निश्चित रूप से, पुस्तकें ज्ञान का भंडार हैं, किंतु वह प्रेरक मात्र है, व्यावहारिक जगत और दार्शनिक जगत में स्वयं के द्वारा किए ही सब कुछ होता है । पुस्तकें प्रेरणादायी है, बिना प्रेरणा के किसी भी प्रकार का विकास संभव नहीं है होता है । किंतु यहाँ पर साथ साथ यह भी समझना आवश्यक है कि पुस्तकों के अनुरूप जीवन जीने की शुरुवात जैसे ही करते हैं, बिल्कुल वैसे ही जीवन दिखता नहीं । बहुत गंभीर व्यावहारिक अनुभवों को पुस्तकों में वर्णित करना संभव नहीं होता है इसीलिए अभ्यास के दौरान अनुभव ज्यादरत बहुत ही भिन्न होते हैं ।
पुस्तकों में व्यावहारिक सूक्ष्म वर्ण बहुत संभव नहो होता है , वह एक साधारण रूप रेखा तो देती ही हैं , और उसी के आधार पर व्यक्ति व्यावहारिक समुद्र में कूदता है ।
इसी हेतु मैं सदा कहता हूँ कि पुस्तकें सिर्फ़ जानकारी प्रदान करती हैं, यह विभिन्न आध्यात्मिक और व्यावहारिक विचारधाराओं की संभावनाओं से परिचित कराती हैं, किंतु रहस्य की खोज हेतु स्वयं को व्यवहार में लाना ही पड़ता है, सिर्फ़ पढ़ने मात्र से तो कुछ हो नहीं सकता है ।
अंततः, असली बदलाव आपके व्यक्तिगत अभ्यास से ही आता है । अन्यथा पुस्तकें लिखने वाले और पढ़ने वाले बहुतायत हैं । मैं ऐसे भी लोगों से परिचित हूँ जो दिन भर पढ़ते और लिखते ही रहते हैं किंतु आत्मोत्थान लगभग न के बराबर ही है । वह इसलिए कि व्यवहार का पक्ष बहुत कमजोर है ।
अब मूल प्रश्न है कि नींद के पूर्व क्या पुस्तक पढ़ना उचित है !
इस प्रश्न के के समाधान में यह समझ लेना आवश्यक है कि नींद के पूर्व व्यक्ति में ऐसा क्या होना चाहिए जिससे उसमें नींद आ जाए । केवल एक ही उत्तर आता है कि उसे शांत होना चाहिए । यदि वह शांत है तो उसे नींद की यात्रा में जाने के लिए किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा । यद्यपि लगभग पूरे दिन भर तनाव से युक्त जीवन जीने के बाद रात में अचानक स्वयं को शांत करना एक सामान्य व्यक्ति के लिए कठिन कार्य होता है ।
यही पर सोने के पूर्व पुस्तक को पढ़ने का कार्य प्रारंभ होता है । इसी में बहुत से लोग सोने से पहले पुस्तक इसीलिए पढ़ते हैं, क्योंकि उन्हें उससे नींद आ जाती है।
पढ़ते समय भटकता हुआ ध्यान एकाग्र हो जाता है और साथ साथ मस्तिष्क का अभ्यास प्रारंभ हो जाता है ।
इस समय मस्तिष्क की तंत्रिका तंत्र में पढ़ने के माध्यम से बहुत धीरे धीरे आराम आराम से कुछ ऐसे रसों का उत्पादन प्रारंभ होने लगता है जिससे पूरा देह विश्राम की ओर जाने लगता है । यद्यपि कुछ लोग स्क्रीन देखते देखते सो जाते हैं । मैं इसे गहरी नींद में जाने के संकेत नहीं मानता किंतु सोने के पूर्व पुस्तकों को पढ़ना एक ऐसा माध्यम है जिससे मन-मस्तिष्क थोड़ा धीमा होने लगता है ।
मेरे विचार में, आत्मकथाएँ, जीवनियाँ, और आध्यात्मिकता की मौलिक पुस्तकें अवश्य पढ़ी जानी चाहिए।
इनसे हमें शुद्ध और प्रमाणिक जानकारी प्राप्त होती है, साथ साथ वैचारिक गतिविधियां शांत पड़ जाती हैं । जो मस्तिष्क के अंदर एक गहरा परिवर्तन ला सकती हैं ।
पुस्तकों में पढ़ने का तरीका भी धीरे धीरे समझ समझ कर ही पढ़ने का होना चाहिए । यदि ऐसा है तो ही मस्तिष्क और मन को विश्राम मिल सकेगा । ऐसी अवस्था में ही नींद आ सकती है ।
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