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सुख और दुख के परे

1 year ago By Yogi Anoop

सुख और दुख के परे     

व्यक्ति को ऐसा लगता है कि घर बन जाएगा तो खुश हो जाएगा , शादी हो के बाद तो खुश हो ही जाएगा । बच्चे पैदा हो जाएँगे तो खुश हो जाएगा ।  विशेषकरके  लड़का ही होगा तो खुश हो जाएगा,  क्योंकि उससे वंश में अगली वृद्धि होगी । कुछ लोग इसी को धन कमाने से जोड़ते हैं कि यदि इतना कमा लेंगे तो सरलता मिल जाएगी इत्यादि इत्यादि । कहने का अर्थ ये है कि अमुक प्रकार का कार्य हो जाएगा तो उसका जीवन सुखी और शांत हो जाएगा । 


  किंतु यदि गहराई से विचार किया जाय इस प्रकार के स्वभाव वाले व्यक्ति कभी भी सुखी और शांत से नहीं रह पाते हैं । मैंने तो इन्हें बहुत दुखी होते हुए देखा है । 

ये भविष्य में प्राप्त होने वाले सुख की कल्पना मात्र कर लेते हैं । इसके अतिरिक्त इन्हें कुछ भी नहीं प्राप्त होता है ।   

सत्य यह है कि ये वर्तमान में सुखी नहीं हैं इसलिए भविष्य में सुखी होने की कल्पना करते हैं । 

यद्यपि भविष्य में सुख का स्वप्न देखना बुरा नहीं है । किंतु यदि हम इसके और गंभीरता में जाएँ तो दुख अधिक पाते है ।   जबकि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि भविष्य जिस कार्य की समाप्ति की आशा में सुख की आशा कर रहे हैं , वह मिल ही जाय ।


एक उदाहरण से इसे और समझा जा सकता है  - एक सामान्य व्यक्ति शादी होने और नौकरी मिलने के बाद परम सुख की आशा करता है । उसे ऐसा लगता है कि उसका जीवन परिपूर्ण हो जायेगा और समस्त मानसिक और आर्थिक कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी । किंतु क्या सत्यता में ऐसा किसी को भी प्राप्त हुआ है । 

उसे अभी पता ही नहीं कि नौकरी और शादी के बाद के साइड इफ़ेक्ट के बारे में । वो सत्यता से दूर होकर मात्र कल्पना करके खुश होने का प्रयास भर करता है । 


   शादी और नौकरी के प्राप्त हो जाने के बाद अपने व्यक्ति अपने मित्रों से पत्नी व पति की बुराई कर रहे होते हैं । नौकरी में सरकार की बुराई कर रहे होते हैं । 


सत्यता यह है कि जीवन के हर पल में सुख दुख साथ चल रहे होते हैं । किंतु मन प्रत्येक पल खुश और शांत रहना चाहता है । वह चाहता है कि उसे कभी भी किसी भी प्रकार का कष्ट हो ही ना । 


क्या यह संभव है ? 


यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात है कि परिस्थितियों से सुख और दुख हमेशा आता  जाता रहेगा । क्योंकि परिस्थितियां परिवर्तनशील हैं । यदि उन परिवर्तनशील परिस्थितियों के अनुसार मन में भी परिवर्तन हुआ तो दुख और सुख के झमेले में रहेंगे ही । किंतु यदि मन को स्थिर करके उसे अच्छी तरह से परिस्थियों से परे रहने के लिए प्रशिक्षित किया जाये तो वह परिस्थितियों के बदलने पर सुखी और दुखी नहीं होगा । वह शांत और स्थिर रह सकता है । 

इसके लिए उसे स्वयं के मन को अच्छी तरह से प्रशिक्षित करना आवश्यक है ।  


जैसे -

  • इंद्रियों को ढीला और बंद करना सीखें । इसके लिए प्रतिदिन ध्यान आवश्यक है । रात में 8 बजे के बाद किसी भी प्रकार का स्क्रीन ना देखें । इससे इंद्रियों में थकान नहीं होगी और वे ढीली हो जायेंगी । इससे मन विचलित नहीं होगा । 


  • सोने के पहले प्राणायाम और ध्यान अवश्य करें । इससे मन में अनावश्यक इक्षाओं पर विराम लग जाता है । सबकॉन्शियस मन में इक्षाओं का निरंतर प्रवेश होते रहने से मन दूषित होने लगता है । इसीलिए कोशिश हो कि सोने के पहले अपनी इक्षाओं को शांत किया जाये और इंद्रियों को ढीला कर दिया जाय । इससे मन सुख और दुख का सामना करने के लिए तत्पर होगा और इसके पर जाने में समर्थ भी होगा । 


  • सुबह उठकर दैनिक दिनचर्या में शारीरिक अभ्यास करना अनिवार्य है । मन का देह पर नियंत्रण होना आवश्यक है । यदि वह स्वयं के देह और इंद्रियों से खुश और संतुष्ट होता है तब वाह्य परिस्थितियों से न तो बहुत सुखी और ना ही बहुत दुखी होता होता है ।  ध्यान दें व्यक्ति का परिस्थितियों से कहीं अधिक स्वयं के देह, इंद्रिय और मन पर नियंत्रण हो सकता है । जब वह उससे खुश होता है तब परिस्थितियों से लगभग अप्रभावित रहता है । 


  • व्यक्ति को स्वयं के व्यवहार पर कार्य अधिक करना चाहिए । इसके लिए किसी गुरु के संपर्क में रहकर स्वयं के मन के बारे में , स्वयं पर नियंत्रण कैसे किया जाये , इस पर विचार किया जाना चाहिये । 

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