव को बाधन आवश्यक है ।
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