स्वप्न व शुषुप्ति के ज्ञान का आलम्बन करने पर भी चित्त स्थिर हो जाता है, ऐसा महर्षि पतंजलि अपने एक सूत्र (स्वप्ननिद्राज्ञाानालम्बनं वा) में कहते हैं ।
चित्त के स्थिरता का तात्पर्य सामान्यतः आध्यात्मिक प्रगति मात्र से लगाया जाता है । किंतु इसका घनिष्ठ सम्बन्ध मन और देह के स्वास्थ्य से भी जुड़ा होता है । जैसे किसी भी व्यक्ति को कुछ दिनों व महीनों तक नींद न आने पर उसके देह और मस्तिष्क में कई प्रकार की समस्याएँ आनी प्रारम्भ हो जाती हैं । और कुछ वर्षों के बाद तो नर्वस सिस्टम और डिप्रेशन जैसे रोग स्वतः ही हो जाते हैं ।
नींद न आने का मूल अर्थ है स्वप्न व विचारों का आना । वो व्यक्ति जो दृश्येंद्रिय अर्थात् आँखों से अधिक प्रभावित होते है तो उन्हें निद्रा के समय विचार से अधिक स्वप्न चलते हैं । जैसे स्वप्न में किसी भक्ति-वादी व्यक्ति को भगवान का दिखना । वह व्यक्ति उसी स्वप्न में आने वाले चित्र को अपनी साधना का आधार बना लेता है । इस आधार की सहायता से उसकी आत्मिक प्रगति होने की सम्भावनाएँ भी बढ़ जाती हैं ।
किंतु ध्यान दें इस प्रकार के स्वप्न वाले लोगों को बुरे स्वप्न के भी आने की सम्भावनाएँ उतनी ही बनी रहती हैं । इसलिए उसकी अंतरात्मा अंत तक उस स्वप्न की सत्यता को स्वीकार नहीं पाता है । वह स्वप्न है , जीवन में वह घाटा नहीं था इसलिए उसे उस स्वप्न को सत्य के रूप में स्वीकार कर पाना कठिन होता है ।
ऐसे बहुत मानसिक रूप से चंचल और स्व से असंतुष्ट लोग मेरे पास आकर यह कहते हैं कि स्वप्न में जो भी आता है वह सच हो जाता है । आने वाली घटनाओं का उन्हें पूर्व अनुमान हो जाता है । किंतु बहुत गहराई से देखने पर यह ज्ञात होता है कि उनके शरीर और मन में चलने वाली समस्याओं का उन्हें स्वयं ही ज्ञान नहीं हो पाता है । वे स्व की समस्या से त्रस्त हैं, स्वयं को बीमार करके बैठे हैं और बहकी बहकी बातें करते हैं ।
मेरे अनुभव में स्वप्न को अवलम्बन बनाने से बेहतर है गहरी नींद को बनाना । क्योंकि नींद व सुषुप्ति विषय विहीनता की एक झलक देता है । ऋषियों ने इसी को समाधि के अभ्यास का मूल आधार बनाया होगा ।
गहरी नींद का आना ही सबसे अच्छा होता है जिससे हमारा चित्त अधिक स्थिर हो सकता है । गहरी नींद के आने का मतलबहै कि हमारा हमारा मन स्वस्थ है और उसके स्वस्थ होने पर मन और देह में किसी भी प्रकार की गम्भीर समस्या नहीं हो सकती है । । गहरी नींद प्रतीक है स्वस्थ मन का इसलिये प्रयत्न यही करना चाहिये कि गहरी नींद आये । चूंकि गहरी नींद मे हमारा सम्बन्ध मन और शरीर से समाप्त हो जाता है हमे यह पता नही होता है कि हम कहां पर हैं शरीर कहां पर है । कोई विचार नही होता है । इसीलये गहरी नींद मे मनुष्य को सबसे अधिक शांति मिलती है । जब मनुष्य ध्यान करता है तब गहरी नींद को ही अपना आलम्बन बनाता है अर्थात विचार रहित होने की कोशिश करता है । जागृत अवस्था मे नींद वाली स्थिति प्रकट करना व विचार रहित होना समाधि कहलाता है इस समय यह पता होता है कि हम हैं किन्तु विचार व स्वप्न नही हैं परन्तु गहरी नींद मे विचार रहित तो होतें हैं साथ साथ हमे अपने का भी ज्ञान नही होता है । अतः गहरी नींद को आलम्बन बनाने पर चित्त के स्थिर होने के साथ साथ देह भी निरोगी होता है ।
आँखो को बंद कर नींद जैसा अनुभव करने का प्रयत्न करें किंतु स्वयं को न सोने दें ।
बंद आँखों के चारों तरफ़ की नसों के ढीलापन को अनुभव करें ।
साधना काल में बंद आँखों को मन से देखने का अभ्यास करें , ऐसे करें कि आँखे , माथा और जबड़े ढीले शांत हो जाएँ ।
सुषुप्ति का अनुभव करने के लिए कमरे में अंधेरा करना आवश्यक है , जिससे बंद आँखों को ऐसा आभाष हो कि बाहर अंधेरा है , अर्थात् शून्यता है , विचारहीनता है । मन को अल्प समय के लिए उस अंधेरे में विषय विहीनता का अनुभव होना चाहिए । उसी प्रकार मन के अंदर भी कोई विषय व दृश्य नहीं चलेंगे ।
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