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शरीर में नाभिकीय ऊर्जा का महत्व

2 years ago By Yogi Anoop

शरीर में नाभिकीय ऊर्जा का महत्व 

“नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Energy) को compressed Form में रखकर ही उसका सदुपयोग समाज के भिन्न भिन्न क्षेत्रों में किया जा सकता है । यदि उसको अकारणवश, उद्देश्यविहीनवश और बचकाने तरीक़े से उपयोग करने की कोशिश की जाती है तो स्वयं के साथ साथ समाज के लिए भी अत्यंत घातक सिद्ध होता है । 


     बिलकुल इसी प्रकार शरीर के मध्य क्षेत्र में स्थित नाभिकीय प्रणाली केंद्र जिसे सामान्य भाषा में नाभि के नाम से जाना जाता है स्थित है । यही नाभिकीय ऊर्जा मणिपुर चक्र में compressed form में स्थित होती है, यदि इसके द्वार को अज्ञानतावश, बिना गुरु के निर्देशन में खोल दिया जाता है तो यह स्वयं के शरीर और मस्तिष्क की हानि अकल्पनीय ढंग से करता है ।  

इसीलिए श्री राम, श्री कृष्ण और पांडवों जैसे लोगों को किसी गुरुकुल में रखा गया । वह इसीलिए कि जो भी शक्ति व ऊर्जा एकाग्रता के माध्यम से उत्पन्न कराया जाए उसे नैतिक ज्ञान के माध्यम से compressed कर दिया जाए । श्री राम सूर्य मुखी थे, इसके बावजूद भी उनमें नैतिकता का बल बहुत तेज था । सम्भवतः इसी कारण रावण जैसी विशाल सेना का सामना कर पाए ।    


     ध्यान दें श्री राम की नाभि में अनंत शक्तियाँ जागृत थी, उन्होंने उस नाभि की विस्फोटक ऊर्जा का इस्तेमाल वायु (हनुमान) के सहयोग से किया ।  बिना वायु के अग्नि (ऊर्जा) का विस्तार सम्भव नहीं हो सकता है । इसीलिए श्री राम को हनुमान जी का साथ फलदायी रहा । क्योंकि हनुमान जी वायु के प्रतीक हैं । अर्थात् अग्नि (राम) और वायु (हनुमान) में परम मित्रता से उत्पन्न भीषण ऊर्जा को कोई रोक नहीं सकता है । 

किंतु ध्यान दें अग्नि और वायु का नियंत्रण ज्ञान के पास होना चाहिए, ये दोनों ज्ञान की ही बात सुनते हैं, और अन्य किसी की भी बात नहीं सुनते । अर्थात् उनकी गति में नियंत्रण सिर्फ़ ज्ञान के माध्यम से ही लाया जा सकता है । 


अग्नि और वायु दोनों में ज्ञान के द्वारा ही धैर्य लाया जा सकता है । अन्यथा वह धैर्यहीन वायु और अग्नि तूफ़ान बन कर सामान्य जनों के नष्ट  कर देती है । जैसा रावण के साथ हुआ । उसके अंदर छिपी हुई अग्नि और वायु ने उसे अनियंत्रित कार दिया । उसकी इंद्रियों को बेलगाम कर दिया वह इसीलिए कि जो उसे ज्ञान देता था अर्थात् विभीषण को त्याग दिया । 

रावण की पत्नी और उसके भई विभीषण उसके अतिऊर्जावान मस्तिष्क को ज्ञान और नैतिकता के माध्यम से लगाम लगाना चाहते थे किंतु उसने उन दोनों का निरादर किया । 


    अपने इस देह और मस्तिष्क की ऊर्जा को हमेशा ज्ञान से ही नियंत्रित करते रहने सीख देते रहना चाहिए अन्यथा उन्हें बेलगाम होने में देर नहीं लगती । 

इसीलिए रावण  का विनाश हुआ । जैसा कि यह विदित है कि रावण की पूरी शक्ति नाभि में थी, अग्नि थी किंतु वायु के माध्यम से उसने उस ऊर्जा का दुरुपयोग किया । और वह तब असफल हुआ जब ज्ञान देने वाले भाई विभीषण ने साथ छोड़ दिया । विभीषण ज्ञानात्मक बातें करके रावण में नैतिक ज्ञान की उपज करना करना चाहता था जिससे उस असीमित ऊर्जा की गर्मी को शांत किया जा सके । क्योंकि शरीर के ऊर्जा जब शांत होती है तभी फलदायी होती है , अन्यथा स्वयं की शरीर को रोगी बना कर मार देती है । इसीलिए नाभि ऊर्जा का नियंत्रण हमेशा ज्ञान से ही होना चाहिए ।


     यह तभी सम्भव है जब शांत होकर अंदर और बाहर चलने वाली साँसों को अनुभव करना शुरू करते हैं तो यह वायु नियंत्रित होकर उस समस्त नाभिकीय ऊर्जा को compress करके उसी मणिपुर चक्र में बिठा देती है । समय समय पर वह आवश्यकतानुरूप देह और मस्तिष्क को ऊर्जावान देती रहती है । उसे किसी भी प्रकार की कमी नहीं होने देती है । अंततः यह सिद्ध हुआ कि अग्नि और वायु को एक दिशा देने के लिए ज्ञानात्मक अनुभव ही अंतिम समाधान है । कहने का अर्थ है यदि नैतिक ज्ञान बलवान हो तो वायु आपे से बाहर नहीं होती है अन्यथा उसे आपे से बाहर होने में देर नहीं लगती है । हनुमान जी जो वायु के ही सूचक हैं, श्री राम को प्रभु के रूप में स्वीकार करते थे,  इसीलिए उनकी वायु में नैतिकता वाली दिशा थी । 

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