यह सत्य है कि किसी भी सिद्धांत को समाज में प्रचलित और स्थापित करने के लिए अति-विशेषताएँ बतायी जाती हैं जिससे सामान्य बुद्धि के लोगों में स्वीकारोक्ति आसानी से हो जाय । किंतु कहीं न कहीं इसके पीछे मूल सत्य छिप जाता है और अनावश्यक बातें समाज में घूमने लगती हैं और उसी को सत्य समझने की भूल हो जाती है । मेरी कोशिश यही होगी कि इस शांभवी मुद्रा के मूल सत्य को समझा जाय और उसके अभ्यास से आध्यात्मिक लाभ लिया जाय ।
यहाँ पर फिर से यह बताना आवश्यक होगा कि इस मुद्रा का उद्देश्य सिर्फ़ एक इंद्रिय अर्थात् आँखों के अभ्यास के माध्यम से मस्तिष्क में हार्मोनल परिवर्तन लाना ।
चूँकि पाँचों इंद्रियों में आँखें ही एक ऐसी इंद्रिय है जिससे सबसे अधिक दृश्य आहार ग्रहण किया जाता है, यहाँ तक कि स्वप्न अवस्था में भी यह इंद्रिय अप्रत्यक्ष रूप से अति सक्रिय होती है जिससे मस्तिष्क को आराम नहीं मिल पता है ।
इसीलिए मैं इस मुद्रा के उन सभी सूक्ष्म अभ्यासों पर ज़ोर दूँगा जो आपके मस्तिष्क को शांत और आराम दे सके ।
प्रारम्भिक चरण-
में सामान्य लोगों को सांभवी मुद्रा का अभ्यास आसान तरीक़े से करवाया जाता है । जैसे आँखो को बहुत धीरे धीरे ऊपर-नीचे, दाहिने-बाएँ दिशा में ले ज़ाया जाता है । यहाँ पर आँखों की गति बहुत अधिक धीमी की जाती, जैसे नीचे से ऊपर की ओर जाने में 10 से 20 सेकेंड का समय लिया जाता है , और आँखो को ऊपर से नीचे लाने में 10 से 20 सेकंड का समय लिया जाता है । इसी प्रकार दाहिने और बातें दिशा में समय लिया जाता है । आँखों की गति पर नियंत्रण से आँखों के अंदर के सभी हिस्सों पर अपना नियंत्रण स्थापित होने लगता है । ध्यान दें आँखों कि गति जितनी तीव्र होती है उतना ही उस पर से नियंत्रण कम हो जाता है । इसका सीधा सा अर्थ है कि मन बहुत तीव्र और चंचल हो चुका है ।
द्वितीय चरण में
जब आँखो की गति पर नियंत्रण होने लगता है तब उसके बाद आँखों को स्थिरता देने की कोशिश की जाती, धीमी गति के साथ साथ एक-एक बिंदु पर एकाग्र किया जाता है जिससे कि आँखों के आस पास की मांसपेशियों में अधिक समय तक खिंचाव पैदा किया जा सके । आँखों के अंदर के हिस्से में भी तनाव पैदा किया जाता है इस क्रिया के माध्यम से ।
जब भी किसी ऐंद्रिक अंग को एक समय विशेष से अधिक देर तक रोका जाता है तब उसमें कम्पन पैदा होने लगता है, यह कम्पन इसलिए पैदा होता है क्योंकि उस अंग विशेष में क्षमता की कमी है । इसी क्षमता को विकसित करने के लिए अंग विशेष (आँखों) की गति को रोका जाता है । यह कम्पन मस्तिष्क की शक्ति को बढ़ाकर मानसिक स्थिरता देता है ।
आँखों को भिन्न बिंदुओं पर जब रोका जाता है तब मस्तिष्क के उस सूक्ष्म हिस्से में अभ्यास करवाया जाता है जिससे
भ्रम
इस क्रिया के आध्यात्मिक रहस्य को समझने के बजाय किसी अनावश्यक उद्देश्य के लिए जब इसका अभ्यास करते हैं तो इसका अभ्यास अनेक रोगों के जन्म का कारण आसानी से बन जाता है ।
जैसे सामान्य लोगों में यह प्रचलित है कि इसके अभ्यास में सिद्ध होने पर भूत और भविष्य का ज्ञान हो जाता है, नक्षत्रों और तारों की गति का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है । साथ साथ मृत्यु पर विजय प्राप्त जाती है ।
जहां तक मेरा आध्यात्मिक अनुभव है उसमें ये सभी बातें मूर्खतापूर्ण है , भूत भविष्य के बारे में जानकारी भला किसको हुई है आज तक । आध्यात्मिक साधना कभी भी भूत और भविष्य के लिए नहीं की जाती है , वह तो वर्तमान में जीने के लिए की जाती है ।
मन पूर्ण रूप से शांत तभी होता है जब वर्तमान में ठहरता है , उसकी पागलपन तब बढ़ती है जब भूत और भविष्य में विचरता है ।
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