बचपन में हमारे बड़े बूढ़े कहानियाँ सुनाते हैं , मैं जानता हूँ कि उन कहानियों में सत्यता से अधिक मोरल वैल्यूज़ , अर्थात् नैतिकता तथा मन की उड़ान होता था ।मेरी नानी ऐसी ऐसी कहानियाँ सुनाती थी जिसका कोई सिर पैर नहीं होता था ।
एक कहानी जो रामायण की जिसमें सुपणखा एक राक्षसनी होती है । सिर्फ़ उसकी कहानी जिसे हज़ारों बार सुनाया होगा , हर एक बार अलग अलग तरीक़े से ।
किसी रात वो विश्व सुंदरी हो ज़ाया करती थी कभी बहुत बड़ी चुड़ैल होती थी । किसी और रात वो कहती थी कि रावण को भगवान राम के हाथों मरवा कर तारने तरने आयी थी , और कभी और किसी रात ये कहने लगती कि स्त्रियाँ यदि ख़राब और दुष्ट हों तो घर बर्बाद हो जाता है , और किसी रात उनकी कहानी में ये ट्विस्ट होता कि देखो यदि किसी भी स्त्री पर हाथ उठाओगे तो चाहे भगवान भी क्यों न हो उसे दंड भोगना ही पड़ेगा ।
कभी ये बतलाती कि श्री राम को भगवान बनाने के लिए वो आयी थी , किसी रात वो ये कहने लगती कि वो सुपणखा राम को भगवान समझती थी इसीलिए अपने को लंका में राक्षस राज को समाप्त करने के लिए उसने ये सब रचा ।
और ध्यान दो इन कहानियों में साथ साथ उस राक्षसी औरत की सुंदरता की डिटेलिंग में चर्चा करती थी । उस लड़की की आँखे कितनी सुंदर थी , आइ ब्रो की सुंदरता का बखान , उसके चमकीले और लहराते बालों की डिटेलिंग, और उसके मेकप की तो भयंकर डिटेलिंग होती थी । मानो ऐसा लगता कि वे ऐक बेहतरीन स्क्रिप्ट राइटर थी ।
कहानी के डिटेल में जाते जाते मैं सो ज़ाया करता था , दूसरे दिन उसी कहानी में फिर से कोई न कोई ट्विस्ट रहता था । उनका यह भी सोचना रहा होगा कि बच्चा ऊबे नहीं । उस बचपन के समय उनकी बिना सिर पैर की कहानियों में रोज़ होने वाले ट्विस्ट को मज़े से सुनता था । पर मुझे समझ ही नहीं आया ।
जब मैं बड़ा हुआ तब मुझे समझ आया कि उन कहानियों का दूर दूर तक न तो सत्यता से लेना देना है और न ही किसी ऐतिहासिक तथ्यों से लेना है ।
यदि मैं अब deep analysis करूँ तो मैं कह सकता हूँ कि उनका लक्ष्य मुझे इतिहास पढ़ाना नहीं था , और न ही उनका लक्ष्य मुझे बहुत सत्य की जानकारी देनी थी । शायद उन्हें ये एहसास न रहा हो कि इससे मस्तिष्क का विकास कितना होता है पर वो ऐसा करती थी क्योंकि वे भी अपने बूढ़ों से पायीं रही होंगी ।
किंतु उनके इस टेक्नीक से मेरे अंदर किसी भी विषय के बारे में चिंतन करने के भिन्न भिन्न दृष्टिकोण पैदा हुआ । किसी भी एक समस्या को अनेकों दृष्टिकोण से देखने की शक्ति पैदा हुई जो मेरे आध्यात्मिक मार्ग में बढ़ने के लिए बहुत सहायक रहा ।
इस उम्र में मैं ये कह सकता हूँ कि किसी भी घटना के बारे में भिन्न भिन्न दृष्टिकोणों से विचार करने से मस्तिष्क का पूरा उपयोग किया जा सकता है । और आप बहुत सारे मानसिक विकारों से स्वतः बच जाते हैं ।
कहने का मूल अर्थ है कि भारतीय परम्परा में बड़े बूढ़े सेल्फ़ made कहानियों से बच्चों के subconscious माइंड में वैचारिक पद्यतियों का जन्म कर देती थी जिससे बड़ा होकर व्यावहारिक जीवन जीने में कठिनाई न हो ।
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