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साध्य और साधन में भिन्नता

3 years ago By Yogi Anoop

क्या साध्य और साधन में भिन्नता नहीं होनी चाहिए ?

स्वाभाविक रूप से  किसी भी साध्य को प्राप्त करने के लिए किसी साधन का उपयोग करना पड़ता है । सामान्यतः वह साधन भिन्न होता है । महाभारत काल में सत्य की स्थापना के लिए पांडवों को कौरवों से युद्ध करना पड़ा , अर्थात् सत्य अहिंसा की स्थापना के लिए हिंसा जैसे साधनों  का प्रयोग किया गया । 

क्या मन में स्थिरता और शांति लाने के लिए मन को हिंसात्मक साधन अपनाना चाहिए !

पति और पत्नी के मध्य तनाव को समाप्त करने के लिए आख़िर क्या करना चाहिए ?

यही न,  कि किसी एक को समझदारी दिखा कर शांत हो लेना चाहिए । और उस शांति से दूसरा ढीला पड़ जाएगा । क्योंकि कि अग्नि में घी जैसी वस्तु जो अग्नि को उत्तेजित करने वाली होती है डालोगे तो अग्नि और भड़केगी , परिणाम यह होगा कि घर स्वाहा हो जाएगा । 


यदि आधुनिक भारत में देखा जाय तो साधन और साध्य का इस्तेमाल राजनीति में भी देखने को मिलता है । 

इतिहास में बहुत कम  लोग हुए जिन्होंने अध्यात्म और राजनीति का अनोखा संयोग किया । 

यदि पीछे अपने भारतीय इतिहास में जाकर देखो तो किसी ने भी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए जो भी किया गया उसके साधन बिलकुल भिन्न था । अर्थात साध्य और साधन दोनों में बड़ा अंतर था । 

जैसे प्रभु राम की बात कर लिया जाय । उन्होंने अपनी पत्नी जो रावण के द्वारा हरित कर ली गयी थी , उनको वापस लाने के लिए जो भी साधन का उपयोग किया बो सभी हिंसक थे । अर्थात सीता माता को प्राप्त करने के लिए युद्ध का सहारा लिया गया और युद्ध में आप जानते हैं कि क्या प्रयोग होता है । अर्थात धनुष बाण , गदा इत्यादि कई साधनों  का प्रयोग किया गया । यह भी सत्य है कि उस रावण को समझाने-बुझाने के बाद भी नहीं माना तो और रास्ता भी क्या बचता । आदर्श राम तो यह नहीं कहते कि सीता को रख लो अब मैं वापस जा रहा हूँ । 

ऐसे ही श्री कृष्ण ने भी किया । उन्होंने भी सत्य को स्थापित करने के लिए उन साधनों का उपयोग किया जो कहीं न कहीं हिंसक था  । अर्थात वही धनुष बाण गदा तलवार  इत्यादि इत्यादि । 


कहने का मूल अर्थ है सत्य को स्थापित  करने के लिए किसी दूसरे साधन का इस्तेमाल किया गया । अर्जुन ने श्री कृष्ण से कहा कि भगवान ये सब ख़ूना खच्चर क्यों ? 

सिर्फ़ इसीलिए न कि दुर्योधन ने  हमारा राज्य हथिया लिया । इसके उत्तर में श्री कृष्ण ने कहा कि यह युद्ध सत्य की स्थापना के लिए है । अर्थात् वह युद्ध जिसमें कितने लोग मारे गए । उससे सत्य को स्थापित किया गया । 

ध्यान दें -यह पर किसी को सत्य या असत्य साबित करना नहीं है , यह पर स्वयं के वैचारिक स्तर की वृद्धि करना है । हमें घटनाओं को हर एक दृष्टिकोण से देखना चाहिए जिससे मानसिक विकास हो सके । 


आधुनिक समय में महात्मा गांधी हुए जिनका राजनीति में अनूठा प्रयोग साबित हुआ । उन्होंने सत्य को प्राप्त करने के लिए सत्य का ही प्रयोग किया , अहिंसा का प्रयोग किया । बंदूक़ का सहारा नहीं लिया । यद्यपि इसे कुछ लोग कह सकते हैं कि वह कमज़ोरी है किंतु यही अहिंसात्मक तरीक़ा उनकी और देश की आत्मिक ताक़त बन गयी । गांधी जी तथाकथित कलयुग में जिसमें कहा जाता है कि घोर अज्ञानता ही रहती है , उसमें  उन्होंने ये मार्ग चुन लिया । और ये करने का प्रयास किया कि जो साधन आत्मिक विकास के लिए है वही सामाजिक विकास के लिए बाई सही  हो सकता है । 


ध्यान दें यहाँ पर मैं ये सिद्ध करने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ कि सिर्फ़ और सिर्फ़ गांधी जी ने ही स्वतंत्रता दिलायी । यहाँ पर मैं ये सिद्ध करने की कोशिश कर रहा हूँ कि जीवन में वो सार्थक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक सार्थक साधन को ही उपयोग में लाना चाहिए । सत्य से ही सत्य  को प्राप्त किया जा सकता है । असत्य साधन से सत्य साध्य को प्राप्त करना सम्भव नहीं है । 

जैसे - जैसे विचार से निर्विचार की स्थिति को प्राप्त करना असंभव है । 



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