ध्यान और नींद का अनुभव: गहन हीलिंग
ध्यान का अभ्यास जैसे-जैसे गहरा होता है, वैसे-वैसे इसका प्रभाव भी अधिक स्पष्ट होने लगता है। कई साधक ध्यान करते समय यह अनुभव करते हैं कि उन्हें नींद आने लगी है। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जिसमें न्यूरॉन्स द्वारा छोड़े गए विद्युत तरंगों की गति बहुत धीमी होने लगती है। अल्फा (फ्रीक्वेंसी: 8-13 Hz) और थीटा (फ्रीक्वेंसी: 4-8 Hz) जैसी गति के समान होनी प्रारंभ होने लगती है। यह अवस्था आते-आते मस्तिष्क बहुत शांत होने लगता है और उसे नींद की खुमारी आने लगती है।
अंतरतम वह गहरी शांति चाहता है, यहाँ तक कि उसे अल्फा और थीटा तरंगों की गति से प्राप्त होने वाली शांति से अधिक गहन शांति चाहिए होती है। इसीलिए मन उस रिक्तता (शून्यता) की अवधि को और बढ़ाना चाहता है। रिक्तता की अवधि के बढ़ने का अर्थ है कि विद्युत तरंगों की गति और धीमी हो जाती है। यह धीमी गति का अर्थ है गहन निद्रा में चले जाना, अर्थात् डेल्टा तरंगें (फ्रीक्वेंसी: 0.5-4 Hz) की अवस्था में जाना।
ध्यान दें कि इस अवस्था में मस्तिष्क में उन विद्युत तरंगों की गति इतनी धीमी होती है कि मस्तिष्क सूक्ष्म कोशिकाओं में पूर्ण शिथिलता आ जाती है। इस शिथिलता की अनुभूति अधिक समय तक बरकरार नहीं रह पाती है, परिणामस्वरूप मन, अमन में रूपांतरित हो जाता है। और इस समय दो स्थितियों के प्रकट होने की संभावनाएँ होती हैं: प्रथम गहन निद्रा में चले जाना, जिसमें गहनता से हीलिंग होने लगती है। और द्वितीय, ध्यान की चरम अवस्था में चले जाना, अर्थात् उस अनुभव के रहते हुए नींद में न जाना। यही समाधि अवस्था है। यहाँ पर यह विश्लेषण करने का विषय है कि जब डेल्टा विद्युत तरंगों (0.5-4 Hz) की गति में न तो स्वयं का और न ही देह का भान रहता, और यदि समाधि के समय इसी गति में साधक रह पाये और साथ-साथ वह जागृत रहे, सचेत रहे, तो यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। यह एक ऐसी हीलिंग है जो न केवल देह की बल्कि स्वयं के आत्मज्ञान का भी सशक्त माध्यम है। इन विद्युत तरंगों की धीमी से धीमी गति में स्वयं की स्थिरता का बोध बहुत आसानी से हो जाता है।
जैसे बाहरी परिस्थिति बहुत ही तूफान से युक्त हो, तो स्वयं की स्थिरता का बोध कर पाना सरल नहीं होता है, उसमें बहुत आपाधापी का सामना करना पड़ता है, किंतु बाहर के तूफान बंद हो जाने से स्वयं की अनुभूति और उसकी स्थिरता की अनुभूति कर पाना बहुत आसान हो जाता है।
नींद और ध्यान में अंतर
ध्यान और नींद के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है—ध्यान में जागरूकता बनी रहती है, जबकि नींद में स्वयं के होने या न होने की अनुभूति अल्पकालिक रूप से समाप्त हो जाती है। जब ध्यान के दौरान मस्तिष्क में सूक्ष्म कोशिकाओं में शिथिलता आने लगती है, तब मस्तिष्क पूर्ण विश्राम की अवस्था में जाने लगता है। इसी विश्राम का साक्षात अनुभव होना ही ध्यान है और इस अनुभूति की अवधि का बढ़कर अधिक होना समाधि है। यह अवस्था सचेत अवस्था ही होती है। इसी को ध्यान एवं ध्यान के बाद की अवस्था समाधि कहते हैं।
ध्यान की गहरी अवस्था में विचार धीरे-धीरे शांत हो जाते हैं और व्यक्ति अत्यधिक संतोष का अनुभव करने लगता है। यह स्थिति इतनी आनंददायक होती है कि साधक स्वतः ही उसमें लीन हो जाता है। लेकिन यदि वह पूरी तरह से अचेतन हो जाए, तो वह नींद बन जाती है। इसलिए ध्यान का उद्देश्य केवल विश्राम प्राप्त करना नहीं, बल्कि उस विश्राम में पूर्ण जागरूकता बनाए रखना है।
ध्यान: मानसिक विश्राम से आगे की यात्रा
ध्यान का अभ्यास केवल मानसिक विश्रांति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति को स्वयं की वास्तविक पहचान करवाता है। यह स्वयं की स्थिरता का बोध करवाता है। किंतु मैं सामान्य लोगों के लिए इसे चिकित्सीय दृष्टि से देखता हूँ। यह उन विचारों की अति भीड़ से मुक्ति तो देता ही है, साथ-साथ कई मानसिक रोगों से भी मुक्ति में सहायता करता है। और साथ-साथ नींद का एक प्रमुख स्रोत है।
यहाँ तक कि विज्ञान ने भी यह स्वीकार किया है कि मस्तिष्क में विद्युत तरंगों की गति का कम होना देह और मस्तिष्क के स्वास्थ्य का बढ़ना होता है। यदि इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो ध्यान की पद्धति से यह सभी संभव होता हुआ अनुभव होता है।
आधुनिक जीवन में नींद एक प्रमुख समस्या बनकर उभर रही है। इसके लिए यह ध्यान पद्धति एक प्रमुख विकल्प के रूप में देखी जा सकती है। किंतु ध्यान रहे कि इसका वास्तविक उद्देश्य केवल नींद प्राप्त करना नहीं है। यह सीमित दृष्टिकोण हो सकता है, किंतु इसका वास्तविक उद्देश्य तो बहुत बड़ा है—वह है स्वयं की अनुभूति।
ध्यान को केवल एक विश्राम तकनीक समझना इसकी गहराई को कम आंकने जैसा होगा। यह सही है कि ध्यान से व्यक्ति को मानसिक विश्रांति और तनावमुक्ति मिलती है, लेकिन इसका असली उद्देश्य आत्म-जागरण है। जब ध्यान सही तरीके से किया जाता है, तो व्यक्ति अपने भीतर की गहराइयों तक पहुँचता है, उसकी अनुभूति करने में समर्थ हो पाता है। विचारों का नियंत्रण तो उस प्रक्रिया में स्वतः ही हो जाता है।
यह व्यावहारिक रूप से सिद्ध है कि ध्यान और नींद के अनुभव में गहरा संबंध है। ध्यान करते समय नींद का अनुभव होना स्वाभाविक है, क्योंकि ध्यान शरीर और मन को गहरे विश्राम की ओर ले जाता है। किंतु ध्यान का असली उद्देश्य विश्राम से आगे जाकर पूर्ण आत्म-जागरूकता की स्थिति में पहुँचना है, जिसे स्वयं की अनुभूति कहते हैं।
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