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श्वसन चक्र: गति और ठहराव का समन्वय

2 months ago By Yogi Anoop

गति में ठहराव का अदृश्य संबंध: साँसों के प्रवाह में छुपी स्थिरता

साँस, जीवन का मूल आधार है। यह प्रक्रिया इतनी स्वाभाविक है कि इसे अक्सर बिना सोचे-समझे अनुभव करते हैं। इस अनुभव में साँसों का प्रवाह सतत और निरंतर प्रतीत होता है, मानो वह बिना किसी रुकावट के चलती रहती हो। परंतु, यदि गहनता से इस प्रवाह का सूक्ष्म आनुभविक अवलोकन करें, तो एक महत्वपूर्ण सत्य उजागर होता है – चलती हुई साँसों के भीतर भी ठहराव के क्षण सन्निहित होते हैं, जो इस गति को संभव बनाते हैं। ऐसा आभास होता है कि वह निरंतर चल रही है, उसमें निरंतरता है, किंतु यह आभास मात्र है। उस आभासी गति में भी पल-पल के ठहराव मौजूद होते हैं।

सूक्ष्म ठहराव: श्वसन चक्र का आधार

सामान्यतः साँस लेने के अंत में (Inspiratory Pause) और छोड़ने के अंत में वाह्य कुंभक (Expiratory Pause) स्वाभाविक स्तर पर होता है। यह दो स्पष्ट ठहराव दिखाई देते हैं – साँस पूरी भरने और पूरी छोड़ने के बाद। परंतु, यह केवल स्थूल स्तर पर होने वाली प्रक्रिया है। यदि गहराई में जाएँ, तो पाएँगे कि प्रत्येक साँस के प्रवाह के भीतर सूक्ष्म ठहराव अनिवार्य रूप से उपस्थित रहता है। यह ठहराव इतना सूक्ष्म होता है कि सामान्य रूप से इसे अनुभव करना कठिन है, परंतु ध्यानपूर्ण अभ्यास के द्वारा इसे स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है। साथ-साथ इस अनूठे ज्ञान के महत्व की समझ प्राप्त होती है।

चलायमान व गतिमान साँस के भीतर यह सूक्ष्म ठहराव किसी अवरोध की तरह नहीं, बल्कि यह एक प्राकृतिक संतुलन की तरह कार्य करता है। जब वायु नासिका द्वार से भीतर जाती है, तो वह एक समान गति से नहीं बहती, बल्कि सूक्ष्म लहरों (micro-pulsations) के रूप में प्रवाहित होती है। इन लहरों के प्रत्येक चढ़ाव और उतराव के बीच ठहराव के अति-सूक्ष्म क्षण उपस्थित होते हैं, जो इस गति में निरंतरता का आभास कराते हैं। मेरे अनुभव में इस ठहराव का अनुभव चित्त के गहन शांत होने के बाद ही प्राप्त हो सकता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण: माइक्रो-पल्सेशन का सिद्धांत

आधुनिक विज्ञान भी इस सूक्ष्म ठहराव की पुष्टि करता है। साँस का प्रवाह पूरी तरह से निरंतर नहीं होता, बल्कि लैमिनार फ्लो (laminar flow) और टर्बुलेंट फ्लो (turbulent flow) के मिश्रण के रूप में चलता है। इस प्रवाह के दौरान वायु के अणु एक समान प्रवाह में नहीं, बल्कि छोटे-छोटे चरणों में आगे बढ़ते हैं। इन चरणों के बीच सूक्ष्म ठहराव होते हैं, जिन्हें अत्यधिक संवेदनशील उपकरणों, जैसे Spirometer और Plethysmograph, के माध्यम से मापा जा सकता है।

इसके अतिरिक्त, क्वांटम बायोलॉजी का सिद्धांत भी इस तथ्य को उजागर करता है कि शरीर की प्रत्येक प्रक्रिया, चाहे वह श्वसन हो या ऊर्जा का प्रवाह, निरंतर नहीं, बल्कि छोटे-छोटे “क्वांटम स्टेप्स” में घटित होती है। साँसों के प्रवाह में सूक्ष्म ठहराव भी इसी सिद्धांत के अनुरूप है।

विशेषकर मैं क्रिया योग के उच्चतर अभ्यास में ऊर्जा की निरंतरता के प्रवाह को नहीं, बल्कि उस निरंतरता को तोड़कर अणु-परमाणु में विभाजित करने का अनुभव करवाने का प्रयास करता हूँ। रीढ़ के अंदर आरोह और अवरोह के दौरान पल-पल के ठहराव का अनुभव करना चित्त को सूक्ष्मतम रूप में शांत करता है।

योगिक और आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य

योग विज्ञान, मांसपेशियों और नाड़ियों, प्राणायाम के विज्ञान में साँसों की गति में तथा ध्यान में विचारों की गति में भी इस ठहराव को विशेष महत्व दिया गया है। प्राचीन ग्रंथों में कुंभक (साँस को रोकने की क्रिया) को श्वसन चक्र का महत्वपूर्ण अंग माना गया है। परंतु, यह केवल स्थूल कुंभक की बात नहीं करता, बल्कि प्रत्येक साँस के भीतर घटित होने वाले सूक्ष्म ठहराव को भी इंगित करता है। यहाँ तक कि किसी एक वाक्य के छोड़ने अथवा बोलने के बाद एक ठहराव आता है, किंतु यहाँ तक कि मन में शब्दों की रचना करने में भी कितने ठहराव आते हैं, यह सामान्य लोगों के लिए सोचने से परे है।

जब मन शांत होता है, तो साँस की गति मन्द हो जाती है और यह सूक्ष्म ठहराव और अधिक स्पष्ट हो जाते हैं। ध्यान और प्राणायाम के अभ्यास से व्यक्ति इन ठहरावों को स्पष्ट रूप से अनुभव कर सकता है। यही ठहराव मन को स्थिरता प्रदान करता है और आंतरिक शांति की ओर ले जाता है।

जीवन में स्थिरता का प्रतीक

ध्यान दें, यह सूक्ष्म सत्य केवल साँसों तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन के प्रत्येक पहलू में व्याप्त है। किसी भी गति का आधार स्थिरता ही है। जैसे, नदी के प्रवाह में भी किनारों का ठहराव होता है, हृदय की धड़कन के बीच भी एक क्षणिक ठहराव होता है, वैसे ही साँसों की गति भी बिना ठहराव के संभव नहीं है।

इस प्रकार, यह स्पष्ट रूप से प्रमाणित होता है कि गति और ठहराव परस्पर विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं। ठहराव ही वह आधार है, जिस पर गति टिकती है। यदि यह ठहराव न हो, तो गति भी असंतुलित और असंयमित हो जाएगी।

यहाँ पर साधक प्रकृति में हो रहे सूक्ष्मतम गति और ठहराव की अनुभूति कर लेता है, इसके साथ-साथ उसे अपनी स्वयं की गतिहीनता की भी अनुभूति हो जाती है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि साधना में प्रकृति को जानने के साथ-साथ स्वयं पुरुष (आत्मा व “मैं”) का भी सम्पूर्ण ज्ञान हो जाता है।

साँसों के प्रवाह में छुपे हुए इन ठहरावों को समझना केवल एक श्वास प्रक्रिया की खोज नहीं है, बल्कि जीवन के गहरे रहस्यों को जानने की कुंजी है। इसके माध्यम से प्रकृति के रहस्यों का ज्ञान तो कर ही लेते हैं, साथ-साथ पुरुष का भी ज्ञान प्राप्त हो जाता है।

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