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स्मृति का चक्रव्यूह

2 months ago By Yogi Anoop

स्मृति का चक्रव्यूह

स्मृति एक अदृश्य घड़ा है, जो मनुष्य को अपनी ओर गहराई से आकर्षित करता है। इसका मुख्य कारण यह है कि मन को स्थिरता का एक ठिकाना चाहिए, और स्मृति में अनुभवों की अनंत गुफाएँ भरी पड़ी होती हैं। ऐसा प्रतीत होता है, जैसे मन ने स्मृति में अपना घर बना लिया हो।

वास्तव में, मन हमेशा कुछ पकड़ने या थामने के लिए किसी वस्तु या स्थान की खोज करता रहता है। स्मृति, जो स्वयं मन की रचना है, उसे यह ठहरने का स्थान सहज ही उपलब्ध करा देती है। लेकिन यही ठहराव समस्या का कारण बन जाता है।

स्मृति में अधिक समय बिताने का परिणाम यह होता है कि मन अपने ही बुने हुए जाल में मकड़ी की भाँति फँस जाता है। वह जितना इस जाल से निकलने का प्रयास करता है, उतना ही इसे और जटिल बनाता है। परिणामस्वरूप, मन इस चक्र में और गहरे फँसता चला जाता है। यह ठीक उसी प्रकार है जैसे एक विचार को समाप्त करने के लिए कोई दूसरा विचार उत्पन्न होता है, और विचारों के इस चक्रव्यूह से बाहर निकलना लगभग असंभव-सा हो जाता है।

परिणामस्वरूप समस्याएँ

इस स्थिति का परिणाम मूड स्विंग्स, वर्तमान से संबंधों का टूटना, भयग्रस्त रहना, किसी बुरी लत में फँस जाना और लगातार बंधन का अनुभव होना हो सकता है । इसके साथ ही मस्तिष्क में खिंचाव, अवसाद, और अनिद्रा भूतकाल में घटित घटनाओं को दोहराते रहने की आदत, विचारों के बिना रुके निरंतर चलते रहने, जैसे लक्षण उभरते हैं । अंततः यह आत्मघाती विचारों को जन्म देता है, और व्यक्ति यह महसूस करने लगता है कि उसने अपने साथ बहुत बुरा किया है।

समाधान: ध्यान और ज्ञान

मेरे अनुभव में, ध्यान और ज्ञान के माध्यम से इन व्यूह रचनाओं से बाहर निकला जा सकता है। इसके लिए कुछ विशेष उपाय किए जा सकते हैं:

  • सकारात्मक ध्यान: ध्यान का उद्देश्य वर्तमान में रहना होना चाहिए। ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों को वर्तमान में रखने के लिए विभिन्न तरीकों से प्रेरित करें, जैसे कि चलती हुई साँसों को अनुभव करना। यह साँसें वर्तमान में चलायमान हैं, लेकिन अनुभवकर्ता को शांत और स्थिर करके स्मृति के चक्रव्यूह से बाहर निकाल देती हैं।
  • आसन और प्राणायाम: आसन और प्राणायाम का अभ्यास धीमी गति से करें, ताकि शिथिलता का अनुभव स्वाभाविक रूप से हो। अभ्यास में शक्ति और जल्दीबाज़ी से बचें, और विवेकपूर्ण तरीके से इसका अनुसरण करें। इन्द्रियों में शिथिलता आने पर अनुभव का दायरा बढ़ता है। जितना अनुभव का दायरा बढ़ता है, उतनी ही स्थिरता और स्वतंत्रता की क्षमता विकसित होती है।
  • दैनिक क्रियाओं में सावधानी: दैनिक कार्यों में कर्मेन्द्रियों का उपयोग धीमी और सावधानीपूर्वक करें। इससे मन उस कार्य की गहराई में उतरकर उसे अनुभव करने लगता है, और इसके साथ आनंद का अनुभव भी होता है।
  • टर्टल योग और ध्यान: मेरे द्वारा विकसित टर्टल योग, टर्टल ब्रीथिंग, और टर्टल ध्यान का अभ्यास करें। इनमें दर्शन के अनुसार अभ्यास पर जोर दिया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य कर्म और गति में शिथिलता का अनुभव कराना है। इसका परिणाम यह होता है कि व्यक्ति कर्म करते हुए स्वयं को इतना शिथिल कर लेता है कि अकर्तापन का अनुभव होने लगता है। यही परम सत्य है, और इससे बड़ा कोई सत्य नहीं है ।
  • स्मृति आधारित ध्यान से बचाव: ऐसा ध्यान न करें जिसमें विचारों को रोकने का प्रयास करना पड़े। इस प्रकार की एकाग्रता में ध्यान स्मृति पर ही टिक जाता है । 

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