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शांभवी मुद्रा से कहीं हानि तो नहीं हो रही है !

4 years ago By Yogi Anoop

शांभवी मुद्रा कहीं हानि तो नहीं दे रही है !

शांभवी मुद्रा एक ऐसी विलक्षण मुद्रा है जो सामान्य साधकों के लिए एक अबूझ पहेली की तरह है । 

पुस्तकों में इसकी विशेषताओं के बारे में किताबों पर किताबों लिखी जा चुकी है । किंतु सत्य ये है कि किसी साधक ने इसकी बारीकियों के बारे में नहीं बतलाया । 

ऐसा कहा जाता है कि जब साधक अपनी दोनों आँखों को दोनों भौं के मध्य में ऊपर कुछ मिनटों के लिए एकाग्र  करता है तब तीसरा नेत्र जागृत होने लगता है ।

सत्य ये है कि इसमें 90 फ़ीसदी साधकों के सिर में भारीपन होने लगता है और ऐसा कहा जाता है कि ये भारीपन तीसरे नेत्र को जागृत करने का संकेत दे रहा है । किंतु सत्य ये है कि कुछ ही वर्षों में वो साधक या तो अन्य साधकों को इसकी वही बनी बनाई विशेषता का बखान कर रहा होता है या अपने अभ्यास को छोड़ कर इलाज करवाने अन्य गुरुओं के चक्कर लगा रहा होता है । 

इसमें से मेरे पास ऐसे बहुत लोगों की संख्या है जो इस अभ्यास के कारण से सिर दर्द से पीड़ित हैं और इलाज के लिए आते हैं । 

यदि दोनों आँखों को ऊपर की ओर अधिक समय तक ज़ोर जबरदस्ती से रखा जाय तो सिर में दर्द स्वाभाविक है , ये वैज्ञानिक रूप से सम्पूर्ण नहीं है । प्रारम्भ में ऋषियों ने पाया कि जब मन शून्यतम अवस्था में होता है तो ये आँखें स्वतः ही ऊपर की ओर चली जाती हैं , विशेष करके ध्यान और गहन निद्रा में ये होता है किंतु जब यही प्रक्रिया जागृत अवस्था आखों से जबरन करायी जाती है तब मस्तिष्क के अंदर केमिकल परिवर्तन होता है । चूँकि कोई हार्मोन जबरन पैदा करवाया जाता है इसलिए मस्तिष्क को हानि पहुँचती है । harmones का सिक्रीशन जब विचारों के माध्यम से अथवा विचार रहित अवस्था से होता है तब वह स्वाभाविक रूप में मस्तिष्क का विकास करता है किंतु जब हार्मोंस को हठ व जबरन शारीरिक क्रिया करवा करके पैदा किया जाता है तब वही हानिकारक हो जाती है । 

इसीलिए यदि देखा जाय तो इस क्रिया के अभ्यसियों में मूड स्विंग और सिर दर्द की समस्या आम पायी जाती है । कुछ वर्षों में तो डकार व उदान वायु से वह पीड़ित हो जाता है जो मस्तिष्क के लिए सबसे हानिकारक हो जाती है । इसीलिए मेरे अनुभव में बिना आनुभविक गुरु के इसका अभ्यास न करे और विशेश करके किसी सिद्धि के लिए तो बिल्कुल भी न करे । कहा यह भी जाता है कि इसके सिद्ध होने पर सूर्य के प्रकाश का दर्शन हो जाता है , सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड का दर्शन हो जाता । साधकों को ऐसी बचकानी बातों से बचना चाहिए और अपने ज्ञान को बढ़ाने पर ज़ोर देना चाहिए । 




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