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तंत्रिका तंत्र और मस्तिष्क का संतुलन: क्रिया योग

1 week ago By Yogi Anoop

तंत्रिका तंत्र और मस्तिष्क का संतुलन: क्रिया योग 

तंत्रिका तंत्र और मस्तिष्क का संतुलन हमारे जीवन की हर क्रिया का आधार है। यदि मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र सही से कार्य करें, तो शरीर स्वस्थ रहता है और मानसिक शांति बनी रहती है। आधुनिक जीवनशैली, गलत मुद्रा और तनाव के कारण तंत्रिका तंत्र कमजोर हो जाता है, जो कई प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोगों का कारण बनता है। इस लेख में जानेंगे कि सही मुद्रा, रीढ़ की देखभाल, और योग-ध्यान के माध्यम से तंत्रिका तंत्र और मस्तिष्क का संतुलन कैसे बनाया जा सकता है।

शरीर और रीढ़ का आराम

जब मांसपेशियां शांत और स्थिर स्थिति में होती हैं और रीढ़ को आराम मिलता है, तो मस्तिष्क और हृदय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। और इसी के विपरीत जब मन मस्तिष्क और इन्द्रियाँ शांत और स्थिर रहती हैं तो तेरह और देह की अन्य माँसपेशियाँ अपनी हीलिंग की सर्वोत्तम अवस्था में होती हैं । उदाहरण के लिए, जब आप बात करते हैं, तो चेहरे और जबड़ों में केवल उतना ही तनाव होता है, जितना आवश्यक होता है। यह सहज स्थिति सुनिश्चित करती है कि रीढ़ पर कोई अनावश्यक दबाव न पड़े। 

रीढ़ को सही स्थिति में रखने से तंत्रिका तंत्र स्वाभाविक रूप से तनावमुक्त रहता है। आधुनिक विज्ञान  इसे तकनीकी रूप से समझाती है, लेकिन योग और ध्यान के अनुभव इसे सहज और सरल बना देते हैं। रीढ़ की सही दिशा और रीढ़ में लचीलापन न्यूरॉन्स मके आपसी संबंधों में भी लचीलापन स्थापित करती हैं जिससे मस्तिष्क शांत स्थिर रहने में कामयाब हो जाता है । ऐसी अवस्था में शरीर के सभी अंग बेहतर कार्य करते हैं । 

ऑक्सीजन और रक्त प्रवाह का महत्व

तंत्रिका तंत्र और मस्तिष्क के  स्थिरतापूर्वक सुचारू रूप से कार्य के लिए ऑक्सीजन और रक्त में प्रवाह का संतुलन अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रत्येक अंग को उसकी आवश्यकता के अनुसार रक्त और ऑक्सीजन मिलना चाहिए। पाचन के दौरान अधिक रक्त प्रवाह पाचन तंत्र को चाहिए होता है, जबकि शारीरिक गतिविधियों में यह मांसपेशियों की ओर केंद्रित होता है।

यदि रक्त प्रवाह में असंतुलन हो, तो मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र प्रभावित होते हैं। रीढ़ पर अत्यधिक दबाव पूरे शरीर के कार्यों को बाधित करता है, जिससे थकान, चिड़चिड़ापन और अन्य मानसिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

सही मुद्रा और रीढ़ की देखभाल

सही मुद्रा तंत्रिका तंत्र को संतुलित रखने का पहला कदम है।

• मानसिक तनाव के साथ लंबे समय तक कुर्सी पर बैठने से रीढ़ पर अनावश्यक दबाव पड़ता है। वह इसलिए क्योंकि तनाव के समय बैठने की स्थिति वैसे ही ठीक नहीं होती है ,और साथ साथ रीढ़ के अंदर मानसिक तनाव की प्रतिक्रिया मौजूद रहती है । इसलिए प्रयत्न यही करना चाहिए कि रीढ़ को सीढ़ी रेखा में थोड़े समय के लिए किया जाय और पुनः कुछ पल के लिए उसे कुर्सी के पीछे टिकाने के लिए सहयोग दिया जाना चाहिए ।  

• यदि मानसिक तनाव न कम हो पा रहा हो तो रीढ़ में कुछ पाल के लिए बैठे ही बैठे तनाव व खिंचाव अँगड़ाई के रूप में करना चाहिए और पुनः रीढ़ को शिथिल करना चाहिए । इस प्रक्रिया से रीढ़ ही नहीं बल्कि मस्तिष्क को भी तनावमुक्त किया जा सकता है । साथ साथ कितने घंटों तक बैठकर ऑफिस का कार्य किया जा सकता है । 

ध्यान दें कुर्सी पर हमेशा पीछे सहयोग लेना उपयुक्त नहीं होता है , कुछ पाल के लिए रीढ़ को बिना पीछे सहयोग के बैठे रहने देना चाहिए जिससे रीढ़ में थोड़ा सा तनाव अधिक हो जाये उसके बाद रीढ़ को कुर्सी के सपोर्ट में रख देना चाहिए । ऐसे ही दिन में कई बार करना चाहिए । इस प्रक्रिया से रीढ़ की शक्ति में और उच्चतर विकास होता है । और मस्तिष्क की तंत्रिका तंत्र बेहतर होता हुआ अनुभव भी होगा । 

योग और ध्यान: तंत्रिका तंत्र को सशक्त करने का माध्यम योग और ध्यान तंत्रिका तंत्र और मस्तिष्क को संतुलित करने के लिए सबसे प्रभावी साधन हैं।

1. हठ योग: रीढ़ को सीधा रखने और तनावमुक्त स्थिति में रखने के लिए हठ योग प्रभावी है। इसमें कुछ ऐसे आसन किए जाने चाहिए जो पूरी रीढ़ को मजबूत बनाए रखें , जैसे भुजंग आसन , पश्चिमोत्तान आसन , सेतुबंध आसन , भुजंग आसन और शलभ आसन इत्यादि प्रमुखता से शामिल होते हैं 

2. प्राणायाम: रीढ़ तंत्रिका तंत्र को बेहतर करने के लिए सबसे उपयुक्त माध्यम शिथिलता । रीढ़ में शिथिलता कर देने का अर्थ है प्राण शक्ति का पूर्ण रूप से रीढ़ और मस्तिष्क में अवशोषण । इसमें न केवल सांसों पर नियंत्रण बल्कि श्वसन के अनुभव की गहराई में जाकर शिथिलता का अनुभव किया जाता है । इस प्रक्रिया से न केवल रीढ़ और मस्तिष्क बल्कि मन और विचार भी पूर्ण शिथिल हो जाते हैं । 

3. ध्यान: अनुभव का वह माध्यम जिसमें अनुभावकर्ता वाह्य विषयों को आधार बना कर स्वयं को अनुभव करता है । ध्यान मन को शांति प्रदान करता है और विचारों को शिथिल करता है। नियंत्रण शब्द मुझे बहुत अच्छा नहीं लगता , मुझे शिथिलता शब्द बहुत पसंद है । इसीलिए मैं विचारों की शिथिलता का अनुभव कहता हूँ । 

विचार जितना शिथिल होते जाते हैं उतना ही मस्तिष्क और रीढ़ में स्थित तंत्रिका तंत्र शांत और स्थिर होते जाते हैं और उतना ही तंत्रिका तंत्र ऊर्जावान होती जाती हैं ।

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