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रोगों से मुक्ति का प्राकृतिक स्रोत

3 months ago By Yogi Anoop

उत्तर से दक्षिण वायु: रोगों से मुक्ति का प्राकृतिक स्रोत

छात्र का प्रश्न:

गुरुजी, उत्तर से दक्षिण की दिशा में बहने वाली वायु को इतना विशेष क्यों माना गया है? और यह कैसे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है?

योगी अनूप का उत्तर:

प्रिय विद्यार्थी, यह प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण और गहन है। उत्तर से दक्षिण दिशा में बहने वाली वायु को आप प्रकृति और शरीर के बीच का एक गहरा संबंध समझ सकते हैं। इसे आध्यात्म, योग और विज्ञान तथा अनेकों  दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करते हैं।

1. आध्यात्मिक दृष्टिकोण

मस्तिष्क, जो उत्तर दिशा में स्थित है, तात्विक दृष्टि से जल, वायु और आकाश तत्व प्रमुख रूप से विद्यमान हैं। ध्यान दें, पाँचों इंद्रियाँ भी इन्हीं तत्वों से घिरी हुई होती हैं। और इन सभी पाँचों इंद्रियों से जितने भी बाहरी संदेश मस्तिष्क तक पहुँचते हैं, वे सभी संदेश यह तीन तत्व अच्छी तरह से संग्रह करने में सहायता प्रदान करते हैं।

जैसे पत्थर में किसी भी आवाज़ को अवशोषित नहीं करवाया जा सकता है, किंतु पानी में आवाज़ को अवशोषित करवाया जा सकता है। यह इसलिए संभव है क्योंकि जल में आकाश और वायु तत्व होने से ख़ाली स्थान रहता है। इसी प्रकार इंद्रियों के माध्यम से आने वाले सभी संदेशों को मस्तिष्क आसानी से अवशोषित कर पूरे शरीर में प्रेषित करता है।

अब ध्यान दें, मस्तिष्क जो देह के उत्तर दिशा में स्थित है, बाहरी संदेशों को शरीर के दक्षिण दिशा में पहुँचाता है। यह प्राकृतिक नियम है और यही स्वास्थ्य प्रदान करता है। यह वायु पूरे शरीर की इंफ्लेमेशन (सूजन) को शांत करती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उत्तर दिशा से आने वाली वायु ठंडक प्रदान करती है, क्योंकि वह जल क्षेत्र से गुजरकर आती है।

ज्ञान की दृष्टि से देखें तो ये सारे संदेश विवेक और बुद्धि से छनकर देह तक पहुँचते हैं।

यह वायु शरीर के अंगों को इतना शांत कर देती है कि वे अपने मूल स्वभाव में आ जाते हैं, जिससे अंगों में स्वतः ही रोगों के नाश की क्षमता जागृत हो जाती है। इसीलिए इसे योग में “अपान वायु” कहा गया है।

2. प्राकृतिक दृष्टिकोण

प्रकृति के नियमों में उत्तर से दक्षिण की दिशा में प्रवाह का महत्व है। चूँकि उत्तर दिशा में हिमालय पर्वत ठोस जल और हिम खंड के रूप में विख्यात है, वहाँ से दक्षिण दिशा की ओर चलने वाली वायु कितनी शुद्ध होती होगी।

• सभी नदियाँ, हवाएँ और ऊर्जा के प्रवाह भी इसी दिशा का अनुसरण करते हैं।

• यह वायु प्राकृतिक रूप से शरीर की गर्मी को नियंत्रित करती है। विशेष रूप से आँतों में, जो शरीर के दक्षिण में स्थित हैं। यह पाचन को संतुलित कर विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालती है।

• शरीर की यह दिशा-प्रवाह पृथ्वी और आकाश के बीच संतुलन बनाए रखने का एक स्वाभाविक चक्र है।

3. आयुर्वेदिक दृष्टिकोण

आयुर्वेद सभी पक्षों को चिकित्सीय दृष्टि से देखता है। उसके अनुसार जल के पीने से लेकर वायु और आकाश में “अपान वायु” को जीवन का एक अनिवार्य तत्व माना गया है। उत्तर दिशा से आने वाली वायु यदि शुष्क और गर्म है, तो देह के सभी अंग एवं जोड़ों में दर्द और खुश्की से संबंधित समस्याओं का होना स्वाभाविक है। यदि यह वायु ठंडक प्रदान करने वाली हो, तो शरीर स्वतः ही अपने अंदर से दोष (विष), मल और अन्य अपशिष्ट को बाहर निकालता है।

• आँतों की गर्मी शांत करना: यह वायु आँतों की अधिक गर्मी को शांत करके पाचन क्रिया को मजबूत करती है।

• शरीर का शोधन: अपान वायु शरीर के मल, मूत्र, पसीने और अन्य अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने का कार्य करती है।

• आंतरिक ऊर्जा का प्रवाह: आयुर्वेद मानता है कि इस वायु का सही प्रवाह शरीर की आंतरिक ऊर्जा (प्राण) को सशक्त और संतुलित करता है।

यदि इस वायु के प्रवाह में कोई बाधा आती है, तो शरीर में वात दोष (गैस, जोड़ों का दर्द), पित्त दोष (आँतों में जलन) और कफ दोष (जमाव) जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

4. वैज्ञानिक दृष्टिकोण

मस्तिष्क, जो उत्तर में स्थित है, शरीर के पूरे नर्वस सिस्टम का केंद्र है।

• मस्तिष्क से निकलने वाले न्यूरो संदेश जब दक्षिण दिशा में प्रवाहित होते हैं, तो यह शरीर के अंगों को शिथिल और शांत करते हैं। अंगों में यही शिथिलता उनकी मूल ऊर्जा को पुनः सक्रिय करने में सहायक होती है।

• मस्तिष्क, जो हिमखंड जैसा ठंडा क्षेत्र है, वहाँ से आने वाली वायु शरीर की सूजन (Inflammation) को तीव्रता से कम कर देती है और अंगों को उनकी प्राकृतिक कार्यक्षमता में ले आती है। मेरे अनुभव में, इंफ्लेमेशन का कम होना ही रोगों का नाश है।

• मोटर नर्वस सिस्टम: यह प्रणाली मस्तिष्क से संदेशों को शरीर तक पहुँचाने का कार्य करती है। ठंडक प्रदान करने वाली वायु से उत्पन्न कोई भी संदेश इस देह को स्थिरता देने में सहायक होता है।

न्यूरोलॉजिकल दृष्टिकोण से, यह वायु शरीर के हर कोशिका में ऊर्जा और पोषण को पहुँचाने का माध्यम बनती है। यदि यह प्रवाह बाधित हो, तो मानसिक और शारीरिक रोगों की संभावना बढ़ जाती है।

संतुलन बनाए रखने के उपाय

1. ध्यान और प्राणायाम: प्राणायाम के माध्यम से अपान वायु को नियंत्रित करके शरीर और मन में संतुलन बनाया जा सकता है।

2.उत्तराभिमुख ध्यान: ऐसा कहा जाता है कि उत्तर दिशा में बैठकर ध्यान करना इस वायु के प्रवाह को शुद्ध करता है। यद्यपि मैं इसे नहीं मानता हूँ। उत्तर दिशा (मस्तिष्क) को शांत और स्थिर करना आवश्यक है।

3.आयुर्वेदिक उपचार: आहार और औषधियों के माध्यम से आँतों और शरीर की गर्मी को नियंत्रित करना।

अंततः उत्तर से दक्षिण दिशा में बहने वाली वायु केवल शरीर का एक शारीरिक तत्व नहीं है; यह हमारे जीवन, ऊर्जा और चेतना को संतुलित करने वाला मुख्य स्रोत है। इसे ध्यान, प्राणायाम और शुद्ध आहार के माध्यम से संतुलित रखना, शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। इस ज्ञान को जीवन में उतारें और इस वायु के प्रवाह को बाधा मुक्त रखें। यही आपके भीतर शांति, शक्ति और संतुलन का स्थायी अनुभव कराएगा।

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