स्वर योग के भ्रम
मैंने देखा है कि बुद्धिमान, तार्किक और बहुत चतुर व्यक्ति किसी भी सिद्धांत को समझने और उसके प्रयोग के बाद उससे आकर्षित होता है किन्तु एक सामान्य बुद्धि का व्यक्ति उस वस्तु की विशेषताओं को सुन व देखकर ही आकर्षित हो जाता है । समाज में प्रचलित धारणाओं से अधिक आकर्षित होता है । इसी तरह योग विज्ञान के साथ भी हुआ ।
इसी दृष्टिकोण से देखें तो किसी भी वस्तु को बेचने के लिए कई तरह से व्यापारिक दिमाग़ का उपयोग किया जाता है ।यहाँ तक कि उसमें अनावश्यक विशेषताओं के पुल बांधे जाते हैं । बिलकुल वैसे ही कुछ अनुभवहीन लोग स्वर योग की सिद्धि के लिए भी व्यापारिक दिमाग़ का उपयोग करते हैं यद्यपि सामान्य बुद्धि के लोगों के ऊपर यह सटीक भी बैठ जाता है ।
जैसे - आइंस्टाइन स्वर योग के बहुत बड़े ज्ञानी थे, वह स्वर योग के बहुत बड़े सिद्ध महात्मा थे । नासिका से चलने वाली साँसों पर उनका पूर्ण नियंत्रण था । ऐसे ही उनसे पूर्व ईशा मसीह भी स्वर योग के सिद्ध थे । ऐसे ही बुद्ध भगवान भी स्वर योग के सिद्ध थे । ऐसे ही भगवान महावीर भी स्वर योग के महा सिद्ध थे । भगवान राम और कृष्ण की तो बात ही छोड़ दो । वे तो होंगे ही ।
यद्यपि आज ये सभी महान व्यक्तित्व मौजूद नहीं हैं , अब इनके नाम पर कुछ भी लिखा जा सकता है । वे आकर बताने वाले तो हैं नहीं , और न ही अपने समय में उन्होंने इन सभी स्वर योग और क्रिया योग के बारे में कुछ भी ज़िक्र किया । किंतु जितने भी व्यापारिक बुद्धि के लोग होते हैं किसी भी वस्तु को बेचने के लिए इस प्रकार की तकनीक का इस्तेमाल करते हैं जो कि व्यावहारिक दृष्टि से देखें तो सामान्य लोगों के लिए बहुत ही ख़तरनाक हो जाता है ।
स्वर योग के अभ्यासियों को इस सिद्धांत के पीछे के रहस्यों को समझने का प्रयास करके इसका अभ्यास करना चाहिए । इसके अभ्यास के बाद प्राप्त अनुभव से इसके प्रति आकर्षण सदा के लिए हो जाएगा । अन्यथा किसी भगवान ने क्या किया, क्या नहीं किया इससे आकर्षण जो भी होगा वह क्षणिक ही होगा । यहाँ तक कि भविष्य में वह हानिकारक भी होगा जैसा कि आये दिन मैं किसी न किसी लाइलाज मरीज़ को देखता ही रहता हूँ ।
जब कि सत्य यह है कि स्वर योग नाड़ियों में तीन प्रमुख नाड़ी इड़ा, पिंगला और शुषुम्ना नाड़ी के रहस्यों का ज्ञान है । यह मस्तिष्क के अंदर उन सभी सूक्ष्म तंत्रिका तंत्र को जो मस्तिष्क के दोनों पटलों को समयनुसार स्वाभाविक रूप में बदलता रहता है । और यही बदलाव दोनों नासिका में साँसों के चलने के रूप में दिखता है । भिन्न भिन्न नासिका से चलने वाली साँसें यह इंगित कर रही होती हैं कि मस्तिष्क का कौन सा पटल सक्रिय और कौन सा अक्रिय अवस्था में है । ऐसा माना जाता है कि नाड़ी शोधन प्राणायाम के अभ्यास से किसी एक नासिका में साँसों के बदलाव से मस्तिष्क के पटल पर प्रभाव छोड़ा जा सकता है किन्तु मेरे अनुभव में इस तकनीक से ऐसा कुछ भी संभव नहीं है । यह नाड़ी शोधन की क्रिया संवेदनाओं के सिद्धांत पर निर्भर करता है जिसको मैं स्वर योग के वर्कशॉप में गहराई से विचार करूँगा ।
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