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रोगों का कारण: मांसपेशियों में तनाव

1 month ago By Yogi Anoop

रोगों का कारण: मांसपेशियों में तनाव

छात्र: गुरुजी, आपने मांसपेशियों की स्मृति में तनाव के बारे में जो बताया, वह बहुत रोचक है। क्या इसे थोड़ा विस्तार से समझा सकते हैं?

योगी अनूप: बेटा, शरीर और मस्तिष्क दोनों में एक स्वाभाविक प्रणाली होती है—खिंचाव व तनाव और ढीलापन व छोड़ना । जब शरीर तनाव में रहता है, तो अल्पकाल के लिए रक्त के संचार बढ़ने से ऊर्जा महशूस होती हुई प्रतीत होती । किंतु तनाव का एक समय सीमा के बाद भी रहने पर वह ऊर्जा थकावट में परिवर्तित हो जाती है । उसके बाद, स्वाभाविक रूप से वह थकी हुई मांसपेशियाँ शिथिलता की अवस्था में जाने की कोशिश करती है, जैसे आराम करना व गहरी नींद ।

इसे साधारण रूप से समझो। आँखों की पलकों का उठना और गिरना इसका स्पष्ट उदाहरण है। ये दोनों क्रियाएं स्वाभाविक हैं और शरीर के हर अंग का संचालन इन्हीं दो प्रवृत्तियों के आधार पर होता है। यह सिर्फ़ आँखों की ही बात नहीं है , यह पूरे देह के तंत्र के सिद्धांत की बात है । देह के तंत्र के सिद्धांत में यह तनाव एवं शिथिलता का रहस्य छिपा हुआ है  ।  

छात्र: तो क्या हमारा मन भी इन्हीं प्रवृत्तियों पर काम करता है?

योगी अनूप: जी, हमारा मन भी शरीर की इन स्वाभाविक प्रक्रियाओं का पालन करता है। उदाहरण के लिए, जब तुम किसी वस्तु पर ध्यान केंद्रित करते हो, तो कुछ समय बाद आँखें तुम्हें संकेत देती हैं कि पलकों को गिराकर विश्राम करवाओ । जिसके मन की एकाग्रता बहुत अधिक होती है उसकी आँखों की पलके उतनी ही देर तक नहीं गिरती हैं । वे लगातार उस विषय व वस्तु पर एकाग्र रहती हैं । किंतु मन और आँखों दोनों को शिथिलता के नियम का पालन करना पड़ता है । अंततः मन और आँखों एवं मस्तिष्क के हिस्से को शिथिल करना ही पड़ता है । 

लेकिन समस्या तब उत्पन्न होती है जब बचपन से मन और शरीर को अधिक खिंचाव में रहने की आदत डाली जाती है। अज्ञानतावश मन किसी भी विषय पर जब भी एकाग्र करता है तब वह अपनी इन्द्रियों की मांसपेशियों में तनाव की आदत को जन्म दे देता है । यह आदत मांसपेशियों की स्मृति में गहराई तक बैठ जाती है। समय के साथ, यह तनाव चौबीसों घंटे बना रहता है । इन्द्रियों की इस तनाव की अवस्था में मन चाहते हुए भी कि उसे शांति मिल जाये नहीं प्राप्त कर पाता है । इसी को मैं रोग कहता हूँ । 

छात्र: गुरुजी, यह असंतुलन कैसे हमारी समस्याओं का कारण बनता है?

योगी अनूप: जब मांसपेशियां लगातार तनाव में रहती हैं और शिथिलता की स्मृति लगभग खो देती हैं, तो शरीर और मन पर गहरा असर पड़ता है। इस असंतुलन के कारण मन स्वयं को हमेशा थका हुआ महसूस करता है। इस थकान से असंतोष का जन्म होता है और परिणामस्वरूप देह के अंदर होने वाले हार्मोन्स के स्राव में असंतुलन होना स्वाभाविक सा हो जाता है । धीरे-धीरे, यही दैहिक और मानसिक रोगों का कारण बन सकता है। 

समस्या तो तब और बढ जाती है जब मन अभ्यस्त हो जाते हैं। इससे मन हर समय बेचैन और अप्रसन्न रहता है। ध्यान दें मन का तनाव में अभ्यस्त होने का मूल अर्थ है भयंकर मानसिक रोग । 

छात्र: तो गुरुजी, इसका समाधान कैसे किया जा सकता है?

योगी अनूप: समाधान दो चरणों में है:

1. मांसपेशियों की स्मृति में शिथिलता को पुनर्जीवित करना।

2. ज्ञान व सजगता के माध्यम से मन को ढीला करने के लिए प्रशिक्षित करना।

शरीर की थकावट को दूर करना आसान है। तुम विश्राम करके शरीर को तुरंत राहत दे सकते हो। आधुनिक विज्ञान की सहायता से किसी दवा को लेकर अल्पकाल के लिए राहत भी मिल सकती है किंतु यह राहत स्थायी नहीं हो सकती है । कुछ ऐसे वाह्य साधन अपनाये जा सकते अहि जो प्रभावी अवश्य होते हैं । जैसे ठंडे जल से स्नान करना,  मालिश करवाना , संगीत का सुनना, मनोनुकूल किसी भी साधन को अपनाया जा सकता है । किंतु इसके बावजूद मैं यह कहना चाहता हूँ कि यह स्थायी समाधान नहीं है ।  स्थायी समाधान तभी संभव है, जब विश्राम ज्ञान के साथ हो।

छात्र: गुरुजी, यह ज्ञान कैसे प्राप्त किया जा सकता है?

योगी अनूप: ज्ञान से मेरा आशय है—अपने शरीर और मन को समझना। शरीर के हर अंग की कार्यप्रणाली को महसूस करना। सजगता के साथ शरीर और मन को नियंत्रित करना। उदाहरण के लिए:

• जब तुम बात कर रहे हो, तो ध्यान दो कि तुम्हारे जबड़े, आंखें, माथा या आवाज में तनाव न हो। बात करते करते उस अल्प समय में ढीलापन का अनुभव करो जब बोलने में पल भर के लिए रुकते हो । रुकने वाला वही पल शिथिलता का सबसे बड़ा स्रोत है । उसे अनुभव करने का प्रयत्न करना अति आवश्यक है । 

• चलने, बैठने या खड़े होने के दौरान शरीर में आने वाले विश्राम के पलों को अनुभव करो । दैनिक जीवन में होने वाली प्रत्येक घटनाओं में हर तनाव व खिंचाव वाले पल के बाद शिथिलता वाला पल आता है किंतु तनाव वाले पल का अनुभव करते हैं और शिथिलता वाले पल का अनुभव नहीं करते । अर्थात् तनाव वाले पल की माला बना देते हैं । ध्यान दें जैसे राम राम के मंत्र को मन ही मन बोला जाता है । किंतु राम और राम के मध्य जो आराम वाला हिस्सा है , उसे मंत्र का उच्चारण करने वाला अनुभव नहीं करता है । यही उसकी अज्ञानता है । इसी के कारण चाहे जितना ही मंत्रोच्चारण कर ले उसे रोग ही लगना है । वह निरोगी नहीं हो सकता है । क्योंकि राम राम के उच्चारण के पीछे का रहस्य आराम है । वह इसलिए यह मंत्र करता है ताकि आराम की अवस्था में स्थित हो जाये ।  

कहने का मूल अर्थ है कि दैनिक जीवन में प्रत्येक पल हो रही घटनाओं में वह शिथिलता का समय उपस्थित होता है , उसे अनुभव करना मात्र है । यही सजगता तुम्हें मांसपेशियों को शिथिल करने की कला सिखाएगी।

छात्र: लेकिन गुरुजी, यदि तनाव बहुत गहरा हो, तो त्वरित निदान हेतु इसे दूर करने की कोई विशेष तकनीक नहीं है क्या?

योगी अनूप: अवश्य है किंतु सजगता सबसे अधिक प्रमुख है , बेटा । कई विधियां हो सकती हैं , यहाँ पर कुछ को समझने का प्रयत्न करो  :

1. रियल टाइम में तनाव मुक्त होना: जैसे ही तनाव महसूस हो, उसे तुरंत छोड़ने की कोशिश करो। इसे सांसों की मदद से या किसी सरल गतिविधि के माध्यम से किया जा सकता है।जैसे साँसों को छोड़ते समय अपने चेहरे को ढीला करें । बार बार ऐसा करने पर मस्तिष्क एवं इन्द्रियों की मांसपेशियों में ढीलापन और शिथिलता आ जाती है । 

2. माइंड स्विचिंग और डायवर्जन: मन को एक गतिविधि से दूसरी गतिविधि में स्विच करना सिखाओ। यह मस्तिष्क को राहत देने में बहुत सहायक है।

3. किसी गुरु के सानिध्य में योग, प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास करना चाहिए । इन अभ्यासों से मन मस्तिष्क को इस प्रकार से प्रशिक्षित किया जाता है कि वे समयों का सामना करते समय उस शिथिलता को बरकरार किए रखें । मेरे अनुभव में इस विधि को पूर्णाहुति सिद्ध करने के लिए आवश्यक दर्शन को समझना बहुत आवश्यक होना चाहिए अन्यथा संभावित परिणाम नहीं प्राप्त हो पाते हैं । ज्यादातर तो विपरीत परिणाम देखने को मुझे मिलते हैं । यहाँ तक कि योग शिक्षकों को संख्या भी बहुत अधिक है जो तनावो के अभ्यस्त हो चुके हैं । 

छात्र: क्या आधुनिक विज्ञान भी इसमें मदद कर सकता है?

योगी अनूप: आधुनिक विज्ञान बाहरी साधन देता है, जैसे दवाइयां, जो मस्तिष्क और मांसपेशियों को अस्थायी राहत देती हैं। अस्थाई राहत भी बहुत उत्तम है किंतु इस राहत को जीवन साथी बनाना घातक हो सकता है । यहाँ तक कि किसी जड़ी बूटी का भी प्रयोग बहुत वर्षों तक घातक हो सकता है । जैसे कब्ज़ अर्थात आँतों में स्थित तनाव को ठीक करने के लिए जड़ी बूटियों का भी अधिक वर्षों तक प्रयोग कई अन्य रोगों के उत्तरी का कारण बन जाता है । यहाँ तक कि ऐसा कहा जाता है लोगों में पेट साफ़ करने की दवा अधिक समय तक लेने पर जोड़ों की समस्या और पार्किंसन जैसे रोग होने की संभावनाएं प्रबल हो जाती है । 

छात्र: गुरुजी, तो इसका सार क्या है?

योगी अनूप: सार यह है कि तुम्हें अपने शरीर की मांसपेशियों की (स्मृति मेमोरी) को समझना होगा। तनाव को छोड़ने और मांसपेशियों को शिथिल करने की कला सीखनी होगी। यह कला केवल सजगता, ज्ञान और अभ्यास के माध्यम से आ सकती है।

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