शब्दों की धारदार तेज स्मृति और अवसाद: क्या कोई संबंध है?
यह सत्य है कि जिन लोगों की स्मरण शक्ति तेज होती है, विशेषकर जो शब्दों और विचारों को गहराई से पकड़ने में सक्षम होते हैं, वे अवसाद (डिप्रेशन) का अधिक शिकार हो सकते हैं। यदि उनमें उन शब्दों व विचारों के प्रबंधन की क्षमता का अभाव है, तो निश्चित तौर पर भविष्य में अवसाद की समस्या आना तय है। इसका कारण यह है कि शब्दों व विचारों को संचित करने की शक्ति तो बढ़ा दी जाती है, लेकिन यदि उन्हें संचित करने की आदत लग जाती है और उनकी गुणवत्ता व मात्रा का ज्ञान नहीं रहता, तो यह निश्चित है कि भविष्य में अवसाद होगा।
इसे एक अन्य उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं—मान लीजिए, किसी बच्चे को सिर्फ़ भोजन भरने की लत लग जाए, तो उसमें भोजन की मात्रा और गुणवत्ता का ज्ञान धीरे-धीरे समाप्त होने लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उसे भोजन करने की नहीं, बल्कि भोजन भरने की आदत लग चुकी होती है। जैसे जानवर भोजन को निगलते हैं, वैसे ही वह भी भोजन को निगलता प्रतीत होता है। जब निगलने की क्रिया होती रहती है, तो मस्तिष्क में भोजन की मात्रा पर नियंत्रण लंबे समय तक नहीं रह पाता, और ऐसे लोग अधिक भोजन करने (ओवरईटिंग) की प्रवृत्ति विकसित कर लेते हैं। परिणामस्वरूप, उनमें गैस्ट्रिक रिफ्लक्स जैसी समस्याएँ अधिक देखी जाती हैं।
इसी प्रकार, यदि विचारों को भरने की आदत लग जाए, तो भले ही विचारों की गुणवत्ता ठीक हो, लेकिन उनकी मात्रा पर नियंत्रण नहीं रह जाता। साथ ही, विचारों के अवशोषण और पाचन की प्रक्रिया भी लगभग समाप्त हो जाती है। यही स्थिति ओवरथिंकिंग की शुरुआत होती है।
अब इसे एक दूसरे दृष्टिकोण से भी समझने का प्रयास करते हैं। जब मन किसी बड़ी वस्तु का चित्र बनाता है, तो उसकी स्मृति अधिक समय तक मस्तिष्क के सूक्ष्म तंत्र पर प्रतिक्रिया नहीं कर पाती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मन ने मस्तिष्क में एक बड़ा चित्र या आकार निर्मित किया होता है। चूँकि इस बड़े चित्र में रंग और रूप भी सम्मिलित होते हैं, इसलिए उसमें से भावों को निकालना अपेक्षाकृत आसान हो जाता है। लेकिन, जिन व्यक्तियों का मन शब्दों और संख्याओं के छोटे चित्रों को याद रखने में निपुण होता है, वे अधिक भावनाओं को जन्म नहीं दे पाते।
ऐसे व्यक्तित्व, जो स्मृति में शब्दों के चित्रों को अधिक रखते हैं, उनके मस्तिष्क में न्यूरॉन्स की प्रतिक्रिया और हार्मोन स्राव की प्रक्रिया सामान्य व्यक्तियों से भिन्न होती है। मेरे स्वयं के अनुभव के अनुसार, इस प्रकार के लोगों में मानसिक विकारों की संभावनाएँ अधिक होती हैं।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि जिन लोगों का मन शब्दों और संख्याओं के चित्रों को याद रखने में अत्यधिक निपुण होता है, उनमें से कुछ ऐसे भी होते हैं, जो केवल शब्दों और संख्याओं को ही नहीं, बल्कि वे जिन किताबों में लिखे होते हैं, उनके पृष्ठों की स्थिति को भी मन में छाप लेते हैं। अर्थात, उनके मन में न केवल शब्दों के चित्रों की स्मृति होती है, बल्कि उन शब्दों के भौगोलिक स्थान की भी स्मृति रहती है।
मेरे अनुभव और विश्लेषण के अनुसार, इस प्रकार की स्मृति से तर्क शक्ति का विकास तो होता है, लेकिन कुछ व्यक्तित्व ऐसे भी होते हैं, जो केवल चित्रों की पुनरावृत्ति से परेशान रहते हैं। उनके मन में वे चित्र अनावश्यक रूप से बार-बार आते रहते हैं, जिससे वे अंततः ओवरथिंकिंग का शिकार हो जाते हैं।
मेरे पास ऐसे कई लोग आते हैं, जिनमें इस प्रकार की प्रवृत्ति देखी गई है, और साथ ही उनमें भयंकर अवसाद के लक्षण भी प्रकट होते हैं।
इन तर्कों की समीक्षा
योगी अनूप ने स्वयं के लेख की ही समीक्षा किया है कुछ महीनों के बाद । तर्क की समीक्षा और विश्लेषण इसके संबंधी पर और समीक्षा किया ।
1. स्मृति और अवसाद का संबंध
• यह तर्क कि जिन लोगों की स्मरण शक्ति तेज होती है, वे अवसाद के अधिक शिकार हो सकते हैं, काफ़ी हद तक उचित प्रतीत होता है। वैज्ञानिक शोधों में भी यह पाया गया है कि अधिक विश्लेषणात्मक और गहरी सोचने वाले व्यक्तियों में ओवरथिंकिंग (अत्यधिक विचार करना) की प्रवृत्ति अधिक होती है, जो उन्हें चिंता और अवसाद की ओर धकेल सकती है।
• जब कोई व्यक्ति शब्दों और विचारों को अत्यधिक मात्रा में संचित करता है, लेकिन उन्हें प्रभावी रूप से प्रबंधित नहीं कर पाता, तो यह मानसिक तनाव का कारण बन सकता है।
• यदि कोई व्यक्ति केवल भोजन “भरने” की आदत डाल ले और उसकी मात्रा और गुणवत्ता पर ध्यान न दे, तो उसका पाचन तंत्र प्रभावित हो सकता है। इसी तरह, यदि कोई व्यक्ति विचारों को सिर्फ़ संचित करता रहे, किंतु उन्हें आत्मसात (digest) न कर पाए, तो यह मानसिक असंतुलन का कारण बन सकता है।
• यह बात तर्कसंगत लगती है, क्योंकि ओवरथिंकिंग के कारण निर्णय लेने की क्षमता और भावनात्मक संतुलन प्रभावित होते हैं।
2. चित्रात्मक स्मृति बनाम शब्दों की स्मृति
• लेख में यह तर्क दिया गया है कि बड़े चित्रों की स्मृति अधिक समय तक मस्तिष्क में नहीं रहती, जबकि छोटे और संख्यात्मक शब्दों की स्मृति गहराई तक बैठ जाती है।
• यह तर्क आंशिक रूप से सही है। शोध बताते हैं कि दृश्य (visual) स्मृति और भाषा आधारित (verbal) स्मृति अलग-अलग कार्य करती हैं। दृश्य स्मृति संवेदी (sensory) रूप में कार्य करती है और अपेक्षाकृत जल्दी लुप्त हो सकती है, जबकि शब्दों और भाषा से जुड़ी स्मृति अधिक गहरी हो सकती है।
• यह भी सही है कि शब्दों और संख्याओं पर आधारित सोच में अधिक विश्लेषणात्मक प्रवृत्ति होती है, जो न्यूरोलॉजिकल स्तर पर अलग प्रतिक्रिया उत्पन्न कर सकती है।
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