सोच के पीछे एक बहुत बड़ा सत्य छिपा होता है जिसके बारे में हमें जानना आवश्यक है । एक सामान्य व्यक्ति के मस्तिष्क में दिन रात कितने विचार चल रहे होते हैं, शायद ही उससे वाक़िफ़ होता है । उन विचारों का उनके शरीर के की हिस्से में पड़ रहा होता है, उन्हें मालूम ही नहीं होता ।
आज इसी को डीकोड करेंगे, जिससे आपको स्वयं के बारे जानकारी हो और उसमें परिवर्तन करने की हिम्मत आए ।
जितने भी हाइपर ऐक्टिव माइंड के लोग होते हैं, वे सभी अपनी गाड़ी के के gear को बहुत जल्दी जल्दी चंगे करते हैं । साथ साथ वे अपनी गाड़ी को बहुत जल्दी जल्दी accelerate करते हैं । gear का अर्थ है हृदय , हाइपर ऐक्टिव अवस्था में हृदय की गति को बढ़ाना मजबूरी हो जाती है । और acceleration का अर्थ है फेफड़े । यदि देखें तो हाइपर ऐक्टिव लोगों की साँसों की गति अत्यंत ही तीव्र होती है ।
इसीलिए मैं हमेशा कहता हूँ कि अपनी इंद्रियों की गति को धीरे धीरे कर दो । यद्यपि हमारी पेरेंटिंग और शिक्षा व्यवस्था हर कार्य में तेज़ी लाने की बात करता है । जब आप इंद्रियों की गति को धीरे धीरे करते है तब आपकी हृदय तथा स्वसन गति सामान्य हो जाती है ।
यहाँ पर इंद्रियों की गति को धीरे करने का क्या तात्पर्य है ,
इसका अर्थ है कि -
धीरे धीरे बोला जाए,
काम को आराम से किया जाए ,
कार्य को करते समय जल्दबाजी न किया जाय
कार्य करते समय आँखों को तनवरहित किया जाए
कार्य में अनुभव को महत्व दिया जाए
ये एक ऐसा परिवर्तन है जो हृदय में अनावश्यक बढ़ाव घटाव नहीं करने देता । यद्यपि हृदय एक अनेक्षिक मांसपेशी है पर इसका विचारों से सबसे अधिक समय होता है और ध्यान दें जब कर्म करते समय इंद्रियों को शांत करवाने का अभ्यास करते हैं तब हृदय अपनी गति में स्वतः ही रहता है ।
करते हैं
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