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शरीर के पैटर्न को आसन और प्राणायाम से कैसे करे ठीक

2 years ago By Yogi Anoop

शरीर के पैटर्न को आसन और प्राणायाम से कैसे करे ठीक 

प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से मन कहीं न कहीं मस्तिष्क में एक पैटर्न बना देता है और वही भविष्य में कहीं न कहीं मस्तिष्क और देह के दुःख का कारण बन बैठता है । जैसे बचपन में सोचने की प्रक्रिया जो भी है वही धीरे धीरे शरीर में एक आदत बना देता है जिससे शरीर के अंदर अनेक असुविधाओं को जन्म देता है ।

एक उदाहरण के रूप में इसे समझा जा सकता है -

जन्मजात कोई भी शराबी नहीं होता है , कोई भी व्यक्ति सर्वप्रथम अपने मन को शराब पीने के लिए तैयार करता है, कुछ महीनों-वर्षों प्रशिक्षित करने के बाद है मस्तिष्क तथा उसके महत्वपूर्ण अंग जैसे लिवर इत्यादि जब शराब से अभ्यस्त हो जाते हैं तब तब मन के न चाहने के बावजूद भी व्यक्ति शराब पीने के लिए मजबूर हो जाता हैं । 

शराब का अभ्यस्त liver और मस्तिष्क, मन को शराब पीने के लिए मजबूर कर देता हैं । इसीलिए न चाहने पर भी एक शराबी शराब को छोड़ नहीं पाता है क्योंकि उसके देह का एक विशेष अंग उस शराब का लती हो गया है । 

यदि किसी जानवर को भी शराब कुछ वर्षों तक दिया जाय तो उसका लिवर और मस्तिष्क लती हो जाता है और शराब को माँगने लगता है । समय से शराब न देने पर उसके स्वभाव में भिन्न भिन्न नकारात्मक परिवर्तन देखे जा सकते हैं । 


उसी तरह यह मनुष्य भी है । मनुष्य तो 90 फ़ीसदी से अधिक बातों को मन मस्तिष्क में अज्ञानतावश डाल देता जिससे शरीर के अंगों का एक पैटर्न बन जाता है । उसी पैटर्न के कारण ही बहुत सारी शारीरिक समस्याएँ एक व्यक्ति को झेलना पड़ता है । 


एक अन्य उदाहरण से इसे समझा जा सकता है :

एक स्त्री 9 महीने बच्चे को गर्भ में धारण करती है । गर्भवती स्त्री के प्रसव के बाद कुछ दिनों व महीनो तक बच्चे की false movement का अनुभव होता है । ऐसा प्रतीत होता है कि बच्चा गर्भ में घूम रहा है । प्रमुख कारण है कि गर्भाशय को 9 महीने तक बच्चे को रखने की आदत हो गयी है । प्रसव के बाद भी गर्भाशय आदतवश movement करने लगता है, जब कि बच्चा उसमें नहीं है । स्त्री को बच्चे के लात मारने का अनुभव जैसा होता है । गर्भाशय में यह पैटर्न कुछ दिनों या महीनों तक बना रहता है किंतु उसके बाद वह स्वतः ही ख़त्म हो जाता है ।   

इसी प्रकार आमाशय में असिडिटी के बनने की होती है । साथ साथ शरीर में वायु, पित्त इत्यादि अनेकों रोग का भी एक पैटर्न बनता है । ध्यान देने योग्य बात यहाँ पर यह है कि इस पैटर्न को दवाइयों के सहयोग से ठीक नहीं किया जा सकता है । दवाइयों को लेने के बाद ऐसा लगता है कि समस्या ठीक हो गयी किंतु वापस आने में देरी नहीं लगती है । 


मेरे स्वयं के अनुभव में इस तरह के शारीरिक पैटर्न को चिंतन की प्रक्रिया से भी ठीक नहीं किया जा सकता है । इसे आसन और प्राणायाम से ही ठीक किया जा सकता है । 

उसका प्रमुख कारण यह है कि जब देह की नाड़ियों में खिंचाव दिया जाता है तब मस्तिष्क में कई होर्मोनल परिवर्तन दिखते हैं , और वह उसका dopamine बढ़ना शुरू होता है । ध्यान देने की बात यह पर यह भी है कि ये अंतःश्रावी रसों में longevity होती है । यह लॉंजेविटी ही व्यक्ति को किसी भी कार्य को करने के लिए मजबूर नहीं करती है । क्योंकि यह शरीर में बने पैटर्न को आसानी से ख़त्म कर देती है । 


यहाँ पर कुछ आसन और प्राणायाम दे रहा हूँ जिनका अभ्यास प्रतिदिन किया जा सकता है । 


आसन:

ऐसे कई योग आसन है जो रीढ़ में खिंचाव पैदा करके प्रेरक तंत्रिका तंत्र (मोटर नर्वस), केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous System) को बेहतर करता है । साथ साथ अंतःश्रावी ग्रंथियों को बेहतर करती हैं जिससे शरीर के पैटर्न को पलटा जा सकता है । 


  • भुजंग आसन 

  • पसचिमोतान आसन 

  • मकर आसन 

  • शीर्ष आसन 

  • हलासन 


इत्यादि अनेको ऐसे आसन हैं जिनका अपने स्वभाव  के अनुरूप और साथ साथ किसी अनुभवी गुरु के निर्देशन में अभ्यास करने पर शरीर के पैटर्न को ठीक किया जा सकता है । 


प्राणायाम:  

प्राणायाम एक ऐसा विज्ञान है जो रक्त में ऑक्सिजन की मात्रा को बढ़ाता तो है ही साथ साथ मस्तिष्क को अथाह शांत कर देने में सहायक होता है । 

कुछ प्रमुख प्राणायाम 


  • नाड़ी शोधन 

  • टर्टल breathing

  • कोबरा breathing 

  • उज्जाई प्राणायाम 


इत्यादि ऐसे प्राणायाम हैं जिनका अभ्यास किसी कुशल निर्देशन में यदि किया जाय तो शरीर में गम्भीर से गम्भीर आदत से निर्मित रोगों को ठीक किया जा सकता है । 

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