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तीसरी आंख: एक गहन अनुभव

3 months ago By Yogi Anoop

तीसरी आंख: एक गहन अनुभव


तीसरी आंख के बारे में बात करते समय हमें सबसे पहले यह स्पष्ट करना चाहिए कि यह आम लोगों के लिए एक भ्रम हो सकता है। इसे अक्सर दोनों भौंहों के बीच के स्थान के रूप में दर्शाया जाता है, जहाँ एक काल्पनिक आंख होती है, जो खुलकर पूरे ब्रह्मांड को देखती है। हालाँकि, यदि हम तकनीकी दृष्टिकोण से देखें, तो वहाँ वास्तव में कोई भौतिक आंख नहीं होती। यह एक प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व है। तीसरी आंख की अवधारणा का उपयोग इसलिए किया गया है क्योंकि हमारे पास तीसरा नथुना, तीसरा कान या दूसरा मुँह नहीं है। केवल तीसरी आंख का संदर्भ है, जिसका अर्थ है कि यह एक अतिरिक्त अंग का विचार है।


हम आमतौर पर अपनी बाहरी दुनिया को देखने के लिए दो आंखों का उपयोग करते हैं, लेकिन हम स्वयं को इन आंखों से नहीं देख सकते। जब हम बाहरी वस्तुओं को देखते हैं, तो तीसरी आंख का अर्थ है कि हम इन दोनों आंखों के माध्यम से अपने आप को अनुभव करने लगे हैं। यदि ज्ञान हो रहा है, तो इसका अर्थ है कि आपकी वजह से मुझे अपना ज्ञान प्राप्त हुआ है। तीसरी आंख, या थर्ड आई, एक ऐसी दृष्टि है, जो हमें वस्तुओं से परे अनुभव कराती है। यह हमें बाहरी संसार के अलावा भी चीजों का अनुभव करने का मार्ग प्रशस्त करती है।


नहीं देखने का अर्थ हमेशा आंखों से देखने का नहीं होता। हम यहां “देखने” का अर्थ अनुभव करना मानते हैं। उदाहरण के लिए, जब हम भोजन का स्वाद लेते हैं, तो हम उसे नहीं देख सकते, बल्कि अनुभव करते हैं। इसी तरह, जब कोई व्यक्ति कहता है कि वह ईश्वर को देखना गलत मानता है, तो एक साधारण व्यक्ति इसे आंखों से देखने के संदर्भ में गलत समझता है। असल में, देखने का अर्थ अनुभव करना है। ये अनुभव सर्वव्यापक और बिना सीमा के होते हैं, जिन्हें आंखों से नहीं देखा जा सकता।


जब हम अपने अनुभव में गहराई तक जाते हैं, तो हम इमेज-लेस अवस्था में पहुंच जाते हैं। जब हम अपने आपको अनुभव करते हैं, तो वहां कोई रंग, आकार या दिशा नहीं होती—हम सिर्फ अनुभव करते हैं। यह इमेज-लेस स्थिति इस बात का प्रमाण है कि हम अपनी तीसरी आंख के माध्यम से स्वयं का अनुभव कर रहे हैं। हठ योग और राज योग में, तीसरी आंख पर ध्यान केंद्रित करने का अभ्यास केवल इसलिए किया जाता है ताकि हम अपनी मानसिक स्थिति को संतुलित रख सकें।


हमारे मन में जो यादें होती हैं, वे शब्दों के रूप में नहीं, बल्कि इमेज के रूप में संग्रहीत होती हैं। जब आप किसी किताब को पढ़ते हैं, तो वह स्थान, दिशा, रंग, और आकार सभी आपकी यादों में जुड़ जाते हैं। लेकिन जब आप गहराई में जाकर कुछ अनुभव करते हैं, तो वहां कोई रंग या आकार नहीं होता। यह अनुभव एक इमेज-लेस अवस्था होती है।


जब हम ध्वनि सुनते हैं, तो हमारा मन पहले दिशा की पहचान करता है। यदि ध्वनि दाईं ओर से आती है, तो हमारा मन उस दिशा की ओर स्थानांतरित हो जाता है। यह हमारे संवेदनाओं का स्वाभाविक व्यवहार है।


इसलिए, तीसरी आंख का अर्थ केवल एक साधारण दृष्टि नहीं है। यह एक गहन अनुभव है जो हमें हमारे वास्तविक स्व का अनुभव कराता है। ध्यान और साधना का अभ्यास हमें इस गहन अनुभव में पहुंचने में मदद करता है। हालाँकि, हमें ध्यान रखना चाहिए कि अत्यधिक फोकस से कुछ साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं। इसलिए, ध्यान के दौरान संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।

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