दूसरों की नहीं बल्कि स्वयं के पवित्रात्मा का अनुभव करो
यह व्यावहारिक सत्य है कि आपको कभी भी किसी अन्य व्यक्ति के शरीर व मन में हो रहे परिवर्तन का प्रत्यक्ष अनुभव नहीं हो सकता है । उसके सुख दुख में सरीक़ होना तो संभव है , किंतु उसके शरीर के सुख दुख को अनुभव कर पाना असंभव है ।
वह इसलिए कि किसी भी व्यक्ति कि इंद्रियाँ और मन उसके ही देह को प्रत्यक्ष अनुभव करने के लिए बनी हैं अन्य के अनुभव हेतु नहीं बनी । यह भी सत्य है कि किसी के बारे में सोचकर भाव में आकर सुख दुख हो सकता है किंतु स्वयं का शारीरिक और मानसिक कष्ट स्वयं को ही साक्षात अनुभव होता है किसी अन्य को अनुभव होना संभव नहीं ।
बिलकुल उसी प्रकार कोई भी व्यक्ति
में व किसी कल्पित व्यक्ति की आत्मा की पवित्रता का अनुभव आपको प्रत्यक्ष रूप से नहीं हो सकता है जितना कि आप अपने अंदर स्वयं का अनुभव कर पाते हैं । स्वयं की पवित्रता का अनुभव इसलिए संभव है क्योंकि आपकी इंद्रिय और आपका शरीर आपसे जुड़ा हुआ है । वैसे ही जैसे किसी व्यक्ति के शरीर में दर्द का अनुभव कोई अन्य शरीरधारी व्यक्ति नहीं कर सकता है । वह उसके अनुभव को साझा भले कर ले किंतु प्रत्यक्ष अनुभव उसके बस की बात नहीं । प्रत्यक्ष अनुभव करने के लिए उसका शरीर आपसे जुड़ा होना चाहिए । प्रत्यक्ष अनुभव तो आपको आपकी सभी इंद्रियों के माध्यम से ही संभव है और उसके लिए आपको अपने शरीर और इंद्रियों से भौतिक रूप से और आंतरिक रूप से जुड़ा हुआ होना चाहिए ।
आपके देह में जो भी हो रहा है उसको मन और इंद्रियाँ ही तो प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करवाती हैं । किसी दूसरे व्यक्ति के शरीर में होने वाले परिवर्तन (सुख-दुख) को आपके द्वारा प्रत्यक्ष अनुभव नहीं किया जा सकता है । आप अपने देह में ही रहते हैं तो उसका अनुभव आप सबसे अधिक कर सकते हैं , दूसरा जो अपने देह में रहता है वह स्वयं को अधिक अनुभव करेगा । किसी की आत्मा को भला अन्य कैसे अनुभव कैसे कर सकता है । वह इसलिए क्योंकि किसी का शरीर और इंद्रियाँ दूसरे के शरीर और इंद्रियाँ अलग अलग हैं ।
बिलकुल उसी तरह कोई भी व्यक्ति किसी की भी आत्मा की पवित्रता को अनुभव भला कैसे कर सकता है ! यह सत्य है कि स्वयं की आत्मा को समझने के लिए हमें किसी अन्य महान व्यक्ति को समझना पड़ता है । उसके जीवन चर्या का ज्ञान करना पड़ता है ताकि हमारे ऊपर भी उसका अच्छा प्रभाव पड़े ।
किंतु स्वयं को समझने के लिए, स्वयं की पवित्रता का अनुभव करने के लिए स्वयं का ही सहारा (शरीर और इंद्रियाँ) लेना पड़ता है । ना तो दूसरों का शरीर काम आता है और ना ही दूसरों की इंद्रियाँ काम आती हैं । आपकी आत्मा कितनी पवित्र है इसका अनुभव आपको आपके शरीर साधनों से ही संभव है ।
ध्यान दो आपकी आत्मा कितनी पवित्र है व परम है इसका अनुभव आपके लिए अधिक आवश्यक है न कि किसी दूसरे व काल्पनिक आत्मा का अनुभव । स्वयं के द्वारा कल्पना की गई किसी अन्य आत्मा का अनुभव वास्तविकता में अनुभव नहीं है वह कल्पना मात्र है ।
एक उदाहरण से इसे और समझा जा सकता है , सामान्यतः भगवान राम में सबकी भक्ति होती ही है, कुछ लोग दिन भर मन ही मन में ‘श्री राम’ शब्द का जाप करते हैं । मन में यह जाप दिनों रात चल रहा होता है ।
किंतु इस शब्द के जाप से श्री राम का चरित्र तो आपमें आ नहीं सकता है । श्री राम का अनुभव तो हो नहीं जाएगा । इस प्रक्रिया से उनका अनुभव संभव नहीं है । अनुभव तो हमें स्वयं का ही संभव है । श्री राम का चरित्र तो साधक के लिए सहारा मात्र होता है । यदि ऐसा ही होता तो लगभग सभी परिवारों में दो भाइयों के मध्य ज़मीन जायदाद और धन के बटवारे के लिए लड़ाइयाँ नहीं होती । जबकि उस परिवार के सभी सदस्य उसी भगवान राम के भक्ति में लीन होते हैं ।
कहने का मूल अर्थ यह है कि स्वयं की आत्मा की पवित्रता का अनुभव हमेशा आपके शरीर और इंद्रियों के ही माध्यम से संभव है, आपको चाहे भौतिक जगत में कुछ करना है अथवा आध्यात्मिक जगत में, सब के सब में शरीर और इंद्रियों की ही आवश्यकता होगी ।
मेरा कहने का मूल अर्थ है कि स्वयं की ही आत्मा की पवित्रता का अनुभव संभव है , इसी की परम-आत्मा (परमात्मा) कहते हैं । इसी के द्वारा हम पूर्ण शांत हो सकते हैं ।
कुछ दिमागदार व्यक्तियों का मानना यह भी था कि यदि हम परमात्मा की पवित्रता के बारे में चर्चा करते हैं तो वही पवित्रता हमारे अंदर घटित होने लगती है । जैसे हम किसी की विशेषता करते हैं तो हमारे अंदर उसके गुण तो आते ही हैं ।
गुण अवश्य आता है किंतु स्वयं को समझने के लिए , स्वयं की आत्मा को अनुभव करने के लिए किसी दूसरे की विशेषता से कहीं बेहतर है स्वयं को समझना । क्योंकि ‘मैं’ अपने सबसे अधिक नज़दीक हूँ । मैं अपनी इंद्रियों के माध्यम से स्वयं को सबसे अधिक अनुभव कर सकता हूँ । और यहाँ हो ये रहा है कि हम अपनी आत्मा को अनुभव करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति या किसी अन्य कल्पित आत्मा का दिन भर बखान कर रहा हूँ ।
Copyright - by Yogi Anoop Academy