स्मृति एक अदृश्य घड़ा है, जो मनुष्य को अपनी ओर गहराई से आकर्षित करता है। इसका मुख्य कारण यह है कि मन को स्थिरता का एक ठिकाना चाहिए, और स्मृति में अनुभवों की अनंत गुफाएँ भरी पड़ी होती हैं। ऐसा प्रतीत होता है, जैसे मन ने स्मृति में अपना घर बना लिया हो।
वास्तव में, मन हमेशा कुछ पकड़ने या थामने के लिए किसी वस्तु या स्थान की खोज करता रहता है। स्मृति, जो स्वयं मन की रचना है, उसे यह ठहरने का स्थान सहज ही उपलब्ध करा देती है। लेकिन यही ठहराव समस्या का कारण बन जाता है।
स्मृति में अधिक समय बिताने का परिणाम यह होता है कि मन अपने ही बुने हुए जाल में मकड़ी की भाँति फँस जाता है। वह जितना इस जाल से निकलने का प्रयास करता है, उतना ही इसे और जटिल बनाता है। परिणामस्वरूप, मन इस चक्र में और गहरे फँसता चला जाता है। यह ठीक उसी प्रकार है जैसे एक विचार को समाप्त करने के लिए कोई दूसरा विचार उत्पन्न होता है, और विचारों के इस चक्रव्यूह से बाहर निकलना लगभग असंभव-सा हो जाता है।
परिणामस्वरूप समस्याएँ
इस स्थिति का परिणाम मूड स्विंग्स, वर्तमान से संबंधों का टूटना, भयग्रस्त रहना, किसी बुरी लत में फँस जाना और लगातार बंधन का अनुभव होना हो सकता है । इसके साथ ही मस्तिष्क में खिंचाव, अवसाद, और अनिद्रा भूतकाल में घटित घटनाओं को दोहराते रहने की आदत, विचारों के बिना रुके निरंतर चलते रहने, जैसे लक्षण उभरते हैं । अंततः यह आत्मघाती विचारों को जन्म देता है, और व्यक्ति यह महसूस करने लगता है कि उसने अपने साथ बहुत बुरा किया है।
समाधान: ध्यान और ज्ञान
मेरे अनुभव में, ध्यान और ज्ञान के माध्यम से इन व्यूह रचनाओं से बाहर निकला जा सकता है। इसके लिए कुछ विशेष उपाय किए जा सकते हैं:
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