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स्वप्न व शुषुप्ति के ज्ञान का आलम्बन करने पर चित्त स्थिर हो जाता है

1 year ago By Yogi Anoop

स्वप्न व शुषुप्ति के ज्ञान का आलम्बन करने पर चित्त स्थिर हो जाता है  ।

यहाँ चित्त की स्थिरता का मूल तात्पर्य मन का पंखरहित होना है , मन के स्वप्निक उड़ान का रुक जाना । वस्तुतः मन वैचारिक प्रक्रिया से पड़े जाना चाहता है । वही उसको पूर्ण विश्राम मिलता । ध्यान दें मन कि क्रियाशीलता निर्भर करती है उसकी अक्रियाशीलता पर । यदि वह रात में पूर्ण अक्रियाशील हो गया तो दिन में उसकी क्रियाशीलता में बहुत आश्चर्यजनक परिवर्तन देखने को मिलता है । दिन में वह स्वयं को अस्वस्थ अनुभव करता है , स्वयं से खिन्न दिखता है । संभवतः इसीलिए उसका दूसरों के प्रति व्यवहार बहुत ही ग़लत होता है । 

सत्य यह है कि चित्त के मूल स्वभाव में अक्रियाशीलता और क्रियाशीलता दोनों है । कुछ समय के लिये स्वाभाविक रूप में वह अक्रियाशील होता है , वह इसलिए कि वह उसका मूल स्वभाव है , और कुछ समय के लिये वह क्रियाशील होता है क्योंकि उससे उसका व्यवहार चलता है । निद्रा व सुषुप्ति अवस्था में उसे जीव को परम शांति मिलती है । इसीलिए योगियों ने इस अवस्था को आलंबन बनाने पर ज़ोर दिया । 

 और साथ साथ ऋषियों ने सुषुप्ति को ज्ञान का सबसे बड़ा साधन माना । यदि नींद नहीं होता तो संभवतः ध्यान की खोज न हो पाती । ऋषियों ने चित्त को स्थिर करने के लिए सबसे अधिक निद्रा वि सुषुप्ति का सहारा लिया । जैसे कोई भी व्यक्ति गहन निद्रा में विचार रहित होता है उसी प्रकार जागृत अवस्था में विचार रहित कैसे होया जाये, यह बताने को कहा । 

यहाँ पर साधक निद्रा को अवलंबन के रूप में कैसे ले सकता है , यहाँ अवलंबन का अर्थ है कि निद्रा जैसी अवस्था को जागृत अवस्था में कैसे प्राप्त करना । निद्रा में इंद्रिय धीरे धीरे थक कर ढीली हो जाती हैं जिससे मन शून्यावस्था में चला जाता है किंतु साधक जागृत अवस्था में इंद्रियों को ढीला करता है, साँसों के माध्यम से इंद्रियों को ढीला करना इत्यादि । जागृत अवस्था में इंद्रियों को ढीला करने में कामयाबी जब उसे प्राप्त हो जाती है तब उसका चित्त स्थिर हो जाता है । 

साधक कभी कभी स्वप्न को भी चित्त की स्थिरता के लिए आधार बनाता है , जैसे स्वप्न दृष्टा स्वप्न देखते समय स्वप्न से अलग होता , किंतु स्वप्न में हो रही घटनाओं से प्रभावित होता रहता है । ज्ञानी ऋषियों ने स्वप्न में हो रही घटनाओं को अवलंबन के लिये नहीं कहा , उन्होंने उन घटनाओं के दृष्टा को अवलंबन के लिए कहा । यदि स्वप्न की घटनाओं को अलबम बनाने की कोशिश करता है तो वह परिवर्तनशीलता होगा किंतु यदि वहाँ स्वपदृष्टा को अवलंबन मानेगा तो उसमें पूर्ण स्थिर हो सकता है क्योंकि दृष्टा में परिवर्तन नहीं संभव है ।

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