एक सामान्य व्यक्ति ऊर्जा और ज्ञान में भेद नहीं कर पाता है, ऊर्जा प्रकृति का स्वभाव है किंतु चेतन का स्वभाव ऊर्जा नहीं है , उसका स्वभाव ज्ञान है । एक व्यक्ति के पास ऊर्जा और ज्ञान दोनों का समन्वय है किंतु वह ज्ञान पर अधिक आधारित है ।
जैसे सूर्य का प्रकाश उसकी ऊर्जा है और वही उसका स्वभाव है, उसके प्रकाश से सभी प्राणियों को ऊर्जा प्राप्त होती है किंतु उस सूर्य को यह ज्ञान नहीं कि किसे अधिक ऊर्जा देनी है व किसे कम । कोई भी व्यक्ति सूर्य के नज़दीक जाएगा , वह जल जाएगा । किंतु व्यक्ति के साथ ऐसा नहीं है, उसका प्रभाव ज्ञानात्मक अधिक है , वह ऊर्जा का उपयोग ज्ञान के लिए करता है । किंतु वह निर्भरता सिर्फ़ ऊर्जा पर ही नहीं है । उसकी मुक्ति का द्वार ऊर्जा न होकर ज्ञान है । जितनी भी खोजे हुई हैं वह ज्ञान के बदौलत हुआ है । उसे यह ज्ञान होता कि कब क्या करना है । क्या ग़लत है क्या सही है ।
ध्यान दें एक बच्चा और युवा शक्ति से प्रेरित होता है, उसके पास ऊर्जा है, शारीरिक शक्ति है , उसी के दम पर उसे लगता है कि वह दुनिया जीत लेगा । किंतु ध्यान रखें कोई भी ऊर्जा यदि ज्ञान से नियंत्रित न हुई तो वह स्वयं को ही समाप्त कर लेता है । क्रोध शक्ति है , किंतु उसका नियंत्रण सिर्फ़ ज्ञान से ही सम्भव है । क्रोध ज्ञान नहीं है , यदि शक्ति ज्ञान से प्रेरित और गवर्न नहीं होती तो वह स्वयं को ही शीघ समाप्त कर देती है । मांशपेशीय ऊर्जा की उम्र अधिक समय तक नहीं रहती , इसकी उम्र अधिक से अधिक 25 से 45 वर्ष से अधिक नहीं होती है । इसके बाद रेटायअर्मेंट की उम्र आ जाती है । मांसपेशियों (gym exercises) के अभ्यास के बाद ऐसा लगता है कि शक्ति ही शक्ति है । मांशपेशियों में मजबूती व्यक्ति को सिकंदर जैसी शक्तिशाली होने का एहसास दिलाती है । यदि उससे बेहतर ऊर्जा को देखा जाए तो हठयोग है जो नाड़ियों में स्थित सूक्ष्म ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करता है ।
हठ योग उस सूक्ष्म ऊर्जा की बात करता है जो नाड़ियों के अंदर प्रवाहित होती है ।
हठयोग में जितने भी आसनों का अभ्यास करवाया जाता है उसमें नाड़ियों में स्थित सुषुप्त ऊर्जा को पूरे देह में प्रवाहित किया जाता है । यह सूक्ष्मता की ओर ले जा रहीं ऊर्जा पर कार्य करता है । किंतु यहाँ तक कि हठ योग भी ऊर्जा देता है ज्ञान नहीं ।
वह शरीर में स्थित उन ऊर्जा केंद्रो पर कार्य करता जो ऊर्जा को मस्तिष्क में अधिक समय टिकाए रखते हैं ।
जैसे रीढ़ में स्थित 7 चक्र (मूलाधार से लेकर सहस्तार्थ चक्र) हैं जो सभी ऊर्जा के केंद्र विंदु हैं । उनका कार्य ऊर्जा के केंद्र विंदुओं को खोलना है न कि ज्ञान को । यद्यपि प्रारम्भ में साधकों को ऊर्जा और ज्ञान में भेद ही नहीं हो पाता है । अधिकतर साधकों को पूरे जीवन भर दोनों के मध्य अंतर का आभाष तक नहीं हो पाता है । इसीलिए हठयोग में बहुत रमने के बाद व्यक्ति मूढ़ता का शिकार होने लगता है ।
यह जीवन सीढ़ीनुमा है, स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ना होता है , वह इसलिए कि सूक्ष्म से स्थूल की ओर से ही हम आएँ थे । किंतु सामान्य व्यक्ति को इस रहस्य जा आभाष नहीं है । यही कारण है कि उसे शांति और निरोगी होने के लिए वापस उसी सूक्ष्म की ओर जाना पड़ता है ।
आसान बाद सूक्षतम प्राण के रहस्य को जाना और समझा जाता है । उसके बाद धीरे धीरे इंद्रियों के ज्ञान को समझने का तथा उसके बाद ध्यान और समाधि के द्वारा पूर्ण ज्ञान में अवस्थित हो जाना पड़ता है ।
कहने का मूल अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति का अंतिम लक्ष्य है, ऊर्जा की स्थूलता से धीरे धीरे ज्ञान तक पहुँचने की पहुँचने की यात्रा । ज्ञान पर ही यात्रा समाप्त हो जाती है ।
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