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ठहरो, रुको और प्राप्त करो

2 years ago By Yogi Anoop

ठहरो, रुको और प्राप्त करो  

“ये मत कहिए कि जब हमें प्राप्त हो जाएगा तब हम रुक जाएँगे, सत्य तो ये है जब हम रुकते हैं तो प्राप्त हो जाता  है” 

मन स्वभावतः चंचल है, इसलिए कि उसे पाँच दिशाओं (आँख,कान,नाक,जिह्वा और त्वचा ) से विषय ग्रहण करने होते हैं । पाँच दिशाओं से भिन्न भिन्न विषयों को लेकर मन जब उसे संचालित न कर पाने के बजाय स्वयं ही उसके जाल में घिरने लगता तब उसे चंचल होना ही पड़ता है । 

सम्भवतः इसीलिए मन हमेशा बचने का प्रयास करता है, हमेशा छटपटाता रहता है । उन पाँचों इंद्रियों से बिना रुके लगातार विषयों का आना उसके लिए मुसीबत बन जाता है । वह उसी विषयों में उलझता चला जाता है । समस्या यह है कि उससे बचने के लिए वह एक अन्य विषय व अन्य स्वनिर्मित कल्पनाओं का सहयोग लेता है किंतु सत्य है कि वे सभी कुछ और ही उलझन का कारण बन जाते  है । 

   ज़्यादातर ऐसा देखा गया है कि मन उन्ही सिद्धांतों को जन्म देता है जो अधिक वैचारिक और कल्पनात्मक होते हैं, वो कल्पनाओं का जाल बिछाता है किंतु भविष्य में वह स्वयं को ही मुसीबत में डाल देता है, वह उसी बुने हुए जाल में फँस जाता है  । 


     ध्यान दें दुनिया में किसी भी धार्मिक पुस्तकों को देखो उसमें उड़ान-डकान की सबसे अधिक बातें होती हैं । वह काल्पनिक और अनुभवहीन तथ्यों से भरी होती हैं । ऐसे तथ्यों और प्रमाणों से भरी होती हैं जिसमें कम कर्म करके अधिक से अधिक इक्षा के अनुरूप फल प्राप्त हो जाता है । 

सत्य यह है कि मन संतुष्ट होने के लिए विषयों का निर्माण करता है, अनंत को पाने के लिए वह वह गिनतियों पर गिनतियाँ गिनता जाता है । उसे लगता है कि एक दिन अनंत मिल जाएगा । किंतु विचारों से ही विचार ही पैदा हो सकते है , और उन विचारों के माध्यम से भला विचारों के परे कैसे ज़ाया जा सकता है ! क्या गिनतियाँ करते करते गिनतियों से परे जा सकते हैं !


यह भारतीय ऋषियों ने समझ लिया था कि विचारो के माध्यम से अनंत को प्राप्त नहीं किया जा सकता है, इसीलिए उन्होंने अवलोकन को जन्म दिया , इसीलिए उन्होंने शून्य को जन्म दे दिया । 

उन्होंने यह समझने और समझाने का प्रयास किया कि चाहे जितना विचार करो विचारो से परे नहीं ज़ाया सकता है । उन्होंने स्पष्ट कहा कि रुको - ठहरो और अवलोकन करो । चलते रहने व भागते रहने से किसी को कुछ भी नहीं हुआ । यदि प्राप्त करना है तो रुकना पड़ता है, शांत होने के लिए रुकना पड़ेगा , स्थिर होना पड़ेगा । जैसे ही रुकोगे वैसे वो शांति स्थिरता प्राप्त हो जाएगी । 

     

अनिद्रा से पीड़ित एक व्यक्ति ने मुझसे कहा कि सोने के पहले मैं संकल्प करता हूँ कि 

‘मैं आत्मा हूँ’, ‘मैं शक्तिशाली हूँ , ‘न मिटने वाला हूँ’,

इन सभी संकल्पों के बावजूद भी नींद नहीं आती है । घंटों घंटों इसी संकल्प में चले जाते हैं फिर भी नींद नहीं आती है । क्या करूँ ? 


मैंने कहा कि ग़लत रास्ते पर हो, जिस गुरु से दीक्षित हुए हो उन्हें भी नींद नहीं आती होगी । 

भला ये बताओ कि नींद में जाने के लिए शक्तिशाली बनने की क्या ज़रूरत है !


 ‘न मिटने वाला हूँ’  ऐसा संकल्प क्यों कर रहे हो ! आख़िर नींद तो तभी आती है जब मिटते हैं । मन स्वयं को मिटाने के लिए ही तो नींद चाहता है । और आप हैं कि ‘न मिटने का संकल्प ले रहे हैं’ । कहने का अर्थ है कि मन को और सक्रिय कर रहे हैं । 


ये विचार अनिद्रा को और बढ़ा देते हैं , इसलिए कि नींद में जाने कि लिए कोई सिकंदर जैसा होने की अनुभूति नहीं करनी है , नींद में जाने के लिए तो छोड़ना आना चाहिए और आप क्या कर रहे हैं कि ‘मैं नहीं मिटता’ । फिर जागो रात भर  । अरे जहां जाने की आस लगा रहे हो वह अवस्था ही है संकल्प रहित है । मुझे बताओ संकल्पों से संकल्प रहित अवस्था को भला कैसे प्राप्त किया जा सकता है ।  संकल्पों को समाप्त करने के लिए इन सभी इंद्रियों को ढीला छोड़ना पड़ता है, इंद्रियों की सभी खिड़कियों को बंद करना पड़ता है , कल्पनाओं को रोकना पड़ता है , विचार को बंद करना है ।  और आप हैं कि वहाँ सिकंदर बनने की कोशिश में जुटे हुए हो । मैं शक्तिशाली हूँ । 


‘शक्तिशाली हूँ’ ऐसा संकल्प करोगे तो शरीर में रक्त का संचार बढ़ जाएगा, शरीर में खिंचाव बढ़ेगा, मस्तिष्क सक्रिय हो जाएगा,  कुछ ऐसे ही जैसे आपने रक्त में caffeine डाल दिया हो । 

 

जब तक रुकोगे नहीं, जब तक इस देह को ढीला करना सीखोगे नहीं । अथवा ढीला करोगे नहीं तो भला रुकोगे कैसे ।  विचार जब तक ढीला नहीं होगा, ठहरेगा नहीं तब तक शरीर और इंद्रियाँ को छोड़ नहीं सकते । और जब तक संकल्प होगा, विचार होगा तब तक मन शून्य नहीं हो सकता । और मन जब तक शून्य नहीं होगा तब तक शरीर को छोड़ कर गहन निद्रा में नहीं जा सकते । 

“जब तक छोड़ना नहीं सीखोगे तब तक रुक नहीं पाओगे , और जब तक रुक नहीं पाओगे तब तक कुछ भी प्राप्त ना कर पाओगे”



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